छिन्दवाड़ा जिले के मारई गांव की श्रीमती वंदना इंग्ले, एक ऐसी महिला है, जिनकी कहानी मेहनत, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की एक प्रेरणादायक मिसाल है। पहले वे पारंपरिक रासायनिक खेती करती थीं, जिससे उत्पादन तो सामान्य था, लेकिन उनकी भूमि की उर्वरता धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। इस समस्या से निजात पाने और कुछ नया करने की चाह ने उन्हें जैविक खेती की ओर मोड़ा।जैविक खेती को अपनाने के बाद उनके जीवन की दिशा और दशा बदल गई।उन्नत कृषक और जैविक कार्य करने हेतु कई बार इन्हें प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया है।
        उनकी यह नई यात्रा 2013-14 में शुरू हुई, जब उन्हें "सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर एक्सटेंशन योजना" के तहत प्रशिक्षण मिला। इस दौरान, उन्होंने जैविक खेती के महत्व को समझा और इसे अपनाने का दृढ़ निश्चय किया। आत्मा परियोजना के माध्यम से फसल प्रदर्शन, भ्रमण और प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान को उन्होंने अपने खेतों में लागू किया।
       2015-16 में, आत्मा परियोजना की पी.के.वी.वाय योजना के अंतर्गत, उनके खेत में 8X4X1 आकार का वर्मी कम्पोस्ट टैंक बनाया गया और उन्हें एक किलो केंचुए दिए गए। यहीं से शुरू हुआ वर्मी कम्पोस्ट खाद के निर्माण और बिक्री का सफर, जिसने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया।
        आज, वंदना इंग्ले के पास 12X12X1 आकार के दो बड़े वर्मी कम्पोस्ट टैंक हैं। हर 45 दिनों में तैयार खाद निकलती है, जिसे वे छानकर और पैक करके बेचती हैं। इसके अलावा, उन्होंने जीवामृत, नीमास्त्र, पांचपत्ती काढ़ा और ब्रह्मास्त्र जैसे प्राकृतिक खेती के उत्पाद भी बनाने शुरू किए, जिन्हें वे बोतलों में भरकर बेच रही हैं।
        अपनी व्यक्तिगत सफलता के साथ-साथ, वंदना इंग्ले ने गांव की अन्य महिलाओं को भी सशक्त बनाने का काम किया। उन्होंने महिला समूहों का गठन किया, जिससे वे भी आर्थिक रूप से सक्षम हो सकें। इसके अलावा, वे सृजन एनजीओ की सक्रिय सदस्य भी बनीं, जिसके माध्यम से उन्हें जीवामृत निर्माण के लिए एक स्वचालित मशीन भी मिली।
       उनकी मेहनत को प्रशासन ने भी सराहा। कलेक्टर और कृषि विभाग के उप संचालक ने उनके कार्यों को देखा और प्रशंसा की। उन्होंने अपने महिला समूह के लिए आत्मा परियोजना से 10,000 रुपये की सीडमनी और 20,000 रुपये का "सर्वश्रेष्ठ समूह पुरस्कार" भी जीता।
       आज, वंदना इंग्ले सालाना 2,40,000 रुपये की शुद्ध आय अर्जित कर रही हैं, जो वर्मी कम्पोस्ट, केंचुए, जैविक उत्पादों और दूध की बिक्री से आती है। अपने कार्यों से, वंदना इंग्ले ने गांव की कई महिलाओं को प्रेरित किया और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का रास्ता दिखाया। उन्हें आत्मा परियोजना, कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र, आजीविका मिशन और सृजन एनजीओ द्वारा कई प्रमाण पत्र और सम्मान प्राप्त हुए हैं। उन्हें दिल्ली, बैतूल, भोपाल, जबलपुर, सिवनी और नरसिंहपुर जैसे विभिन्न जिलों में भ्रमण और प्रशिक्षण के लिए भी भेजा गया। वहाँ से नई तकनीकें सीखकर, उन्होंने उन्हें अपने खेतों में लागू किया और अपनी कृषि को और भी उन्नत बनाया।
       वंदना इंग्ले की कहानी मेहनत, नवाचार और आत्मनिर्भरता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उनकी सफलता को देखकर, आज आसपास के किसान और महिलाएं भी कृषि, पशुपालन और जैविक खेती को अपनाकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं।