काँटो से भरा रास्ता और संघर्ष का जीवन
सामान्य तया लोग प्रवाह के अनुकूल जीते हैं, मंजिल तक पहुँचने के लिए सुगम मार्गों का चयन करते हैं। घर की सुविधाओं और पिता के प्रभाव से जिंदगी परवान चढ़ती है किन्तु कुछ लोग ऐसे होते हैं जो प्रवाह के विपरीत संघर्ष का रास्ता चुनते हैं। ऐसा वे अपने लिए नही बल्कि सार्वजनिक और सांस्कृतिक मूल्यों की पुर्न: स्थापना के लिए करते हैं। सामान्य वर्ग कल्याण आयोग के अध्यक्ष श्री शिव चौबे और उनका परिवार इसी धारा में जूझकर सामने आया है।
श्री शिव चौबे का पैत्रक गाँव जोनतला कभी भोपाल नवाबी का हिस्सा था। नवाबी दौर में भारतीय परंपराएं, मूल्य, संस्कृति और राष्ट्र की अस्मिता किस स्थिति में रही है। इसके उल्लेखों से इतिहास भरा पड़ा है। स्वतंत्रता के बाद हवाओं में ठंडक तो आई लेकिन जीवन की आपाधापी में राष्ट्रबोध कुछ छूटने लगा।
तभी-तभी सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और राजनैतिकदृष्टि से भारतीय जनसंघ सामने आये। श्री शिव चौबे के पूज्य पिता श्री द्वारिका प्रसाद जी चौबे सत्तारुढ़ दल के आकर्षण और प्रलोभन दोनों को नकार कर जनसंघ का दामन थामा। तब कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि संघ विचार के लोग और जनसंघ के रास्ते राजनीति करने वाले लोग कभी सत्ता के शीर्ष पर भी पहुँचेगे। वह संघर्ष का रास्ता था, काँटों से भरा था।
पिता श्री का व्यवसाय सोने-चाँदी का था। घर का वातावरण अभाव और असुविधाओं से दूर था। पिता चाहते तो सत्तारुढ़ दल का दामन थाम कर अपने व्यवसाय को बुलंदियों तक पहुँचा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया और जनसंघ के कार्यक्रमों में, धरनों में, प्रदर्शनों खुल कर हिस्सा लिया। इससे उनके व्यवसाय पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा और तंत्र का दबाव पड़ा सो अलग। लेकिन उन्होंने परवाह नही की और बिना किसी परिणाम की परवाह किये पिता श्री अपने काम में लगे रहेI उनकी प्रारंभिक शिक्षा पिपरिया में जबकि स्नातकोत्तर उन्होंने भोपाल से किया। बालक शिव ने ना केवल अपने गाँव में अपने पिता की उंगली पकड़कर चलना सीखा बल्कि मानसिक और वैचारिक यात्रा के लिए उन्होंने अपने पिता का अनुसरण किया। मात्र सात वर्ष की उम्र में वे बाल स्वयं सेवक बने। घर में संघ और जनसंघ के दायित्ववान व्यक्तियों का आना-जाना था, इस कारण शाखा में मिली शिक्षा के अतिरिक्त भी उन्हें सीखने और विचार को समझने का मौका मिला। वे अपनी शाखा और अपनी टोली में सर्वाधिक सक्रिय और अग्रणी स्वयं सेवकों में गिने जाते थे। चुस्ती से काम करना उनके स्वभाव में है फुर्ती तो मानो अंग-अंग में है। अपनी कक्षा, मोहल्ले और गाँव में चुनौतियों को स्वीकार करना और संघर्ष से मार्ग सुगम बनाने के लिए श्री शिव चौबे जाने जाते हैं। कक्षा में होमवर्क पूरा करने जाना या शिक्षा द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर देने के लिए सबसे पहले हाथ उठाना उनके स्वभाव में रहा है।
शिक्षा को पूरी करके विवाह और सरकारी नौकरी में आए। लेकिन समाजसेवा के जूनुन में कोई कमी नही आई। छात्र जीवन में यदि वे विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहे तो बड़े होकर किसान संघ में। किसान संघ के आंदोलन में श्री शिव चौबे जेल भी गये। लेकिन उनकी क्षमता और कौशल की असली परीक्षा आपातकाल में हुई। आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगा और देशभर में गिरफ्तारियाँ हुई। संघ ने निर्णय लिया कि कुछ स्वयं सेवक भूमिगत रहेंगे। इन भूमिगत स्वयं सेवकों पर दो प्रकार के दायित्व थे एक तो जो जेल में थे उनके परिवारों को सांत्वना और सहायता पहुँचाना और दूसरा सामाजिक जागृति की अलख जलाये रखना। श्री शिव चौबे भूमिगत रहे और आपातकाल की पूरी अवधि सतत् सक्रिय रहकर अपना दायित्व निभाते रहे।
शासकीय सेवा में रहकर भी वे समाज सेवा में सक्रिय रहेI मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से उनका रिश्ता आज का नही पीढिय़ों का है। श्री शिव चौबे का गाँव ‘‘जोनतला’’ और शिवराज सिंह चौहान का गाँव ‘‘जेत’’ आस-पास हैं। ना केवल गाँव के करीबी का रिश्ता बल्कि महाविद्यालयीन जीवन में भी दोनों साथ रहे। श्री चौहान ने उन्हें अपना राजनैतिक सलाहकार नियुक्त किया और गौ संर्वधन का उपाध्यक्ष बना कर राज्य मंत्री का दर्जा प्रदान किया बाद में अध्यक्ष का कार्य दायित्व सौपा। श्री चौबे खनिज निगम के अध्यक्ष भी रहे हैं Iअपने राजनैतिक, सांस्कृतिक और जनचेतना के दायित्वों के निर्वाहन के साथ-साथ श्री चौबे कर्मचारी संगठनों और सामाजिक संगठनों में भी सक्रिय हैं। श्री चौबे भोपाल स्थित भगवान परशुराम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं महू तहसील के अंतर्गत जानापाव जिसे भगवान परशुराम जी की जन्म स्थिली माना जाता है, के विकास कार्यों में भी सक्रिय हैं। यह दोनों सामाजिक समरसता, जीवन मूल्यों की स्थापना, कुरीतियों के निवारण के लिए अभियान चलाने का केन्द्र है।
श्री शिव चौबे सदैव सक्रियता और संघर्ष के लिए जाने जाते हैं। वे सोलह से अठारह घंटे प्रतिदिन कार्य करते हैं। प्रतिदिन सैंकड़ों लोगों से मिलना उनके कामों में यथा संभव सहायता करना उनका दैनिक कार्य है। कई बार कार्यों की अधिकता से उनका शयन और भोजन दोनों प्रभावित होता है लेकिन फिर भी उनकी कोशिश होती है कि उनके पास आने वाला प्रत्येक व्यक्ति संतुष्ट और प्रसन्न होकर ही जाए। उनका यह काम तब और बढ़ जाता है जब मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान प्रवास पर होते हैं। - पंडित रमेश शर्मा