कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के वरिष्ट वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी. एस. किरार साथ ही केंद्र के वैज्ञानिकों डॉ. आर.के. प्रजापति, डॉ. यू. एस. धाकड़, डॉ. सुनील कुमार जाटव एवं डॉ. आई.डी. सिंह द्वारा किसानों को अपने खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने की सलाह दी जा रही है, जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति, जल संवर्धन में वृद्धि एवं कीटों-रोगों के आक्रमण में भी कमी आयेगी।
ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने पर खेत की ऊपर की मिट्टी नीचे और नीचे की मिट्टी ऊपर हो जाती है। इस जुताई से जो ढेले पड़ते हैं वह धीरे-धीरे हवा व बरसात के पानी से टूटते रहते हैं साथ ही जुताई से मिट्टी की सतह पर पड़ी फसल अवशेष की पत्तियां, पौंधों की जड़ें एवं खेत में उगे हुए खरपतवार आदि नीचे दब जाते हैं, जो सडने के बाद खेत की मिट्टी में जीवाश्म, कार्बनिक खादों की मात्रा में बढ़ोतरी करते हैं। जिससे भूमि की उर्वरता स्तर एवं मृदा की भौतिक दशा और जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से खेत के खुलने से प्रकृति की कुछ प्राकृतिक क्रियाएं भी सुचारू रूप से खेत की मिट्टी पर प्रभाव डालती है। वायु और सूर्य की किरणों का प्रकाश मिट्टी के खनिज पदार्थो को पौधों के भोजन बनाने में अधिक सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त खेत की मिट्टी के कणों की संरचना (बनावट) भी दानेदार हो जाती है। जिससे भूमि में वायु संचार एवं जल धारण क्षमता बढ जाती है। इस गहरी जुताई से गर्मी में तेज धूप से खेत के नीचे की सतह पर पनप रहे कीड़े-मकोड़े, बीमारियों के जीवाणु, खरपतवार के बीज आदि मिट्टी के ऊपर आने से खत्म हो जाते हैं साथ ही जिन खेतों में गेहूं व जौ की फसल में निमेटोड का प्रयोग होता है वहां पर इस रोग की गांठें जो मिट्टी के अन्दर होती है जो जुताई करने से ऊपर आकर कड़ी धूप में मर जाती है। अतः ऐसे स्थानों पर गर्मी की जुताई करना नितान्त आवश्यक होती है।
ग्रीष्मकालीन जुताई के लाभ
मिट्टी में कार्बनिक पदार्थो की बढ़ोतरी होती है। मिट्टी के पलट जाने से जलवायु का प्रभाव सुचारू रूप से मिट्टी में होने वाली प्रतिक्रियाओं पर पड़ता है और वायु तथा सूर्य के प्रकाश की सहायता से मिट्टी में विद्यमान खनिज अधिक सुगमता से पौधे के भोजन में परिणित हो जाते हैं। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कीट एवं रोग नियंत्रण में सहायक है। हानिकारक कीड़े तथा रोगों के रोगकारक भूमि की सतह पर आ जाते हैं और तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई मिट्टी में जीवाणु की सक्रियता बढ़ाती है तथा यह दलहनी फसलों के लिए अधिक उपयोगी है। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई खरपतवार नियंत्रण में भी सहायक है। काँस, मोथा आदि के उखड़े हुए भागों को खेत से बाहर फेंक देते हैं। अन्य खरपतवार उखड़ कर सूख जाते हैं। खरपतवारों के बीज गर्मी व धूप से नष्ट हो जाते हैं। बारानी खेती वर्षा पर निर्भर करती है अतः बारानी परिस्थितियों में वर्षा के पानी का अधिकतम संचयन करने लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना नितान्त आवश्यक है। अनुसंधानों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से 31 प्रतिशत बरसात का पानी खेत में समा जाता है। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मिट्टी कटाव में भारी कमी होती है अर्थात् अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि गर्मी की जुताई करने से भूमि के कटाव में 66ण्5 प्रतिशत तक की कमी आती है। ग्रीष्मकालीन जुताई से गोबर की खाद व अन्य कार्बनिक पदार्थ भूमि में अच्छी तरह मिल जाते हैं जिससे पोषक तत्व शीघ्र ही फसलों को उपलब्ध हो जाते है।
ग्रीष्मकालीन जुताई के लिए मुख्य बातें
ग्रीष्मकालीन जुताई हर तीन वर्ष में एक बार जरूर करें। जुताई के बाद खेत के चारों ओर एक ऊँची मेड़ बनाने से वायु तथा जल द्वारा मिट्टी का क्षरण नहीं होता है तथा खेत वर्षा जल सोख लेता है। गर्मी की जुताई हमेशा मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी करनी चाहिए जिससे खेत की मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले बन सके, क्योंकि ये मिट्टी के ढ़ेले अधिक पानी सोखकर पानी खेत के अन्दर नीचे उतरेगा जिससे भूमि की जलधारण क्षमता में सुधार होता है।
किसान भाईयों यदि आप अपने खेतों की ग्रीष्मकालीन गर्मी की जुताई करेंगे तो निश्चित ही आपकी आने वाली खरीफ मौसम की फसलें न केवल कम पानी में हो सकेगी बल्कि बरसात कम होने पर भी फसल अच्छी हो सकेगी तथा खेत से उपज भी अच्छी मिलेगी तथा खर्चे की लागत भी कम आयेगी। जिससे कृषकों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी। उपरोक्त फायदों को मद्देनजर रखते हुए किसान भाईयों को यथा सम्भव फसल उत्पादन के लिए हमेशा ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य करें।