नगर निगमों, पालिकाओं में अध्यक्ष पद पर महिला आरक्षण का क्या लाभ ?

दिव्य चिंतन.......हरीश मिश्र
भारत में देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा महिलाएं हैं। राजनीति में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण देकर संरक्षण दिया गया है। लेकिन ऐसे आरक्षण का क्या लाभ ? आरक्षित सीट पर पत्नी चुनाव लड़े और पति राज करे ?
1974 में संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठा कि पंचायतों और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित की जाएं ।1993 में संविधान में 73 वें और 74 वें संशोधन के तहत पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित की गईं।
उसी प्रक्रिया के तहत प्रदेश के 16 नगर निगमों में महापौर, 99 नगर पालिका और 292 नगर परिषदों के अध्यक्ष पद के लिए राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा आरक्षण की प्रक्रिया संपन्न हुई। इस आरक्षण प्रक्रिया के बाद अध्यक्ष पद महिलाओं के लिए आरक्षित हुए हैं।
अध्यक्ष पद महिलाओं के लिए आरक्षित होने के कारण पूरे प्रदेश में नगर निगमों, पालिकाओं, परिषदों में बनेगी भाभी जी की सरकार... किंतु विडंबना देखिए अध्यक्ष पद महिला आरक्षण के बाद प्रदेश में 16% महिलाओं के नाम उभरकर सामने आए हैं, जो भाजपा, कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दल की सक्रिय राजनीति में हैं। जिनकी धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र में अपनी खुद की पहचान है , वजूद है, जो राजनैतिक दलों में सक्रिय सदस्य हैं और अपनी सक्रियता के आधार पर टिकट मांग रही हैं।
*जबकि विडम्बना देखिए दुनिया के सबसे बड़े राजनैतिक दल के नाम से पहचाने जाने वाले संगठन भाजपा और राष्ट्रीय से क्षेत्रीय दल के रुप में परिवर्तित कांग्रेस के पास 84% आरक्षित सीटों पर प्रदेश में महिला उम्मीदवार नहीं मिल रहीं, जो पार्टी , समाज और राजनैतिक क्षेत्र में दखल रखती हों और प्रथम नागरिक जैसे पद के लिए सुयोग्य हों ?
आजादी के 73 साल बाद भी भाजपा और कांग्रेस को महिला उम्मीदवार नहीं मिल रहे । जबकि इन संगठनों में महिला प्रकोष्ठ भी हैं।
ऐसी महिलाएं जिन्हें उनकी काबिलियत पर उम्मीदवार बनाया जा सके। आरक्षित महिला सीटों पर जो उम्मीदवारों के नाम प्रदेश स्तर पर उभर कर आए हैं, वहां पर महिलाओं के पति सक्रिय राजनीति में हैं। उनकी पत्नियों ने कभी धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक या पार्टी के आयोजनों में भाग भी नहीं लिया। भाजपा, कांग्रेस नेताओं की पत्नियों को ही टिकट देंगे । तब सवाल उठता है कि ऐसे आरक्षण प्रक्रिया का क्या लाभ ? ऐसी आरक्षण प्रक्रिया बंद होना चाहिए ।
जबकि महिला अध्यक्ष पद आरक्षित होंने पर भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के चेहरों पर चमक आ गई । उन महिलाओं का धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र में कोई वजूद नहीं है । उनकी पहचान और वजूद उनके पति से है। इनकी स्वयं की कोई पहचान नहीं है।
मतलब भाभी जी की सरकार होगी और भाई जी की जय जयकार होगी । 5 साल तक भैया जी के रसूख से चलेगी भाभी जी के नाम की सरकार।