नई दिल्ली। जिस कांग्रेस ने दिल्ली की सत्ता पर लगातार डेढ़ दशक तक राज किया, जिस कांग्रेस के सामने कभी विपक्षी पार्टियां एक-एक सीट के लिए तरसती थी आज वहीं कांग्रेस 70 सीटों में से 67 सीटों पर अपनी जमानत तक नहीं बचा पाई। तीन विधानसभा चुनावों से तो पार्टी का खाता भी नहीं खुल पा रहा है। मत प्रतिशत लगातार तीन बार से घट रहा था, इस बार थोड़ा सा बढ़ा है।दिल्ली में कांग्रेस का जो वोट बैंक था, वो मुफ्त बिजली-पानी के फेर में उससे छिटककर आप की तरफ चला गया।थोड़ी अधिक मेहनत कर और अकेले लड़ने का भी उसे कोई खास लाभ नहीं मिल सका। उसके मत प्रतिशत में करीब दो प्रतिशत की मामूली वृद्धि अवश्य हुई और यह बढ़कर 6.34 हो गया l पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शीला दीक्षित के बाद कांग्रेस दिल्ली में ऐसा कोई चेहरा खड़ा नहीं कर पाई जो सर्व स्वीकार्य हो और जिसके दम पर पार्टी आगे बढ़ सके। इतना ही नहीं बल्कि अपने पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को बड़े नेताओं की जिद के चलते लगातार किनारे किया जाते रहा l कांग्रेस के राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व का का जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच संवाद लगभग खत्म सा हो गया था। एंटोनी रिपोर्ट ने कांग्रेस को चेताया था कि हिंदू मतदाता उससे दूरी बना रहे हैं इसके बावजूद भी कांग्रेस बहुसंख्यको की तुलना में अल्पसंख्यकों को ज्यादा तरजीह देती रही जिसके कारण बचा खुचा हिंदू वोट भी उससे दूर हो गया बहुसंख्यकों ने उसे वोट दिया नहीं और अल्पसंख्यकों का वोट उसे  मिला नहीं जिसके परिणाम स्वरूप अनेकों क्षेत्र से पार्टी का नामोनिशान ही लगभग खत्म हो गया l कांग्रेस के बड़े-बड़े चेहरों को विधानसभा सीटों पर जो वोट मिला है निश्चित ही यह कांग्रेस के लिए आत्म चिंतन का विषय है लेकिन लगातार हो रही हारों से भी कांग्रेस कोई सबक नहीं ले पा रही है l