खेती फसल विविधीकरण में अति उपयोगी उपसंचालक कृषि ने किया भ्रमण

सिवनी l कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ शेखर सिंह बघेल की मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केंद्र में कृषकों के हितार्थ नित्य नए नवाचार किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में कृषि विज्ञान केंद्र की फसल संग्राहलय में कृषकों के बीच जागरूकता एवं फसल विविधीकरण के अंतर्गत कुसुम (करडी) की खेती को बढावा देने हेतु कार्य किया जा रहा है। कुसुम (सेफफ्लावर) की खेती के नवाचार को देखने हेतु उपसंचालक, कृषि विकास एवं किसान कल्याण विभाग, श्री मोरिस नाथ द्वारा भ्रमण किया गया, श्री नाथ ने कहा कि केन्द्र द्वारा फसल विविधीकरण के क्षेत्र में कुसुम की खेती एक उत्कृष्ट कार्य सिवनी जिले किसानों के हित में किया जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख डॉ. बघेल ने जानकारी देते हुए बताया कि कुसुम की खेती सीमित पानी की दशा में अधिक लाभप्रद है इसे मुख्यतः तिलहन फसल के रूप मे उगाते हैं इसमें 30 से 35 प्रतिशत कोलेस्ट्रोल रहित तेल प्राप्त होता है एवं कुसुम का तेल पौष्टिक होने के साथ ही आयरन एवं कैरोटीन से भरपूर है। कुसुम के पत्तों की सब्जी सेहत के लिए फायदेमंद एवं स्वादिष्ट होती है, इसमें 21.0-29.75 प्रतिशत प्रोटीन, 18.99 मीलि ग्रा.100 ग्रा.विटामिन-सी, 8.07-9.50 प्रतिशत रेशा पाया जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. निखिल सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि कुसुम/करडी एक तिलहनी फसल है इसकी खेती सिवनी जिले के किसनो हेतु अति लाभकारी साबित होगी। कुसुम की खेती हेतु बीज दर 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं उपज 14 से 15 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है, इसकी बुवाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर के बीच की जा सकती है इसमें कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर एवं बुआई 3 से 4 सेंटीमीटर गहराई में की जानी चाहिए। कुसुम की उन्नतशील प्रजातियों में प्रमुख रूप से आर. व्ही. एस. ए. एफ 18-3, आर. व्ही. एस. ए. एफ 14-1, कुसुम के-65, मालवी कुसुम एवं छत्तीसगढ कुसुम-1 आदि हैं। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. के. के. देशमुख ने बताया कि कुसुम की खेती में विशेष रूप से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड की आवश्यकता होती है जिसमे से बुवाई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 20 किलोग्राम फासफोरस खेत की तैयारी के समय ही मिला देना चाहिए बाकी बची हुई 20 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा फसल के 30 से 35 दिन के अंतराल में छिडकाव कर देना चाहिए, इससे पौधों की वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती है। इसकी खेती मुख्यतः असिंचित क्षेत्र में की जाती है एवं यदि पानी की व्यवस्था हो तो एक सिंचाई फूल आने के समय करने से फूलों की संख्या में बढोतरी एवं उत्पादन भी अधिक प्राप्त होता है। उपसंचालक कृषि श्री मोरिस नाथ जी के भ्रमण के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. निखिल सिंह, डॉ. के के देशमुख, डॉ. आर. एस. ठाकुर, इंजी. कुमार सोनी, डॉ. जी. के. राणा, डॉ. के. पी. एस. सैनी आदि की उपस्थिति रही एवं कृषि विभाग के श्री प्रफुल्ल घोडेश्वर, श्री राजेश मेश्राम, डॉ अखिलेश कुल्हारे, इफको के अनिल बिरला की उपस्थिति रही।