रजनीगंधा की खेती शुरू की तो खुशियों से महका सरवन का घर
ग्वालियर l सरवन ने जब से पारंपरिक खेती के स्थान पर रजनीगंधा की खेती अपनाई है, तब से उनका घर खुशियों से महक उठा है। पहले जी-तोड़ मेहनत के बाबजूद उन्हें अपनी खेती से कोई खास आमदनी नहीं हो पाती थी। उद्यानिकी विभाग की “पुष्प क्षेत्र विस्तार योजना” ने उनके लिये समृद्धि के दरवाजे खोल दिए हैं। सरवन के खेत से निकलीं रजनीगंधा की डंडियां जहां गुलदस्तों व फूल मालाओं के माध्यम से लोगों को मनमोहक खुशबू से महका रही हैं वहीं सरवन के घर में समृद्धि की खुशबू बिखेर रही हैं।
ग्वालियर शहर से सटे गिरवई गाँव के निवासी प्रगतिशील कृषक सरवन सिंह कुशवाह बताते हैं कि पहले हम अपने एक बीघा खेत में गेहूँ की फसल लेते थे। इसमें लागत ज्यादा लगती और आमदनी कम होती। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों की सलाह पर हमने “पुष्प क्षेत्र विस्तार योजना” के तहत कंदीय पुष्प रजनीगंधा की खेती शुरू कर दी। रजनीगंधा की फसल उगाने में प्रयुक्त होने वाले खाद-बीज एवं कीट व्याधियों से बचाव की जानकारी हमें विभाग से आसानी से मिल गई। सरवन कहते हैं कि जब रजनीगंधा की खेती शुरू करने के लिये कुल एक लाख 15 हजार रूपए की लागत आई। जिसमें “पुष्प क्षेत्र विस्तार योजना” के तहत मुझे 15 हजार रूपए का अनुदान मिला।
सरवन बताते हैं जब हम अपने एक बीघा खेत में गेहूँ उगाते थे तब 9500 रूपए की लागत आती थी और मात्र 15500 रूपए की आमदनी हो पाती थी। उसमें अपनी मेहनत जोड़ लें तो न के बराबर आमदनी होती। जिस एक बीघा खेत में पहले 8 से 10 क्विंटल गेहूँ पैदा होता और आय मात्र 9500 रूपए हो पाती थी। उसी एक बीघा खेत में अब रजनीगंधा की 50 से 55 हजार डंडियां मिल जाती हैं, जो लगभग ढ़ाई लाख रूपए की बिक जाती हैं। खर्चा निकालकर हमें शुद्ध एक लाख 35 हजार रूपए की आमदनी हो जाती है। नगदी खेती अपनाने के बाद बढ़ी आमदनी की खुशियां सरवन के चेहरे पर साफ पढ़ी जा सकती हैं। सरकार के प्रति आभार जताते हुए सरवन बोले कि “पुष्प क्षेत्र विस्तार योजना” ने हमारे परिवार की खुशियों का विस्तार कर दिया है।