जबलपुर। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पलक श्रीवास्तव ने आवेदक को निर्देश दिया है कि सभी दस्तावेजों के साथ अनावेदक कथित डॉक्टर के खिलाफ सिविल लाइन थाने में एफआईआर दर्ज कराएं। न्यायालय ने सिविल लाइन पुलिस को निर्देशित किया है कि फर्जीवाड़ा, जालसाजी सहित मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम एवं अन्य धाराओं के तहत 5 अप्रैल तक जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।जबलपुर निवासी शैलेन्द्र बारी द्वारा दायर परिवाद में कहा गया कि अनावेदक शुभम अवस्थी ने फर्जी डिग्री के आधार पर शासकीय विक्टोरिया अस्पताल में डॉक्टर पद की नियुक्ति प्राप्त की। नौकरी पाने के लिए अनावेदक ने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर से आयुर्वेद स्नातक की कूटरचित डिग्री तैयार कर पेश की, जिसमें खुद को शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय जबलपुर से स्नातक होना बताया। इसके अलावा, मध्यप्रदेश आयुर्वेद तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति एवं प्राकृतिक चिकित्सा बोर्ड, भोपाल में ऑफलाइन पंजीयन क्रमांक 56970 दर्शाया। वास्तव में यह पंजीयन क्रमांक डॉक्टर इरम जहां मंसूरी के नाम पर रजिस्टर में दर्ज है।फर्जी तरीके से नौकरी प्राप्त कर कथित डॉक्टर ने एक साल तक बाकायदा वेतन भी प्राप्त किया और इस दौरान मरीजों की जान से खिलवाड़ करता रहा। इसके अलावा, अनावेदक ने जलसा जी कर अल्टरनेटिव सिस्टम ऑफ मेडिसिन के स्नातक और स्नातकोत्तर की भी फर्जी डिग्री तैयार की। वह अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखता रहा, जो कानूनन गलत है। इस संबंध में पुलिस थाने और अन्य संबंधित अधिकारियों से शिकायत की गई थी, लेकिन डेढ़ साल तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर परिवाद दायर किया गया। आश्चर्यजनक सवाल यह है कि एक फर्जी डॉक्टर 1 साल तक लोगों की जान से खिलवाड़ करते रहा और सिस्टम में बैठे लोग उस पर कार्रवाई करने की बजाय आंख मूंद कर बैठे रहे l यह मामला बहुत गंभीर है इस मामले में आवेदक ने जिस - जिस फोरम पर भी शिकायत की और जिन्होंने जानबूझकर इस मामले की अनदेखी की है, सिस्टम में बैठे उन सारे लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए अकेले उस फर्जी डॉक्टर के खिलाफ फिर दर्ज करने से कुछ नहीं होगा l उससे ज्यादा दोषी तो उस डॉक्टर को बचाने वाले भी हैं l उस फर्जी डॉक्टर के खिलाफ Fir नहीं करने के लिए पुलिस पर किस किस नेता या अफसर ने दबाव बनाया l सिस्टम में बैठे उन सभी लोगों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्ति ना हो l