दिव्य चिंतन : दिल्ली के तख्तोताज पर पांच साल के लिए "खांसी" बैठ गई

हरीश मिश्र
वर्ष 2020 आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक और परिवारों को इतने ज़ख्म दे गया कि नये साल का जश्न कैसे मनाऊं? रस्म अदा करना मात्र औपचारिकता है। तब नववर्ष पर मंगलकामनाएं या ज़ख्मों की वेदना लिखूं... सैनिकों के शौर्य पर या पक्ष-विपक्ष के षड्यंत्र पर लिखूं... पलायन में रिसते घावों पर या थूकने वालों पर लिखूं... थाली पीटने पर या भूखे पेट की आग पर लिखूं...सच तो यह है, शब्द लिखता हूं तो मेरी कलम रुक-रुक कर हिचकी लेती है।
साल की शुरुआत में शरजील इमाम, उमर खालिद, शाहीन बाग में नफरत की बिरयानी पकाते रहे। बुर्क़े के आड़ में छुपे नरभक्षी ताहीर ने दिल्ली को खूनी दरिया में बदल दिया । दिल्ली की सड़कों पर खून देखकर भी व्यवस्था परिवर्तन के नायक को खांसी नहीं आई। जब नफरत की बिरयानी शाहीन बाग में बनी तो भगवाधारी अनुराग ठाकुर, कपिल शर्मा ने फलाहारी खिचड़ी, फालूदा बनाया । सत्तापक्ष और विपक्ष ने धर्मनिरपेक्षता और छद्म-धर्मनिरपेक्षिता की ऐसी चटनी बनाई कि जब ट्रंप पधारे तब "नमस्ते ट्रंप" को "नमस्ते नफरत" में बदल दिया । राजनीति जीती... मानवता हारी और दिल्ली के तख्तोताज पर पांच साल के लिए "खांसी" बैठ गई।
"खांसी" से भक्त लड़ते रहे । तब तक वैश्विक महामारी के वायरस ने शहर-शहर में दस्तक दे दी...जब मौत ने घर देख लिया तब मोदी जी को हिचकी आई । भाईयों बहनों...बस एक दिन जनता कर्फ्यू... 21 दिन..बस फिर 21 दिन.. टोटल लॉकडाउन में रहना होगा।
मोदी जी की वाणी सुनकर भूखे पेट हिंदुस्तान ने थाली और औवेसी ने छाती पीटी।
कोरोना वर्ष में देश की योजनाओं का सबसे अधिक लाभ उठाने वालों ने पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों पर पथराव किया और थूका भी । तब थूकने वालों ने सत्यमेव-जयते की वीरता देखी, जूते खाए, तब माने। इस वर्ष स्वास्थ्य कर्मियों को मानवता की सेवा करते देखा। प्रवासी मजदूरों के पलायन के समय भावुक कर देने वाली तसवीरें देखीं। इस वर्ष पूरे भारत ने परिवार के साथ रामायण महाभारत देखी। कोरोना अपनों को खोने का दर्द, ज़िंदगी भर का रोना दे गया। इस साल नौकरियां जाते, व्यापार- उद्योग बर्बाद होते देखा । मंहगाई खूब बढ़ी। कांग्रेस के महाराजा की बत्ती ( ज्योति ) को नड्डा ने प्रज्ज्वलित किया। ज्योति से लगी आग, तो कमलनाथ अनाथ और शिवराज की ताजपोशी हुई । विधायकों पर खरीद-फरोख्त के आरोप लगे और आरोपित विधायकों को लोकतंत्र में जनता ने जनप्रतिनिधि के रुप में चुना।
भारतीय मीडिया को गिरते स्तर के लिए याद किया जाएगा। छीछोरे के नायक की आत्महत्या का मीडिया ने व्यवसायीकरण किया। इस साल अरनब की कर्कश आवाज़ बहुत सुनी । मौलाना साद को दिल्ली पुलिस ढूंढ नहीं पाई। दूसरी तरफ विकास दुबे के एनकाउंटर में ज़ुल्म की कथा का अंत हुआ । योगी के प्रदेश में अपराधियों की गाड़ी पलटी और भव्य राम मंदिर की स्थापना देखी। इस साल देश की सभी प्रमुख नदियों का जल साफ, सभी नगरों, महानगरों की हवा एकदम शुद्ध हुई। मंदिर-मस्जिद बंद, शराब दुकानें खुलीं और अहाते रोशन हुए।
भारत के वीर सैनिकों और छोटी छोटी आंखों के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवानों शहीद हुए। लेकिन भारत के वीर सैनिकों ने ढाई फीट को लात घूंसो से ऐसा जख्म दिया की इतिहास में लिखा जाएगा।
नितीश का राज तिलक हुआ। गुपकार गैंग का गठबंधन, कश्मीर में भगवा और दिल्ली की सड़कों पर किसानों का आंदोलन जारी है। इस साल आर्थिक दृष्टि से और मानसिक दृष्टि से दरिद्र हुए।
बस उम्मीद है आने वाले नए साल में अच्छे दिन देखने को मिलें। हम स्वागत नहीं करेंगे, तो भी नया साल आएगा। नए साल में सही दिशा में बढ़ने का संकल्प लें। निराशा तो बहुत है किन्तु आशा छोड़ी भी नहीं जाती। केवल शुभ के संकल्प लें और नये साल का स्वागत करें।