देवतुल्य कार्यकर्ता और प्रथम चौकीदार की कहानी

दिव्य चिंतन (हरीश मिश्र)
संघर्ष से शिखर तक - राकेश शर्मा
रायसेन जिला भाजपा के प्रथम चौकीदार (जिलाध्यक्ष) पद के अनेक दावेदार थे, अर्थात "एक अनार सौ बीमार।"
दावेदारों के चेहरों पर रौनक लाने के लिए देवतुल्य कार्यकर्ता मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाते रहे।
वैसे तो हर बात का एक मौसम होता है, लेकिन ठंड के मौसम में रजाई ओढ़कर सपने देखने का आनंद ही कुछ और होता है। पद की बात हो, मंद-मंद हवा चल रही हो और रामलीला में
उम्मीद के झूल डले हों, देवतुल्य झूला झुला रहे हों, तब सपने देखने का आनंद ही कुछ और होता है। इसीलिए ठंड के मौसम में अनेक दावेदारों ने सपने देखे।
ऐसी मान्यता है कि भाजपा के प्रत्येक देवतुल्य कार्यकर्ता के अंदर एक आत्मा और एक अंतरात्मा होती है। आत्मा संगठन से जुड़ी होती है और अंतरात्मा वरिष्ठ नेतृत्व के चरणों में बंधी होती है। आत्मा कहती है कि "संगठन सर्वोपरि है," और अंतरात्मा की आवाज़ आती है, संगठन छोटा होता है, वरिष्ठ नेतृत्व बड़ा होता है। वरिष्ठ नेतृत्व से मिल और आशीर्वाद ले, नहीं तो शुभ कार्य नहीं होगा।"
अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर दावेदार और देवतुल्य कार्यकर्ता दिल्ली से भोपाल तक, सत्ता से संगठन तक, फार्महाउस से कोठी तक, साधना शक्ति पीठ से शिव धाम तक, बाबाओं से फकीरों की चौखट तक चक्कर लगाते रहे। हर चौखट पर आश्वासन, आशीर्वाद और भभूत मिलती रही। अंत में विदाई के समय नेतृत्वकर्ता, बाबा और फकीर तीनों कहते, "मेरे भरोसे मत रहना, कर्म भी करना और उनसे और मिल लेना।"
सच भी है, नेतागिरी के धंधे में वादा बाजार की तरह कीमत तय नहीं होती। नेतागिरी का पूरा धंधा हवा के रुख के आधार पर तय होता है।
हवा की गति और दबाव को एनीमोमीटर से मापा जाता है। लेकिन ऐसा कोई यंत्र नहीं बना, जो भाजपा नेतृत्व की गति, दबाव और मन की बात को नाप सके।
जब नेतृत्व ने आदेश दिया, तब दावेदारों और सपने दिखाने वाले देवतुल्य कार्यकर्ताओं की कमीज़ें उसी खूंटी पर सूख रही थीं, जहां टंगी थीं। लंबी प्रतीक्षा, जद्दोजहद, गुटबाजी और तिकड़मबाजी के बाद पटकथा का सुखद अंत हुआ ।
स्वर्गीय प्यारेलाल के लाल, सांचेत गांव की माटी का चंदन लगाकर, संघ शाखाओं में खेले,
प्रभु राम के खेवनहार और साधना से असंभव को संभव बनाने वाले शिव साधक, बेहद खूबसूरत सांचे में ढले , सहज सरल राकेश शर्मा के रूप में जिले के 2,75,000 देवतुल्य कार्यकर्ताओं को प्रथम चौकीदार (जिलाध्यक्ष) मिल ही गया।
स्वास्थ्य राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने शर्मा की ताजपोशी में मुख्य भूमिका निभाई।
उन्होंने पटवा और शर्मा के बीच की दूरी मिटाई, गलतफहमियां समाप्त कराईं, अहंकार की आग बुझाई। पटवा जी के निवास पर रामपाल जी और प्रभु राम जी ने खिचड़ी बनाई। दोनों तरफ राम, बीच में बैठे सुन्दर सुत को राकेश शर्मा ने खिचड़ी खिलाई। तब संक्रांति पर खुशियों की खबर आई। खुशी में लड्डू खाए और आसमान में पतंग उड़ाई।
इसके बाद जिला मुख्यालय पर भाजपा कुटी में, शर्मा को द्वितीय बार जनसेवा का अवसर मिलने पर उत्सव मनाया गया। समर्थकों ने तालियां बजाईं और विरोधियों ने छाती पीटी। स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने बिना अनुमति के फोन टेप करने वाले देवतुल्य कार्यकर्ताओं का बिना चीरफाड़ के ऑपरेशन कर दिया। कुल मिलाकर अभी तो प्रथम चौकीदार की पतंग आसमान में उड़ रही है। जो तनी-तनी है। तनी नहीं रहे तो पतंग उड़ भी नहीं सकती। विरोधी भी सक्रिय हैं, प्रतिबंधित चाइनीज मांजा से पतंग बांधकर उड़ा रहे हैं।
सहज, सरल शर्मा जिस कुटी के शिखर पर बैठकर पतंग उड़ा रहे हैं, उसकी नियति क्या होगी? यह तो तत्काल नहीं कहा जा सकता, मगर यथार्थ यह है कि वह एक साधक हैं और उन्हें समरसता के रंगों से सभी समाज के देवतुल्य कार्यकर्ताओं के साथ होली खेलनी होगी।
लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )