मधुमक्खी पालन विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित
ग्वालियर l मधुमक्खी पालन स्वरोजगार का महत्वपूर्ण साधन बन सकता है। फसल के नजदीक मधुमक्खी पालन से उत्पादन बढ़ता है और शहर के माध्यम से अतिरिक्त आय भी बढ़ती है। यह बातें फ्लोरीकल्चर मिशन परियोजना के तहत मुरार विकासखंड के ग्राम उदयपुरा में मधुमक्खी पालन पर आयोजित हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञों ने बताईं।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, कृषि विज्ञान केन्द्र ग्वालियर एवं विंध्याचल कृषक उत्पादक संघ (एफपीओ) के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ द्वारा वित्त पोषित फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिला प्रशासन एवं जिला पंचायत द्वारा खासतौर पर स्व-सहायता समूहों से जुड़ी दीदियों एवं किसानों की आय में वृद्धि के उद्देश्य से इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कराए जा रहे हैं। इसी श्रृंखला में मधुमक्खी पालन विषय पर यह प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शैलेन्द्र कुशवाह ने मधुमक्खी पालन का महत्व एवं कृषि उत्पादन में इसकी भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा मधुमक्खी पालन स्वरोजगार का बड़ा जरिया बन सकता है। स्व-सहायता समूह और किसान भाई मधुमक्खी पालन जरूर करें।
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सौमित बेहरा व डॉ. सुशील कुमार ने फ्लोरीकल्चर मिशन परियोजना पर विस्तार से प्रकाश डाला। साथ ही जानकारी दी कि किस प्रकार इस परियोजना का लाभ उठाकर मधुमक्खी पालन किया जा सकता है।
कृषि विज्ञान केन्द्र मुरैना से आईं मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ डॉ. स्वाती तोमर ने मधुमक्खी पालन के बारे में तकनीकी जानकारी प्रदान की। साथ ही मधुमक्खी की विभिन्न प्रजातियों और शहद निकालने की प्रक्रिया को सरल तरीके से समझाया।
प्रशिक्षण के अंत में विंध्याचल कृषक उत्पादन संघ के सीईओ श्री देवेन्द्र सिंह भदौरिया ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। साथ ही कहा कि मधुमक्खी पालन रोजगार का एक मजबूत विकल्प के रूप में सामने आया है।
मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण में विभिन्न स्व-सहायता समूहों की दीदियों ने भाग लिया। जिसमें तुलसी माता, नहर वाली माता, जय गुरूदेव व भुमिया का पुरा स्व-सहायता समूह शामिल हैं।