पापा ने उम्रभर ली पारम्परिक उपज, बेटे ने उपजा दी फलों की फसल
खरगोन /कहते है कि एक पीढ़ी के बाद निश्चित ही बदलाव की शुरुआत होती है। ऐसे ही बदलाव का आगाज कसरावद जनपद के टिगरिया गांव के रवि पाल ने किया। जिस की पूरा परिवार आज सराहना कर रहा है। 33 वर्षीय रवि पाल की नई सोच और शासन के संसाधन व प्रशासन के मार्गदर्शन ने आज वे उद्यानिकी फसलों के एक स्थापित युवा किसान बनकर उभरे हैं। बात कोरोना से पहले 2015-16 की है। रवि के पापा श्री वल्लभ जी ने अपने सुपुत्र को खेती किसानी का पूरा काम सौंप दिया। एग्रीकल्चर में छत्तीसगढ़ से डिप्लोमा करने वाले रवि पापा के भरोसे पर खरा उतरे। रवि ने शुरुआत से ही उद्यानिकी विभाग के मार्गदर्शन और योजना के सहयोग से उद्यानिकी फसलों की शुरुआत करते हुए पहले खरबूजे और तरबूज से शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने केले और पपीते के साथ प्रयोग किया। जो आज उनके लिए बड़े फायदेमंद साबित हो रहे है।
औद्योगिक नगर के पास होने का फायदा मिला
रवि पाल पिता वल्लभ पाल बताते है कि पारम्परिक खेती छोड़ने के बाद पूरी तरह उद्यानिकी फसलों की खेती से अच्छा मुनाफा होने लगा तो परिवार के लोगों ने सहयोग दिया। केले और पपीते निमरानी औद्योगिक नगर की कंपनी ने एक्सपोर्ट करने से उनको सहूलत होने लगी। साथ ही खरबूजे और तरबूज निमाड़ सहित उज्जैन ने व्यापारियों की दिलचस्पी से उनका काम आसान कर दिया। अब हाथों हाथ अच्छे दाम के साथ फल बिक जाते हैं। पारम्परिक खेती की तुलना में फलों की खेती से अच्छा मुनाफा होने लगा है।
ड्रिप योजना और मार्गदर्शन का रहा योगदान
फलों की खेती कैसे और कहा से शुरू करे इसकी चिंता उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने दूर कर दी। उद्यानिकी विभाग के उपसंचालक श्री केके गहरवाल ने बताया कि पहले तो उन्हें पीएमकेएसवाय से 2015-16 में 0.800 हेक्टेर में ड्रिप सिंचाई में 56000 रुपये का अनुदान दिया। फिर निरंतर विभाग के संपर्क में आने पर मार्गदर्शन दिया गया। आज 2.500 एकड़ में खरबूज और इतने ही रकबे में तरबूज के साथ 2.500 एकड़ में केला और पपीता लगा है।