साधना का श्रेष्ठ समय है आषाढ़ गुप्त नवरात्रि
जिस तरह वासंतिक और शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का अर्चन-वंदन सार्वजनिक रूप से किया जाता है; ठीक वैसे ही आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों में मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की साधना-आराधना गुप्त रूप से की जाती है। इस वर्ष आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि 30 जून से 8 जुलाई तक है। गुप्त नवरात्र यंत्र, तंत्र व मंत्र की सिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ साधनाकाल माने जाते हैं। ‘श्रीमद्देवीभागवत’, ‘शिव महापुराण’, ‘शिवसंहिता’ और ‘दुर्गासप्तशती’ धर्मग्रंथों में गुप्त नवरात्रों की महत्ता विस्तार से वर्णित है।
गायत्री महाविद्या के महामनीषी पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है कि जहां चैत्र और आश्विन की नवरात्रि साधना जनसामान्य को मां शक्ति की कृपादृष्टि पाने का सुअवसर उपलब्ध कराती है, वहीं ‘गुप्त नवरात्र’ जिज्ञासु साधकों को मंत्र सिद्धि का फलदायी सुअवसर उपलब्ध कराते हैं। रोग-दोष व कष्टों के निवारण और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में किए जाने वाले विविध प्रकार के तांत्रिक अनुष्ठानों के विधान श्रीमद्देवीभागवत महापुराण आदि ग्रंथों में मिलते हैं।
शिव महापुराण में कथा आती है कि आदिकाल में एक बार दैत्यराज दुर्ग ने कठोर तप से ब्रह्मा को प्रसन्न कर युद्ध में देवताओं से अजेय रहने का वर पा लिया था। इसके फलस्वरूप दुर्ग का आतंक तीनों लोकों में फैल गया। तब देवताओं ने दुर्ग के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए आदिशक्ति मां दुर्गा से प्रार्थना की। इस पर आदिशक्ति ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी इन दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध किया। मान्यता है कि तभी से आषाढ़ और माघ माह के गुप्त नवरात्रों में इन दस महाविद्याओं के पूजन की परम्परा शुरू हो गई।
मान्यता है कि गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना करके ही महर्षि विश्वामित्र ऐसी अद्भुत तंत्र शक्तियों के स्वामी बन गए थे कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। दैत्यगुरु शुक्राचार्य के परामर्श पर मेघनाद ने गुप्त नवरात्र की साधना कर ऐसी अजेय शक्तियां अर्जित कर ली थीं कि भगवान को भी उसके नागपाश में बंधना पड़ा था।
यह समझने की बात है कि दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। किन्तु दमन किसका! किस शत्रु का विनाश! वस्तुत: हमारे असली शत्रु तो हमारे खुद के रोग, दोष, दुर्गुण व दुर्जनता के विकार हैं, जो हमारे जीवन में अड़चनें पैदा करते हैं। यही कारण है कि गुप्त नवरात्र में देवी दुर्गा के कुछ खास मंत्रों के जप का विधान दुर्गासप्तशती में बताया गया है। जैसेकि ‘सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।’ अर्थात सच्चे मन से मां की भावपूर्ण उपासना शत्रु, रोग, दरिद्रता, भय बाधा सभी का नाश कर साधक के जीवन को धन-धान्य तथा पत्नी-संतान के सुख से भर देती है।