हे बलशाली ! जब संकट सामने खड़ा है तब चुप्पी क्यों ..?

दिव्य चिंतन
चुप्पी तोड़ो :
हनुमान जी से प्रेरणा लो...
हरीश मिश्र
"कहइ रीछपति सुनु हनुमाना, का चुप साधि रहेहु बलवाना।"
– गोस्वामी तुलसीदास, रामचरितमानस
रामचरितमानस की यह पंक्ति मात्र एक संवाद नहीं, बल्कि हर युग में गूंजती चेतावनी है। जाम्बवंत जब हनुमान से कहते हैं कि—“हे बलशाली! जब संकट सामने खड़ा है, तब यह चुप्पी क्यों ? ”, तो यह सवाल आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना त्रेता युग में था।
हनुमान जन्मोत्सव का पर्व केवल पूजन और जयघोष का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और सामाजिक उत्तरदायित्व का अवसर भी है। पवनपुत्र हनुमान केवल बल, भक्ति और सेवा के प्रतीक नहीं, बल्कि विवेक, साहस और कर्तव्य की जीवंत मिसाल हैं। ऐसे समय में जब समाज में अन्याय, भ्रष्टाचार और असहिष्णुता की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, तब यह जरूरी हो जाता है कि हम भी अपनी ‘चुप्पी’ तोड़ें।
आज जब पत्रकारों की कलम पर दबाव है, कवियों की वाणी मौन है, साहित्यकारों की चेतना शिथिल है और व्यवस्था के रक्षक भी असहाय नजर आते हैं—तो यह सिर्फ कमजोरी नहीं, बल्कि सामाजिक अपराध है। हनुमान जी से प्रेरणा लेने का अर्थ है—सत्य के पक्ष में निर्भीक होकर खड़ा होना, बिना किसी भय या लाभ के।
हनुमान केवल मंदिरों में पूजे जाने वाले देवता नहीं हैं—वे उस चेतना का नाम हैं जो कठिन समय में भी सत्य और न्याय के लिए उठ खड़ी होती है। हमें उनकी पूजा के साथ-साथ उनके गुणों को भी आत्मसात करना होगा।
हनुमान जन्मोत्सव पर जरूरत है कि हम यह संकल्प लें—हम न अन्याय के सामने चुप रहेंगे, न अत्याचार को सहन करेंगे। हमारी कलम, हमारी वाणी और हमारे कर्म, सब हनुमान की प्रेरणा से संचालित हों।
हनुमान जयंती केवल पर्व नहीं—समय की पुकार है। सुनो, समझो और अब चुप मत रहो।
लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )