अरहर की बोनी, बीजोपचार तथा कीट-व्याधि से फसल को बचाने की विधि

जबलपुर l अरहर खरीफ के मौसम की महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है और गहरी जड़ों से मिट्टी की संरचना को मजबूत करती है, साथ ही पानी को अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाती है। किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों को खरीफ के मौसम में अरहर का बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए जरूरी जानकारी प्रदान की है। साथ ही उन्हें अरहर की बोनी की विधि, बीजोपचार तथा कीट एवं रोगों से फसल की सुरक्षा के उपायों से भी अवगत कराया है।
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के उपसंचालक रवि आम्रवंशी के मुताबिक जबलपुर की मिट्टी और कृषि-जलवायु स्थितियों में वर्षा आधारित और सिंचित खेती में अरहर के उच्च उत्पादन की जबरदस्त क्षमता है। किसान उचित विधि से अरहर की खेती कर 18 से 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि अरहर की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी से गहरी दोमट मिट्टी तथा मध्यम ऊंची व ढलान वाली भूमि उपयोगी होती है। दलहनी फसल होने के कारण यह मिट्टी को नाइट्रोजन प्रदान करती है। किसानों द्वारा इसे कवर फसल के रूप में भी उगाया जाता है। अरहर की खेती से मिट्टी के कटाव को कम किया जा सकता है। साथ ही इसे सब्जी, दलहन, तिलहन आदि फसल के साथ अंतर फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है।
श्री आम्रवंशी ने बताया कि अरहर की खेती के लिए किसानों को मानसून की शुरुआत के साथ मिट्टी की दो बार जुताई कर भुरभुरी कर लेना चाहिए। भूमि की तैयारी के समय जल निकास की भी उचित व्यवस्था करना चाहिए। उन्होंने बताया कि पूसा अरहर-16, यूपीएएस-120, प्रभात एवं पूसा अगेती 120 से 130 दिन में उत्पादित होने वाली तथा मालवीय अरहर-13 एवं नरेन्द्र-एक 210 से 220 दिन में उत्पादित होने वाली अरहर की उन्नत किस्में हैं । बोनी से पहले 2.5 से 3 ग्राम कैप्टान या थीरम के साथ अरहर को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। किसानों को जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे सप्ताह तक 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में बोनी करना चाहिए। बीजों की रोपाई करते समय कतार से कतार की दूरी 60 से 75 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज को 4 से 5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास ने किसानों से अरहर की खेती में खाद एवं उर्वरकों की उपयोगिता को भी साझा किया। उन्होंने बताया कि गोबर की खाद और रॉक फॉस्फेट को खेत की तैयारी के समय और बुआई से 15 से 20 दिन पहले डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन और पोटाश उर्वरक को बुआई के समय उपयोग करना चाहिए। साथ ही 10 टन गोबर की खाद की मात्रा का प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में उपयोग करना चाहिए। श्री आम्रवंशी के अनुसार अरहर जबलपुर जिले में अंतरफसल के लिए उपयुक्त है। कम अवधि वाली अरहर किस्मों की उपलब्धता के साथ वर्षा आधारित परिस्थितियों में अरहर के साथ-साथ अनाज, तिल, मूंगफली, मूंग एवं लोबिया को अंतरफसल के रूप में उगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि खेत को 45 से 50 दिन तक खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। पहली निदाई-गुड़ाई अरहर की बुआई के 25 से 30 दिनों के बाद एवं दूसरी 45 से 50 दिनों के बाद करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि फली छेदक कीट आमतौर पर अरहर की फली में लगने वाला का एक कीट है। इसके अलावा लार्वा कीट अरहर फसल की कोमल पत्तियों और टहनियों को खाते हैं। इन कीटों से फसल की सुरक्षा करने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में एक हजार लीटर पानी में 750 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफॉस 40 ईसी दवा मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। विल्ट रोगी पौधों में बुआई के 5 से 6 सप्ताह बाद धीरे-धीरे पीलापन और मुरझाहट दिखाई देने लगती है। फसल के कॉलर क्षेत्र और ऊपरी जड़ों पर काले घाव देखाई देते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए किसानों को फसल चक्र अपनाना चाहिए। साथ ही सहनशील रोग रोधी एन पी - 15 एवं एन पी-38 किस्मों की बोनी करना चाहिए। श्री आम्रवंशी ने किसानों को बताया कि दो तिहाई से तीन चौथाई फलियाँ भूरी हो जाने पर की फसल की कटाई करनी चाहिए। कटे हुए पौधों को ढेर बनाकर धूप में सूखने के लिए कुछ दिनों के लिए छोड़ देना चाहिए। थ्रेसिंग फलियों को डंडे से पीटकर करनी चाहिए।