कौन था घर का भेदी ...? एक मासूम, तीन गुनहगार और पुलिस की कसम

14 घंटे चला ऑपरेशन किलकारी
-रायसेन l धरती नौतपा की आग में झुलस रही थी। सूर्य की तपन ऐसी थी कि मानो आसमान से आग बरस रही हो। सुबह के 11 बजे थे, रायसेन जिले की बेगमगंज तहसील के गाँव पलोहा में सब कुछ सामान्य दिख रहा था, लेकिन आसमान की ख़ामोशी और थमी हुई हवा किसी अनहोनी की आहट दे रही थी।
गाँव की गलियों में सूर्य की तपन के कारण अजीब सन्नाटा पसरा था,
और तभी...
एक ख़बर आग की तरह गाँव में फैल गई—
> "सिलवानी विधायक देवेंद्र पटेल का पोता, और गाँव के प्रतिष्ठित किसान परिवार का दो वर्षीय बालक ‘दिव्यम’, रहस्यमय ढंग से लापता है!"
यह सुनते ही गाँव में सनसनी फैल गई। गाँव के बच्चे-बूढ़े, हर कोई भाग पड़ा-कोई कुएँ, तालाब की तरफ़, कोई झाड़ियों में झाँकने लगा। लेकिन... बच्चा कहीं नहीं मिला।
माँ की चीत्कार दिल दहला देने वाली थी। उसकी रुलाई में एक ऐसा दर्द था जिसे सुनकर पत्थर भी पिघल जाए। पिता भोपाल में थे। सूचना मिलते ही वे बदहवास हालत में गाँव की ओर रवाना हो गए। उनकी आँखें जैसे किसी गहरे अंधकार में डूब चुकी थीं-चेहरे पर अविश्वास और दिल में बेतहाशा घबराहट थी।
तब तक परिजनों ने पुलिस को सूचना दे दी थी। कुछ ही देर में सायरनों की आवाज़ें, धूल उड़ाती गाड़ियाँ और खाकी वर्दियों की हलचल ने पूरे गाँव को घेर लिया।
पुलिस महानिरीक्षक नर्मदापुरम मिथलेश कुमार शुक्ला, उपमहानिरीक्षक प्रशांत खरे और पुलिस अधीक्षक पंकज पांडे, अतरिक्त पुलिस अधीक्षक कमलेश कुमार खरपुसे,
उप-विभागीय पुलिस अधिकारी आलोक श्रीवास्तव तत्काल घटनास्थल पर पहुँचे और शुरू हुआ —
> ऑपरेशन किलकारी!
ज़िले भर के अनुभवी उप-विभागीय पुलिस अधिकारी, थाना निरीक्षक, उपनिरीक्षक और हवलदारों की टीमें तैनात कर दी गईं। अपराधियों को पकड़ने में दक्ष K-9 (खोजी कुत्ता) बुलवाया गया, जो घटनास्थल की गंध सूँघते हुए दो किलोमीटर दूर तक गया।
ड्रोन कैमरों से जंगलों में सर्च ऑपरेशन शुरू हुआ।
दूसरी ओर,साइबर विशेषज्ञों की टीम अपराधियों की 'मोबाइल संपर्क " पर नज़र रखने लगी।
लेकिन... जैसे-जैसे तलाश आगे बढ़ी, रहस्य और गहराता गया।
न कोई गवाह, न कोई सुराग। घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे से भी कुछ हाथ नहीं लगा।
अब पुलिस के सामने सवाल और गहरे हो चुके थे-
क्या यह किसी व्यक्तिगत दुश्मनी का मामला है
या फिरौती का ?
और इस सन्नाटे में गूंज रहा था केवल एक सवाल...
*" दिव्यम कहाँ है? "*
इधर माँ की आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, और उधर आसमान का सब्र भी टूट गया। जैसे ही सूरज ढलने को हुआ, घने काले बादलों ने डेरा डाल लिया।
कुछ ही देर में बिजली कड़की और फिर बादल फट पड़े।
गाँव की फ़िज़ा में अब गर्म हवा नहीं, बल्कि अज्ञात डर की ठंडी सनसनाहट थी।
पुलिस महानिरीक्षक की नज़रें रिश्तेदारों पर टिकी थीं लेकिन दिमाग़ में सैकड़ों प्रश्न उलझे हुए थे।
पुलिस अधीक्षक ने दस पुलिस टीमों का गठन किया और तीस हज़ार रुपये इनाम की घोषणा की, लेकिन—
रात हो चुकी थी, गाँव का हर घर बंद था, लेकिन हर दरवाज़े के पीछे एक ही चर्चा थी-
"कहीं दिव्यम को मार तो नहीं दिया गया ?"
उधर माँ की आँखों से आँसू बहते ही जा रहे थे...
और इधर, आसमान भी थककर चुप हो गया।
बारिश थम चुकी थी, सायरन बंद थे लेकिन पुलिस की सरगर्मी जारी थी।
अब पुलिस की नज़र उन संदेहास्पद चेहरों पर टिक गई थी, जो घर के बेहद करीब थे।
नौकर, ड्राइवर, मित्र और यहाँ तक कि कुछ रिश्तेदार भी।
क्योंकि जो जान-पहचान वाला होता है, वही घर की चौखट लाँघ सकता है...
और बच्चा गोद में उठा सकता है— बिना रोए, बिना शोर किए, और सीसीटीवी की निगाह से बचते हुए।
तलाशी के दौरान एक टाइप किया हुआ, लेमिनेटेड पत्र मिला—
> हमें डेढ़ किलो सोना चाहिए... लेकिन ध्यान रहे, वो सोना सिर्फ ‘पंजाब ज्वेलर्स’ का हो। और हाँ, पुलिस तक गए तो बच्चा नहीं, सिर्फ खिलौना वापस मिलेगा…
जैसे-जैसे चिट्ठी पढ़ी जा रही थी, माँ बच्चे की तस्वीर सीने से लगाए बेहोश पड़ी थी,
और पिता... दीवार पर सिर टिकाकर खुद से पूछ रहा था, "कौन है घर का भेदी...?"
तभी पुलिस अधिकारी कुछ क्षण के लिए स्तब्ध रह गए—
"पंजाब ज्वेलर्स!"
यह माँग सिर्फ फिरौती नहीं थी, यह किसी भीतरी व्यक्ति की ओर इशारा कर रही थी- बस, यहीं से पुलिस की नज़र पिता की बुआ के बेटे अरविंद उर्फ अन्नु पटेल की संदिग्ध गतिविधियों पर टिक गई।
पुलिस की कड़ी पूछताछ में अरविंद टूट गया। सच्चाई उसकी ज़ुबान पर थी। अब शेष दो अपहरणकर्ताओं पर साइबर सेल की नज़र थी।
अरविंद ने बताया कि उसने अपहरण की साजिश राहुल कुर्मी और उमेश कुर्मी के साथ 15 दिन पहले रची थी।
इसके लिए ईको वाहन की व्यवस्था की गई और भोपाल में किराए पर कमरा लिया गया।
उसे पता था कि आज परिवार के पुरुष सदस्य भोपाल गए हैं। उसे यह भी जानकारी थी कि कैमरे कहाँ लगे हैं और उनका कवरेज किस दिशा में है।
धन प्राप्त करने के लिए उसने यह साजिश रची।
मुख्य साजिशकर्ता अरविंद ने बच्चे को गोद में उठाया, पीछे के दरवाज़े से निकलकर राहुल कुर्मी के साथ मोटरसाइकिल पर मुख्य मार्ग तक पहुँचा।
फिर ईको वाहन में राहुल और उमेश बच्चे को लेकर निकल पड़े। बच्चे को नींद की गोली दी गई, लेकिन ईश्वर को कुछ और मंज़ूर था। गाड़ी रास्ते में खराब हो गई। उन्होंने एक मोटरसाइकिल खरीदी और बच्चे को लेकर छिंदवाड़ा की ओर रवाना हो गए। भोपाल के आसपास प्रधानमंत्री की यात्रा के चलते सघन जाँच चल रही थी, इसलिए उन्होंने दिशा बदल दी।
गाँव की पगडंडियों, मुख्यमंत्री सड़क और प्रधानमंत्री सड़क का उपयोग करते हुए वे घटना स्थल से 300 किलोमीटर दूर छिंदवाड़ा जिले के तामिया पहुँचे।
पुलिस की एक सतर्क टीम ने छिंदवाड़ा पुलिस के सहयोग से राहुल कुर्मी और उमेश कुर्मी को धर दबोचा और दिव्यम को सुरक्षित बरामद किया।
14 घंटे में मानवीय रिश्तों को झकझोर देने वाली यह कथा समाप्त हुई और ‘ऑपरेशन किलकारी’ सफल रहा।
जब दिव्यम को लेकर पुलिस की गाड़ियाँ गाँव में दाख़िल हुईं, गाड़ी से उतरते ही पुलिस अधीक्षक की गोद में मासूम दिव्यम था। सिलवानी विधायक देवेंद्र पटेल, परिजन और ग्रामीणों ने पुलिस पर फूल बरसाए। माँ ने बेसुध होकर बच्चे को सीने से लगाया,
पिता की आँखें भीग गईं, लेकिन ये आँसू दुःख के नहीं थे, ये थे- विश्वास, राहत और धन्यवाद के।
वो दीवार, जिससे सिर टिकाकर वह खुद से सवाल कर रहा था —
अब उसी दीवार के सहारे खड़े होकर बच्चे की मुस्कान निहार रहा था।
और वहीं खड़े थे वे पुलिस अधिकारी और जवान,
जिन्होंने ‘ऑपरेशन किलकारी’ को सिर्फ मिशन नहीं,
अपनी जिम्मेदारी माना।
गाँव की गलियों में अब न धूल थी, न कीचड़ —
अब थी सिर्फ़ एक गूंज — मासूम की किलकारी।
और इस किलकारी ने बता दिया कि—
> "इंसानियत अभी ज़िंदा है...
और जब पुलिस अपने फ़र्ज़ पर डट जाए —
तो न कोई अपराध टिकता है, न अपराधी ....