जहाँ था नफरत और तबाही का कारोबार अब वहां सिर्फ राख और खामोशी..

दिव्य चिंतन
चुप्पी नहीं, तैयारी है...
हरीश मिश्र
पाकिस्तान को एक और चेतावनी मिल गई है—इस बार धमकी नहीं, दिव्य घोष के रूप में। भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के ज़रिये यह साफ़ कर दिया है कि आतंक को पालने-पोसने वाले मुल्क अब मानवता की भाषा नहीं समझेंगे, उन्हें अब उसी लहजे में जवाब देना होगा जो वे खुद बरसों से बोलते आए हैं—गोली, बारूद और विध्वंस ।
भारत की यह सैन्य कार्रवाई महज़ आत्मरक्षा नहीं है, यह इंसानियत के दुश्मनों को दी गई एक नैतिक और सामरिक सज़ा है। बहावलपुर, मुरीदके, सियालकोट जैसे शहर जहां से नफ़रत और तबाही का कारोबार चलता रहा, अब वहां राख और ख़ामोशी पसर गई है। भारत ने न केवल आतंकियों के अड्डे नेस्तनाबूद किए, बल्कि पाकिस्तान की उस नीति को भी कटघरे में खड़ा कर दिया जो दशकों से “तहजीब” और “तमीज” का मुखौटा पहन कर दुनिया को गुमराह कर रहा था।
पाकिस्तान का दोहरा चरित्र—एक तरफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति की बात और दूसरी ओर अपने ही भूभाग को, इबादतगाहों को आतंक की प्रयोगशाला बनाए रखना—अब ज़्यादा दिन नहीं चल पाएगा। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वह सिर्फ़ “सबूत देने” या “संयुक्त राष्ट्र की प्रतीक्षा” में नहीं रहेगा। अब कार्रवाई होगी, वह भी निर्णायक।
यह तीखापन भारत की आत्मा से निकला है—उस आत्मा से जो 26/11, पुलवामा और उरी जैसे ज़ख़्म सहती रही है। यह प्रतिघात उन मासूमों की ओर से है जो कभी किसी स्टेशन, स्कूल या बाज़ार में आतंक की भेंट चढ़ गए। पाकिस्तान अब यह समझ ले कि भारत की चुप्पी उसकी कमजोरी नहीं, उसकी तैयारी होती है।
दुनिया अब भारत के साथ खड़ी है, और पाकिस्तान अपने ही झूठ के बोझ तले दब रहा है। जो मुल्क अपने भविष्य को बारूद और बंदूक के भरोसे सौंप दे, वह कभी इंसानियत का प्रतिनिधि नहीं हो सकता। भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह केवल एक राष्ट्र नहीं, बल्कि एक चेतना है—जो अन्याय, आतंक और अत्याचार के ख़िलाफ़ आखिरी दम तक दिव्य घोष करती रहेगी।