भागवती के खुल गए भाग्य

ग्वालियर | भागवती ने आत्मनिर्भर बनकर महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश की है। विपरीत परिस्थितियों के बाबजूद वे न केवल खुद आत्मनिर्भर बनी हैं बल्कि उन्होंने अपने बेटे को भी स्वावलम्बी बनाया है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और मुख्यमंत्री पथ विक्रेता योजना ने माँ-बेटे को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग दिया है।
ग्वालियर जिले के भितरवार विकासखण्ड के ग्राम चीनौर निवासी श्रीमती भागवती के पति श्री बैजनाथ बघेल बीमारी की वजह से दोनों पैरों से दिव्यांग हो गए। बेटा नरेश को भी काम-धंधा नहीं मिला था। जाहिर है वह भी बेरोजगार था। इसी बीच कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन लागू हो गया। ऐसे विपरीत हालात में भागवती को कहीं से कोई सहारा नहीं दिख रहा था। परिवार चलाने की पूरी जिम्मेदारी भागवती के सिर पर थी। भागवती ने हिम्मत नहीं हारी। वे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बने “संतोषी स्व-सहायता समूह” की सदस्य थीं। भागवती ने इस समूह से 50 हजार रूपए की मदद ली और गाँव में ही साड़ियों की छोटी सी दुकान खोल ली। दुकान चली तो आगे बढ़ने की राह भी आसान हो गई।
स्व-सहायता समूह की बैठक में भागवती को पता चला कि मध्यप्रदेश सरकार ने ग्रामीण पथ विक्रेताओं की मदद के लिये योजना शुरू की है। उन्होंने इस योजना से मदद के लिये अपने बेटे नरेश का फार्म भरवा दिया। थोड़े ही दिनों बाद बैंक से 10 हजार रूपए की आर्थिक मदद मिल गई। नरेश ने इस राशि से नाश्ता का ठेला लगाना शुरू कर दिया। इस ठेले पर वे अब चाऊमीन, मोमोज व पेटीज आदि बेचकर अच्छा-खासा कमा लेते हैं। माँ – बेटे मिलकर हर माह लगभग 16 हजार रूपए कमा लेते हैं, जिससे उनके घर का गुजारा अब आसानी से हो जाता है।
आकर्षक रंगों की साड़ियाँ बेचकर भागवती अपने जीवन में खुशियों के नये – नये रंग भर रही हैं। वहीं चाट के ठेले से लजीज व्यंजनों की खुशबू बही तो नरेश का जीवन भी खुशियों से महकने लगा है। माँ-बेटे अपनी खुशियों की दास्तां सुनाते-सुनाते भावुक हो जाते हैं। भागवती कहती हैं कि सरकार की योजनाओं से मेरे और बेटे नरेश के भाग्य खुल गए हैं।