जनजाति गौरव का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक योगदान

भोपाल l बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल में "जनजातीय गौरव: ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक योगदान" विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का शुभारंभ प्रातः 11:00 बजे अतिथियों के आगमन एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
मुख्य अतिथि के रूप में माननीय श्री दुर्गादासजी
उइके, केंद्रीय राज्य मंत्री जनजानतीय कार्य मंत्रालय।
विशिष्ट अतिथि माननीय डॉ कुंवर विजय शाह जी,जनजातीय कार्य विभाग मध्यप्रदेश शासन
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री मोहन नारायण गिरी जी ने की। विषय विशेषज्ञ के रूप में श्रीमती दीपमाला रावत जी भी अतिथि के रूप में उपस्थित रही।
मां शारदा वंदना के साथ अतिथियों द्वारा किया गया कार्यक्रम का संचालन आयुषी सिंह द्वारा किया गया तत्पश्चात कुलगुरु प्रो सर एसके जैन द्वारा केंद्रीय मंत्री दुर्गादास जी उईके को अंग वस्त्र, श्रीफल तथा पौधा देकर स्वागत किया । माननीय डॉक्टर कुंवर विजय शाह मंत्री जी का भी स्वागत अंग वस्त्र ,श्रीफल तथा पौधा देकर किया गया । प्रोफेसर रुचि घोष दस्तीदार द्वारा कुलगुरु प्रोफेसर। एस .के.जैन जी का स्वागत अंग वस्त्र ,श्रीफल तथा पौधा देकर स्वागत किया गया । मोहन नारायण गिरी जी तथा दीपमाला रावत जी का भी स्वागत प्रोफेसर अनीता धुर्वे द्वारा अंग वस्त्र , श्रीफल एवं पौधा देकर किया गया । तत्पश्चात कार्यक्रम के समन्वयक प्रोफेसर अनीता धुर्वे जी ने कार्यक्रम की रूपरेखा रखी तथा जनजातियों को समझना उनकी भाषा, लिपि, औषधियां एवं उनके ज्ञान परंपरा की अनुभूति करने के लिए यह कार्यशाला रखी गई है। इसका उद्देश्य नवीन पीढ़ी को स्वतंत्रता सेनानी तथा विलुप्त होते जा रहे हैं जनजाति संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कुलगुरु महोदय द्वारा उद्घाटन भाषण दिया गया।
यह कार्यशाला जनजातीय समाज के गौरवमयी इतिहास और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने तथा भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी।
जनजाति समाज का स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य योगदान
कुलगुरु ने जनजातीय समाज के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत का जनजातीय समाज अपनी आध्यात्मिक परंपराओं, विशिष्ट संस्कृति और जीवन मूल्यों के साथ सदियों से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है।
कुलगुरु ने स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज के संघर्षों को रेखांकित करते हुए कहा कि जब भी देश की संप्रभुता पर संकट आया, जनजातीय समाज ने अपने शौर्य और बलिदान से राष्ट्र की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी शासन ने जब अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए इन समाजों को शोषण का शिकार बनाया, तब संथाल विद्रोह, सिदो-कान्हू के नेतृत्व में संघर्ष, भगवान बिरसा मुंडा का आंदोलन, तिलका मांझी की क्रांति, मणिपुर का संग्राम और नागा आंदोलन जैसे अनेक विद्रोह हुए, जिनमें जनजातीय समाज ने अपनी वीरता का परिचय दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि संगठित आंदोलनों के अतिरिक्त, जनजातीय समाज ने व्यक्तिगत स्तर पर भी बलिदान की अमिट गाथाएं लिखीं, जिनमें से कई इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो सकीं। लेकिन आज भी जनजातीय समाज अपनी परंपराओं, लोकगीतों और लोकगाथाओं के माध्यम से उन वीर बलिदानियों को स्मरण करता है।
कार्यशाला के अंत में कुलगुरु ने जनजातीय समाज के संघर्ष और बलिदान को नमन करते हुए कहा कि राष्ट्र की स्वतंत्रता में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने सभी शिक्षार्थियों और शोधकर्ताओं से आह्वान किया कि वे जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास को अध्ययन और शोध के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं।
कुलगुरु एस के जैन जी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया अतिथियों का स्वागत कर कुलगुरु जी ने बताया बहुत सारे लोगों के मन में प्रश्न होगा की जनजाति गौरव क्या है वनवासी बांधों को हम अपने से छोटा समझते हैं पर ऐसा नहीं वनांचलजीवन वनांचल जीवन को मैंने नजदीक से देखा है उन्होंने अपने झाबुआ और नागालैंड के वनवासी भाइयों का अनुभव साझा किया तथा बताया कि उनके पास जो वैज्ञानिक पद्धति है वह हम लोगों के पास नहीं है उनके पास चीज लिखित में नहीं है पर प्रैक्टिकल नॉलेज उनके पास बहुत है। उनके पास जो ज्ञान है पद्धतियां है वह हमारे पास नहीं है नए विज्ञान पद्धति से जनजाति ज्ञान को जोड़ दिया जाए तो माननीय प्रधानमंत्री जी का जो सपना है 2047 का वह पूरा हो सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं मोहन गिरी जी ने बताया कि जनजाति शब्द हम सुनते हैं पर प्रत्यक्ष दुनिया से उनका कोई संबंध नहीं है यही समझते हैं जनजाति के लिए हमारे प्रश्न होते हैं क्या वह अनपढ़ है ?वे अशिक्षित है? उनकी ज्ञान,कला ,परंपरा ,भाषा इसकी आवश्यकता है क्या? ऐसे प्रश्न मन में उठते हैं हमारी नई पीढ़ी को लाइब्रेरी या सिनेमा में जो दिखाया गया है वैसा यह समुदाय नहीं है हमें हमेशा उनका कुरूप चेहरा ही दिखाया गया है, आज का कार्यक्रम कोई सामान्य कार्यक्रम नहीं है हम लोग जो पीढ़ीयो से जो पाप करते आ रहे हैं उसे धोने का काम कुछ अंश में हम वह पाप आज घटा सकते हैं इसलिए यह कार्यक्रम है । दर्शनशास्त्रियों ने कहा की राष्ट्र का जन्म होता है उसकी मृत्यु अटल है कई राष्ट्र जन्मे और इतिहास के गर्त में खो गए पर वही इतिहासकार जब भारत के बारे में लिखता है उसकी कलम यहां आकर रूकती है और वह कुछ इस तरह लिखते हैं "कुछ तो बात है हमारी हस्ती में"49 सभ्यता में 45 सभ्यता नष्ट हो गई केवल चार सभ्यता जीवित रही उनमें से एक सभ्यता हमारे भारत की सभ्यता है। सिकंदर कभी भारत से लड़ ही नहीं सका वह यहां से लौट गया और उसकी मृत्यु हो गई फिर भी हम लोग लिखते हैं "जो जीता वही सिकंदर" हमारे यहां जो जनजातीय ने राष्ट्र को बचाने अपनी आहुति दी वह जनजाति सिकंदर है उन्होंने सोमनाथ मंदिर को सुल्तान महमूद से बचाने वाले देवड़ा जी भील की अमर गाथा बताइ। तत्पश्चात रानी दुर्गावती की गौरव गाथा बताइ 19 साल की युवती ने कालिंजर के मुख्य द्वार में किस प्रकार रण रागिनी रणचंडी बन शत्रु को मुख्य द्वार में मार गिराया उनकी वीर गाथा उन्होंने बताई। अकबर के सामने न झुकने वाली और अकबर को ललकारने वाली रानी ने कहा काली की बेटी तलवार से तुम्हारा स्वागत करूंगी। राणा पूंजा ने महाराणा प्रताप की किस मदद की यह उन्होंने बताया । 1857 का मूल इतिहास हमसे छुपा लिया गया ब्रिटिशों को किस प्रकार हमारे जनजाति नायकों ने धूल चटाई । उनकी वीर गाथाओं को जानकारी अगर हमें जाननी है तो बाहर लगी प्रदर्शनी में जाकर आप अधिक से अधिक जानकारी देख सकते हैं ।उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा भगवान क्यों कहते है यह भी बताया।
गिरि जी ने बताया कि गांधी जी ने 1842 में अंग्रेजों भारत चले जाओ यह बोला था लेकिन उससे भी पूर्व 42 वर्ष पहले बिरसा मुंडा ने कहा था कि अंग्रेजों भारत छोड़ो भारत तुम्हारा नहीं है। हमारे संस्कृति के आधार भारतीय मनीषियों ने हमें कहा है कि हमारी कला, भाषा ,परंपरा, वेशभूषा जो आज है वह सारी संक्रमित है लेकिन विशुद्ध संस्कृति जहां है वह जनजाति समाज हैं ।
जनजाति विषय विशेषज्ञ दीपमाला जी ने बताया मां भारती के वीरों को अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के सहयोग से लगाई गई प्रदर्शनी में आप जिन वनवासी नायकों को देखा है उनको आपके सामने रखती हूं और राज्यपाल जी के आदेश से यह जो जनजाति गौरव विषय पर कार्यशाला मनाया जा रहा है यह जन जन तक इसकी ज्योति फैलाना हेतु कार्यशाला की आवश्यकता है। आपके सामने केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री इसलिए है क्योंकि सिर्फ कागजी कार्यवाही ना रहा यह प्रदर्शनी द्वारा बच्चों के ज्ञान बढ़ाने हेतु लगाया गया है विश्वविद्यालय में पप्रतियोगिताओं का आयोजन जनजाति के गौरव को जन जन तक पहुंचाने हेतु हुआ है। इस कार्यक्रम की प्रतियोगिताओं में सिर्फ जनजाति छात्र ही नहीं गैर जनजाति को भी इसमें सम्मिलित कर यह कार्यक्रम जन जन तक पहुंचे यह हमारा लक्ष्य होगा । माननीय राज्यपाल महोदय जी का संदेश मैं आपके समक्ष लाई हूं जनजाति समाज को देखने की एक दृष्टि आपको इस प्रदर्शनी द्वारा मिलेगी जो जन-जन तक आपके सहयोग से जनमानस तक पहुंचेगी।
विशिष्ट अतिथि विजय शाह कुंवर जी ने बताया कि यूनिवर्सिटी मां सरस्वती का मंदिर है । भारत सरकार के मंत्री हमारे सांसद आदरणीय दुर्गादास किसी परिचय के मोहताज नहीं यह मंत्री बाद में बने इनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है वनवासी बंधुओं पर 50 से ज्यादा पुस्तके इन्होंने लिखी हैं, ऐसा मंत्री हमें प्राप्त हुआ यह भारत के सौभाग्य की बात है। माननीय मुख्यमंत्री जी की बहुत कोशिश रहती है कि वह जनजाति गौरव देश के स्वतंत्रता में जिनका सहयोग रहा उन्हें पूरा सम्मान प्राप्त हो। कुलगुरु को पहले वाइस चांसलर कहा जाता था लेकिन हमारी सरकार उनकी नई सोच ने अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त कर वॉइस चांसलर को कुलगुरु बनाया उन्होंने एस के जैन जी को कहा आप सौभाग्यशाली है कि आप वाइस चांसलर नहीं आप कुलगुरु है। कुलगुरु शब्द में जो 'गुरु' है अपनेपन की भावना झलकती है। दीपमाला जी जनजाति परंपरा को आगे ले जा रहीं हैं । वह आदिवासी गौरव को और आगे बढ़ा रही है इसके लिए उनको शुभकामनाएं दी। उन्होंने आगे बताया श्रीफल राष्ट्रवाद का प्रतीक है यह बाहर से सख्त और अंदर से मीठा, श्रीफल का पानी अमृत है यह भी बताया और पौधा दूसरों के लिए जीने की प्रेरणा देता है,शोभा बढ़ाता है, फूल देता है, ऑक्सीजन देता है, पंछी को घर बनाने के लिए घोंसला बनाने के लिए जगह देता है, मनुष्य के अंतिम समय में ही भी पौधा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है दूसरों के लिए जीने की प्रेरणा पौधा देता है। उन्होंने बताया कि देश का इतिहास संस्कृति और सभ्यता का इतिहास जिसने भी लिखा उसने देखा देश के साथ छल किया है। कई मां ने अपने बेटे खो दिए कई बहनों ने अपने मांग का सिंदूर खो दिए। टंट्या मामा बिरसा मुंडा इनको हम सब लोग भूल गए हैं। इतिहासकारों ने उनको उनकी जगह अपने इतिहास के पन्नों में दो लाइनों में भी नहीं दी हैं ।उन्होंने बताया कि जनजाति गौरव की जानकारी हमारे जन-जन तक हमारे बच्चों तक जाए इसलिए देश की पाठ्यक्रम में जनजाति गौरव की गाथा सम्मिलित होना चाहिए ।उन्होंने बताया हमारे देश का भविष्य भटक रहा है एक प्रोफेसर 200 बच्चों की सोच को बदल सकता है उन्होंने भारत सरकार से अपील की की जनजाति गौरव पर एक ऐप बनाएं उसमें सभी जनजाति वीरों की जानकारी लोगों को घर बैठे मिल जाए ऐसी कोई सुविधा भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराने हेतु उन्होंने केंद्रीय मंत्री को आग्रह किया। साथ उन्होंने जबलपुर में एक बच्ची शालिनी ने एक प्रश्न किया था हमको आपकी सरकारी योजनाएं नहीं पता तथा योजनाओं लाभ हम घर बैठे इसकी जानकारी हमें कैसे मिल सकती है ?क्या यह जानकारी हमें घर बैठे प्राप्त हो सकती है क्या ? इस सवाल पर मंत्री जी ने एक ऐप लॉन्च किया जिसका नाम "शालिनी" रखा गया। जिसका शुभारंभ मुख्यमंत्री द्वारा भविष्य मै किया जाएगा । उन्होंने कहा हजारों बुझे दीपक एक दीपक नहीं जला सकता पर एक जलता दीपक हजारों बुझे दीपक में प्रकाश दे सकता है l
मुख्य अतिथि माननीय केंद्रीय मंत्री जी ने बताया आज का विषय गंभीर विषय है शंकर जी जिस तरह आदि से अंत उनके वंशज पर हम मंथन कर रहे हैं । जिस प्रकार कुशल तैराकी वह गोताखोरी से हम समुद्र से बहुमूल्य चीज खोजते हैं इस तरह इस गोताखोरी से हमें जनजाति विषय की मूल आत्मा तक पहुंचना होगा। हम जिस विषय को लेकर पढ़ना चाह रहे हैं वह चेतना से जुड़ा विषय हैं यह विषय चेतना से आदि व अंत तक है।
भगवान श्रीराम जी ने जनजाति सबरी माता के झूठे बेर खाए। हमारी जनजाति में मातृशक्ति कितनी जानकर व समझदार थी ये समझ आता है। जनजाति समुदाय का चित्रण सम्मान जनक नहीं दिखाया गया है। इतिहासकारों को विषय की गहनता का बोध न होने के कारण वो गोताखोर की तरह विषय की गहनता तक वो पहुंच नहीं पाए।जनजाति के तीज, त्योहार, वंश, परंपरा, रहन सहन, वेशभूषा प्रत्येक मानवजाति की रक्षा के लिए गहन अध्ययन, चिंतन, मनन,मंथन करना होगा।पूर्ण मानवजाति समुदायों के बताए मार्गो पर चलना होगा।
वानर का अर्थ वन में रहने वाले लोग नल,नील, अंगद ये वनवासी थे जिन्होंने भगवान श्रीराम जी को मदद की है अब नए सिरे से हमें सोचना होगा कि वो वानर थे या जनजाति ये शोध का विषय होना चाहिए। हिडिंबा का बेटा घटोत्कच था और उनका बेटा बर्बरीक जो खाटूश्यामजी के नाम से जाने जाते है ये जनजाति समुदाय से ही थे। मुख्य अतिथि जी ये भी बताया कि शरीर पर छोटे भाई को खुजली होने पर मेरी माँ कहती थी कि एक लोटा जल डालकर नीम के पेड़ से आज्ञा लो कि मैं आपकी पत्तियां तोड़ सकता हु? उसी प्रकार बीमारी ठीक होने पर पुनः एक लोटा जल डालकर उनको धन्यवाद ज्ञापित करने कहती थी।वृक्षों की तरह हमें दूसरों के लिए जीना चाहिए।पढ़े लिखे होने का मतलब संवेदनशील, मानवीय मूल्यों से भरा होना चाहिए केवल अपने लिए सोचने वाला नहीं होना चाहिए।विषम परिस्थिति में आचार्य चाणक्य को जनजाति ने मदद की है फिर हम उनके बलिदान को कैसे भूल सकते है।
अंत में स्मृति चिन्ह कुलगुरु एस के जैन जी द्वारा मुख्य अतिथि तथा विशिष्ट अतिथि को कुलसचिव आई के मंसूरी जी द्वारा प्रदान किया गया । कुलगुरु जी को प्रोफेसर रुचि घोष दस्तीदार द्वारा स्मृतिचिह्न प्रदान किया गया । प्रोफेसर अनीता धुर्वे द्वारा डॉ दीपमाला जी और कार्यक्रम के अध्यक्ष मोहन गिरि जी को स्मृतिचिह्न प्रदान किया गया।