नई दिल्ली । सियासी हलकों में बिहार के सीएम नीतीश कुमार के अगले कदम को लेकर चर्चा हैं। कहा जा रहा है कि 2024 के चुनाव से पहले नीतीश अपनी पार्टी जेडीयू के पेंच कसने में जुट गए हैं। नीतीश को लेकर कहा जा रहा है कि उनकी पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह से खटपट चल रही है। चर्चा हैं कि लालू की पार्टी राजद से ललन सिंह की नजदीकी नीतीश को पंसद नहीं आ रही है, इसकारण पार्टी अध्यक्ष पद से उनकी विदाई हो सकती है। 
नीतीश और ललन के बीच दरार की अटकलों के कई कारण गिनाए जा रहे हैं। हालांकि, अगर ललन पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी छोड़ते हैं, तब जेडीयू के इतिहास में यह पहली बार नहीं होगा। इससे पहले भी नीतीश के बेहद करीबी नेता उनसे दूर हुए हैं। 
दरअसल, जेडीयू सूत्र बता रहे हैं कि ललन की लालू प्रसाद यादव के साथ नजदीकियां बढ़ रही हैं और नीतीश कुमार को यह रास नहीं आ रहा है। नीतीश को राजनीति का सबसे माहिर खिलाड़ी माना जाता है। अगर बीच में जीतन राम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दें, तब पिछले 18 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हीं के पास है। बस सहयोगी और करीबी नेता बदलते रहते हैं। फिलहाल, जेडीयू ने 30 दिसंबर को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बड़ी बैठक बुलाई है। इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं। इसमें नए अध्यक्ष पर फैसला हो सकता है। संभव है कि इस बार नीतीश खुद अपने पास पार्टी की कमान रख सकते हैं। 
सबसे पहले बात करें जीतनराम मांझी जो कि एक समय नीतीश का सबसे पुराना और वफादार साथी माने जाते थे। मांझी 20 मई 2014 को बिहार में सीएम की कुर्सी पर बैठे थे। मांझी को ये कुर्सी नीतीश ने खुद ही सौंपी थी। दरअसल, 2014 आम चुनाव में जेडीयू की हार के बाद नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। मांझी को सीएम बनाया गया। हालांकि, 9 महीने बाद ही नीतीश और मांझी के बीच अनबन हुई। उसके बाद मांझी को जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। 
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को एक समय नीतीश का बेहद करीबी माना जाता था। प्रशांत किशोर ने सितंबर 2018 में जनता दल यूनाइडेट को जॉइन किया था। उन्होंने नीतीश का भरोसा जीता तब उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। फिर प्रशांत किशोर के बढ़ते कद की चर्चाएं आम हो गईं। कुछ ही समय बाद प्रशांत के बयानों से विवाद भी खूब बढ़ने लगा और डेढ़ साल बाद ही जनवरी 2020 में जेडीयू ने प्रशांत किशोर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। फिलहाल, प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार में राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटे हैं। वे राज्य में जनसुराज यात्रा निकाल रहे हैं। 
अन्य नेताओं की तरह उपेंद्र कुशवाहा भी एक समय नीतीश के बेहद करीबियों में शामिल थे। उनका कई बार नीतीश से मोहभंग हुआ और पार्टी छोड़कर चले गए। लेकिन बाद में फिर रिश्ते सहज हुए और नीतीश के साथ खड़े हो गए। हालांकि, इस साल परिस्थितियां कुछ अलग दिखीं। नीतीश से मनमुटाव के बाद उपेंद्र की पार्टी अब एनडीए अलायंस का हिस्सा बन गई है। 
उपेंद्र का कहना था कि जेडीयू के आरजेडी के साथ आने के बाद कार्यकर्ता दूर हो रहे हैं। नीतीश के पुराने सहयोगी भी आरजेडी के साथ जाने को तैयार नहीं हैं। 
पूर्व केंद्रीय मंत्री राम चंद्र प्रसाद सिंह अगस्त 2022 में नीतीश से नाराज होने के बाद जेडीयू से बाहर हो गए थे। उन्होंने मई 2023 में बीजेपी जॉइन कर ली है। नौकरशाही से सियासत में आए आरसीपी को भी एक समय नीतीश का करीबी माना जाता था। वे केंद्र की मोदी सरकार में इस्पात मंत्रालय संभाल रहे थे। हालांकि, जब नीतीश से दूरियां बढ़ी तब उन्होंने आरसीपी को राज्यसभा से रिपीट नहीं किया। जानकार कहते हैं कि एक समय जेडीयू में आरसीपी की दूसरे नंबर की हैसियत थी, लेकिन मोदी कैबिनेट का हिस्सा बनने के बाद उनके रिश्ते में दरार आने लगी। आज जिस तरह ललन सिंह के बारे में कहा जा रहा है कि उनकी नजदीकियां आरजेडी से बढ़ रही हैं, ठीक वैसा ही आरसीपी को लेकर कहा जाता था कि वे बीजेपी की पसंद बनते जा रहे हैं। 
अपने बेबाक बयानों के लिए मशहूर अजय आलोक अब बीजेपी के प्रवक्ता हैं। एक समय वे जदयू के चेहरा थे। जदयू के लिए मीडिया में पक्ष रखते थे। नीतीश कुमार की योजनाओं से लेकर कार्यशैली तक की जमकर तारीफ करते थे। फिर 2022 में एक समय ऐसा भी आया, जब अजय आलोक को नीतीश की पार्टी जदयू ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। अजय आलोक पर आरोप लगाया कि वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। अजय लंबे समय तक जदयू के प्रवक्ता रहे। अजय को लेकर कहा जाता है कि वो आरसीपी सिंह के करीबी हैं। सूत्रों का कहना था कि आरसीपी सिंह से नजदीकियों के कारण ही अजय आलोक को जेडीयू ने निष्कासित किया था। 
इसके अलावा, रणवीर नंदन, पवन वर्मा का नाम भी उन नेताओं में शामिल है, जिन्हें जदयू ने बाहर निकाल दिया था। पवन वर्मा को भी प्रशांत किशोर के साथ पार्टी ने 2020 में निकाल दिया था। तब पवन ने टीएमसी जॉइन कर ली थी। पवन भी नीतीश के करीबियों में शामिल थे। हालांकि, पिछले साल पवन की फिर से जेडीयू में वापसी हुई है। इसी तरह पूर्व एमएलसी रणवीर नंदन ने भी जदयू का साथ छोड़ दिया है।वे भी शीर्ष नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। बाद में जेडीयू ने रणवीर नंदन ने निष्कासित करने का दावा किया था। पार्टी छोड़ने से पहले रणवीर नंदन ने कहा था कि नीतीश कुमार को फिर से पीएम मोदी के साथ आना चाहिए।