जबलपुर l कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को देखते हुये किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों को ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द के स्थान पर तिल की खेती करने की सलाह दी है। उप संचालक कृषि डॉ एस के निगम के अनुसार मूँग और उड़द मुख्य रूप से खरीफ मौसम (वर्षा ऋतु) की फसल है, लेकिन खरीफ में इन फसलों का रकबा निरन्तर कम होता जा रहा है। जबकि दूसरी ओर किसान मूंग एवं उड़द को ग्रीष्मकालीन (जायद) फसल के रूप में अधिक ले रहे हैं। उप संचालक कृषि ने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के हवाले से बताया कि ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द की फसल पर कीट और बीमारियों का अधिक प्रभाव होता है। किसान इन 60 से 75 दिन की अवधि की फसलों पर 5 से 6 बार कीटनाशकों का स्प्रे करते हैं और फसल को मानसून आने से पूर्व सुखाने के लिये ग्लायफोसेट जैसे नींदानाशक का उपयोग भी करते हैं। कीटनाशकों के इस तरह के अंधाधुध प्रयोग से मृदा एवं मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने के साथ-साथ पर्यावरण को भी काफी नुकसान हो रहा है। डॉ निगम के मुताबिक कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से उत्पादित फसल डायबिटीज एवं कैंसर जैसी बीमारियों के कारण बनती जा रही है। उप संचालक कृषि ने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ ए के सिंह द्वारा किसानों को दी गई सलाह का उल्लेख भी किया है। डॉ सिंह ने कहा है कि ग्रीष्मकालीन मूंग उड़द के उत्पादन हेतु अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है और इससे भूमिगत जलस्तर में कमी आ रही है और नदी, नालों एवं तालाबों का जल प्रदूषित हो रहा है। इन फसलों में कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण पशु-पक्षी एवं मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। इसके साथ ही कृषि में सहयोगी मित्र कीट की संख्या में भी कमी आती जा रही है। खासतौर पर मधुमक्खी की विभिन्न प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। इस वजह से परागण की क्रिया एवं उत्पादन प्रभावित होता है। उप संचालक कृषि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. संजय सिंह द्वारा किसानों को दी गई सलाह का जिक्र करते हुये कहा कि किसान ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द के स्थान पर तिल जैसी वैकल्पिक फसल का उत्पादन लें, जिस पर कीट एवं बीमारियों का प्रकोप लगभग नगण्य होता है। उप संचालक कृषि ने किसानों को जैविक अथवा प्राकृतिक तरीकों से मूंग और उड़द का उत्पादन लेने की सलाह भी दी है। उन्होंने किसानों को समन्वित कीट प्रबंधन प्रणाली का उपयोग करने तथा कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग करने की बजाय वैज्ञानिकों की अनुशंसा के आधार पर अनुशंसित मात्रा में ही कीटनाशकों का प्रयोग करने का सुझाव भी दिया है।