दिल्ली l बजट में कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए 1.52 लाख करोड़ दिया गया है। 2023-24 की तुलना में यह 7,637 करोड़ ज्यादा है। खेती-बागवानी की 32 फसलों की जलवायु अनुकूल और अधिक पैदावार वाली 109 किस्में लाने की तैयारी है। विकसित भारत का लक्ष्य पाने के लिए जिन नौ सेतुओं का संतुलन सरकार ने बनाया है, उनमें खेत-खलिहान और किसान को प्राथमिकता पर रखा गया है। फसलों का उत्पादन बढ़ाकर जहां किसानों को मजबूत किया जाएगा। वहीं, बेहतर बाजार देने की मंशा से भंडारण क्षमता में वृद्धि की जाएगी। खराब मौसम और जलवायु परिवर्तन से खेती और बागवानी की फसलों को बचाया जाएगा। इसके लिए  32 फसलों की 109 किस्में लाई जाएंगी। यही नहीं, 400 जिलों में किसानों का ब्योरा भी डिजिटल किया जाएगा। महंगाई के लिए जिम्मेदार बन रही तिलहन और दलहन की खेती को मिशन के तौर पर लिया जाएगा, ताकि आने वाले वक्त में देश इन फसलों के लिए आत्मनिर्भर बन सके। खेती को उन्नत बनाने के लिए सबसे ज्यादा जोर शोध पर है। प्रयास है कि ऐसी प्रजातियों की खोज हो सके जो किसानों को कम लागत पर अधिक उपज दे और आने वाले वक्त में भूमि की उर्वराशक्ति में कोई कमी न आए। कृषि ढांचा मजबूत करने के लिए 1,51,851 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, जो 2023-24 के बजट की तुलना में 7,637 करोड़ ज्यादा है। एमएसपी को लेकर बजट में कोई घोषणा नहीं की गई है। किसान सम्मान निधि बढ़ने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। प्रमुख उपभोक्ता केंद्रों के नजदीक बड़े पैमाने पर सब्जी उत्पादन क्लस्टर विकसित किए जाएंगे। उपज के संग्रहण, भंडारण केंद्रों से सीधे बाजार में भेजा जाएगा। इससे महंगाई पर अंकुश लगाने में भी सफलता मिलेगी। किसान उत्पादन संगठनों और सहकारी समितियों को इस काम की जिम्मेदारी दी जाएगी। वहीं, इस क्षेत्र में स्टार्टअप को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

1,00,00,000 किसानों से दो साल में कराएंगे प्राकृतिक खेती
10,000 संसाधन केंद्र प्राकृतिक खेती के लिए 10,000 आवश्यकता आधारित जैव आदान संसाधन केंद्र स्थापित किए जाएंगे। इस व्यवस्था को सुचारु रखने के लिए ग्राम पंचायतों और संस्थाओं की मदद ली जाएगी।

दलहन-तिलहन के लिए कार्यनीति
दलहन-तिलहन में आत्मनिर्भर बनने के लिए इनके उत्पादन, भंडारण और विपणन की व्यवस्था मजबूत की जाएगी। सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसी तिलहनी फसलों के लिए कार्यनीति बनेगी। अंतरिम बजट में भी इस पर चर्चा की गई थी।

झींगा ब्रीडिंग केंद्र के लिए बढ़ेगी मदद
झींगा ब्रूड-स्टॉक्स न्यूक्लियस ब्रीडिंग केंद्रों का नेटवर्क स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। झींगा पालन, उनके प्रसंस्करण और निर्यात के लिए नाबार्ड के माध्यम से वित्तपोषण की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। भारतीय झींगा की गुणवत्ता और अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी मांग को देखते हुए केंद्र सरकार पहले से ही झींगा उत्पादन को बढ़ावा दे रही है। गुजरात और दक्षिण भारत के कई राज्यों समेत उत्तर भारत के चार राज्यों में झींगा उत्पादन हो रहा है। मछली बीज (ब्रूडस्टॉक), पालिचैट कृमि, झींगा और मत्स्य भोजन पर बुनियादी सीमा शुल्क घटाकर 5 फीसदी किया गया है। झींगा उत्पादन और मछली के भोजन से जुड़ी विभिन्न कच्ची सामग्रियों पर बुनियादी सीमा शुल्क पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। सरकार अब फसलों और किसानों से जुड़े ब्योरे का डिजिटलीकरण करेगी, जिससे डाटा का बेहतर उपयोग कृषि के विकास और किसानों के हित में किया जा सकेगा। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) योजना के तहत चालू खरीफ सीजन में 400 जिलों में खरीफ फसलों का डिजिटल सर्वे किया जाएगा। मौजूदा वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की 6 करोड़ किसानों और उनकी जमीन के ब्योरे को रजिस्ट्री में दर्ज करने की तैयारी है। डीपीआई योजना अगले तीन साल में देशभर में लागू होगी। योजना का पायलट प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सफल रहा है और अब इसे आगे बढ़ाया जाएगा। डिजिटल डाटा से न सिर्फ किसानों के लिए फसलों की बेहतर योजनाएं बनाई जा सकेंगी, बल्कि फसलों के बीमा, उत्पाद के अच्छे दाम दिलाने, स्टार्टअप को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकेगी। डीपीआई से किसानों को हर सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा, जिनमें एमएसपी के तहत खरीद, फसल बीमा, कृषि ऋण शामिल हैं। इसके अलावा किसानों को फसल संबंधी बेहतर सलाह भी मुहैया कराई जा सकेगी।
डीपीआई में मोटे तौर पर तीन चीजें शामिल हैं। एग्रीस्टैक, कृषि डीएसएस और मिट्टी का प्रोफाइल मैप। एग्रीस्टैक के तहत किसानों की रजिस्ट्री की जाएगी, जिसमें उनकी आधार जैसी एक यूनिक आईडी होगी, जिसमें उनकी जमीन और फसलों का ब्योरा होगा। बजट में पांच राज्यों में किसान क्रेडिट कार्ड लॉन्च करने की बात कही गई है। इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के इस कदम से किसानों को काफी फायदा होगा। क्रेडिट कार्ड के तहत किसान खेती संबंधी सभी जरूरतों के लिए तीन लाख रुपये का बैंक लोन प्राप्त कर सकते हैं।

इस किसान क्रेडिट कार्ड की मदद से किसान खाद, बीज, कृषि-मशीन, मछली पालन, पशु पालन जरूरतों की पूर्ति कर सकते हैं। इसके जरिये खेती को और खेती से होने वाली पैदावार को बढ़ा सकते हैं। मोदी सरकार खेती-किसानी पर खर्च के मामले में मनमोहन सरकार से काफी आगे है। वर्ष 2004 में यूपीए के पहले बजट में जहां खेती की हिस्सेदारी मात्र 1.11 फीसदी थी, वहीं उसके 10 वर्ष के कार्यकाल में सर्वाधिक हिस्सेदारी वर्ष 2008 में 1.92 फीसदी दर्ज की गई। दूसरी तरफ एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल के पहले वर्ष 2014 में ही कृषि की बजट में हिस्सेदारी 1.73 फीसदी थी।

मोदी सरकार ने वर्ष 2019 में अधिकतम 4.97 फीसदी खेती को दिया। वहीं, 2020 में यह कुल बजट का 4.69 फीसदी तो 2021 में 3.77 फीसदी रहा। 2022 और 2023 में यह क्रमश: 3.35 फीसदी और 2.77 फीसदी रहा।