नई दिल्ली । भारत पर बढ़ते कर्ज को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने चिंता जाहिर की है। साथ चेतावनी देते हुए कहा है कि केंद्र और राज्यों को मिलाकर भारत का सामान्य सरकारी कर्ज मध्यम अवधि में जीडीपी से 100 फीसदी ऊपर जा सकता है। जिसके चलते नतीजा ये हो सकता है कि भारत को लंबी अवधि में कर्ज चुकाने में काफी दिक्कतें हो सकती हैं। क्योंकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लक्ष्य हासिल करने में देश को बहुत बड़ा निवेश करना होगा। मगर भारत सरकार मानती है कि सरकारी ऋण से जोखिम काफी कम है क्योंकि ज्यादातर कर्ज भारतीय मुद्रा यानी रुपये में ही है। 
आईएमएफ में भारत के कार्यकारी निदेशक केवी सुबमण्यन ने एक बयान में कहा कि आईएमएफ का यह दावा अतिशयोक्ति जैसा है कि मध्यम अवधि में ऋण जीडीपी के 100 फीसदी से अधिक पहुंचने का खतरा है। रिपोर्ट में शामिल अपने वक्तव्य में उन्होंने आगे कहा है ‘लंबी अवधि में कर्ज चुकाने की क्षमता पर जोखिम के बारे में उसके बयान पर भी यही कहा जा सकता है। सरकारी कर्ज पर बहुत कम जोखिम है क्योंकि ज्यादातर कर्ज स्थानीय मुद्रा में है। बीते दो दशकों में विश्व अर्थव्यवस्था को लगे झटकों के बावजूद भारत का सरकारी ऋण और जीडीपी का अनुपात 2005-06 के 81 फीसदी से बढ़कर 2021-22 में 84 फीसदी हुआ और 2022-23 में वापस घटकर 81 फीसदी हो गया।’ आईएमएफ ने कहा कि भारतीय रुपये और अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर अक्टूबर 2022 अक्टूबर 2023 के बीच बहुत छोटे दायरे में रही। इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक ने बाजार की स्थिति संभालने के लिए केंद्रीय बैंक ने विदेशी मुद्रा के साथ शायद जरूरत से ज्यादा दखल दे दिया। इसके जवाब में भारत सरकार ने कहा आईएमएफ का यह विश्लेषण ठीक नहीं है और उचित मानदंडों पर आधारित नहीं है। उसने कहा कि विश्लेषण के लिए अवधि का चयन मनमाने ढंग से किया गया है।
एक सरकारी अ​धिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘आईएमएफ को भारत की घरेलू मजबूरियां ही नहीं पता। भारत की कुल मुद्रास्फीति में आयातित सामान की महंगाई का बहुत असर है और 1.4 अरब लोगों को यह प्रभावित करती है। इसलिए केंद्रीय बैंक को रुपये में उतार-चढ़ाव को सक्रियता के साथ संभालना पड़ता है।’ आईएमएफ ने कहा है कि भारत की आर्थिक वृद्धि पर आगे आने वाले जो​खिम संतुलित हैं। मगर उम्मीद से अधिक पूंजीगत व्यय और अ​धिक रोजगार के मद्देनजर वृद्धि दर का अनुमान 6 फीसदी से बढ़ाकर 6.3 फीसदी कर दिया गया है।भारत ने आईएमएफ को बताया है कि उसे 7 से 8 फीसदी वृद्धि होने की पूरी उम्मीद है। आईएमएफ ने कहा, ‘निकट भविष्य में वै​श्विक वृद्धि दर में भारी गिरावट व्यापार एवं वित्तीय रास्तों से भारत को प्रभावित करेगी। वै​श्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान से जिंसों के दाम घटेंगे-बढ़ेंगे, जिससे सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ जाएगा। देश में महंगाई के कारण खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ सकता है। अच्छी बात यह है कि उपभोक्ता मांग और निजी निवेश उम्मीद से बेहतर रहने के कारण वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।’