बालाघाट l कृषि विभाग ने फसलों में फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए नवाचार किया है। यह नवाचार 750 किसानों के खेतों में  किया गया। इस नवाचार से किसान भी बेहद संतुष्ठ नजर आ रहे है। बेलगांव के किसान गणेश बोड़ाजी बताते है कि कई वर्षों पर पहले उनके दादा रागी की फसल लिया करते थे। लेकिन अब कृषि विभाग के सहयोग से रबी में फसल लेना एक तरह से जोखिम लग रही थी। फसल लेने का समय होने लगा है तो फसल का अच्छा उत्पादन होने की उम्मीद है। इसी तरह बेलगांव के ही गणेश समरीते बताते है कि रागी रबी में लगाने के लिए विभाग द्वारा किसानों को समझाया गया। प्रशिक्षण देकर पूरी तकनीक समझाई गई। उसके परिणाम भी देखने मे आने लगे है।

                                 छिड़काव और रौपा तकनीक से हुई बुवाई

कृषि उपसंचालक श्री राजेश खोब्रागड़े ने बताया कि नवाचार की शुरुआत दिसम्बर माह के अंतिम सप्ताह में ही कि गई थी। इसके लिए किसानों के चयन के लिए प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षणों में तकनीक और लाभ, सीड ट्रीटमेंट और प्राकृतिक खेती से खेती के तरीके बताये गए। यह पहला अवसर है जिसमें रबी में रागी और तिल की खेती का नवाचार किया गया। तिल की बुवाई छिडकाव से जबकि रागी को रौपा विधि के तहत लगाया गया। फसलों को देखकर नवाचार की सफलता के आसार लग रहे है। रागी और तिल की फसलों का 200-200 हेक्टेयर में प्रदर्शन लगाए गए। 

                                  बालाघाट जनपद के अलावा किरनापुर और वारासिवनी के किसानों के खेतों में किया प्रदर्शन

कृषि उपसंचालक श्री खोब्रागड़े ने  बताया कि नवाचार के लिए बालाघाट जनपद के पिंडरई, देवरि कन्हड़गांव और खुरसोड़ी में प्रदर्शन लगाए गए। इसके अलावा किरनापुर में बेलगांव, जराही, सल्हे, कटंगी, कोप्पे और बोरगांव तथा वारासिवनी जनपद में भांडा मुर्री में किसानों के खेतों में प्रदर्शन लगाए गए।

                                   सफल प्रयोग रहा तो किसानों के लिए लाभ

ग्रामीण विस्तार अधिकारी श्री संजय उइके ने बताया कि प्रशिक्षण और बुआई के बाद किसानों से लगातार प्रदर्शन पर चर्चा की गई। किसानों ने भी इसकी सराहना की है। अगर प्रयोग उत्पादन की तुलना में अच्छा रहा तो किसानों को रबी में रागी और तिल लगाने में आर्थिक लाभ होगा। क्योंकि खरीफ के मौसम में लगाई जाने वाली रागी और तिल खराब होने से उत्पादन में फर्क पड़ता है।