मुंबई । व्यावसायिक नगरी मुंबई की निर्माणधीन गगनचुंबी इमारतों में सुरक्षा उपायों के अभाव में मजदूरों की मौत हो रही है। हालांकि, ऐसे उपाय करना डेवलपर, ठेकेदार व सुपरवाइजर की कानूनी जिम्मेदारी है, ताकि इमारत से गिरने पर मजदूरों को जानलेवा चोट से बचाया जा सके। कोर्ट ने यह बात मुंबई के जोगेश्वरी पूर्व स्थित आदर्श नगर इलाके में निर्माणाधीन इमारत की 13वीं मंजिल से गिरने के चलते एक मजदूर की मौत से जुड़े मामले में आरोपी सुपरवाइजर की याचिका को खारिज करते हुए कही। कोर्ट ने कहा कि केवल समझौते के आधार पर इस तरह के केस को लेकर दर्ज की जाने वाली एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।
फरवरी 2018 में मजदूर भुवनेश्वर प्रसाद की भवन से गिरने के कारण मौत हो गई थी। ओशिवरा पुलिस ने इस केस में इमारत का काम देख रहे सुपरवाइजर जिग्नेश पटेल को आरोपी बनाया है। पटेल ने खुद के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की है।
याचिका में आरोपी ने दावा किया था कि मजदूर के परिजन को बीमा की राशि का भुगतान कर दिया गया है। परिजन को एफआईआर रद्द करने में कोई आपत्ति नहीं है। इस हादसे में उसकी कोई भूमिका नहीं है। मजदूर के परिजनों को केस रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं है। जस्टिस एसबी शुक्रे एवं जस्टिस एमएम साठे की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद कहा कि किसी आपराधिक मामले को रद्द करते समय उसके स्वरूप, उसकी गंभीरता को देखा जाता है। निजी व सिविल स्वरूप के अपराध को छोड़कर अन्य मामलों से जुड़ी एफआईआर सिर्फ इसलिए रद्द नहीं हो सकती है, क्योंकि पक्षकारो ने अदालत के बाहर समझौता कर लिया है। मौजूदा मामले में आरोपी सुपरवाइजर पर तो इमारत में काम करने वाले मजदूरों के लिए जरूरी सुरक्षा उपाय करने में गंभीर लापरवाही बरतने का आरोप है।
मजदूरों को हेल्मेट, सुरक्षा बेल्ट व इमारत में सुरक्षा नेट लगाना नियोक्ता की कानूनी जिम्मेदारी है, ताकि मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा के मुद्दे में पब्लिक पॉलिसी के तत्व नजर आते हैं। ऐसे में इस केस में आरोपी पर लगे आरोपों को ट्रायल के दौरान ही परखा जा सकता है। ऐसे में आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती है।