तो पढ़ना लिखना फिजूल है अगर पढा़ई का मतलब अनपढो़ के आदेश को मानना है

दिव्य चिंतन
पढ़ना लिखना फिजूल है...
हरीश मिश्र
सरकार पूरे जोश में #प्रवेशोत्सव मना रही है, बच्चों को स्कूल भेजने की अपील कर रही है। नारा दिया जा रहा है— पढ़ो आगे बढ़ो !" लेकिन ज़रा ठहरिए! पढ़ लिखकर करेंगे क्या ?
देखिए, जो पढ़-लिख गए, वे आईएएस, आईपीएस, आईएफएस बनकर बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठे हैं। लेकिन उनका असली काम क्या है ? बस उन जनप्रतिनिधियों के वैद्य/अवैद्य आदेश मानना, जिन्होंने शायद किताबें खोलने की ज़हमत भी नहीं उठाई!
मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल में कई माननीय ऐसे हैं, जिनकी शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास से आगे नहीं बढ़ी। लेकिन देखिए तो सही, वे क्या मजे में हैं! सुरक्षा के लिए गार्ड, हूटर वाली गाड़ी, नौकरों की फौज, नीतियां बनाने का अधिकार—सब कुछ इनके पास है और उनके फरमान बजाने में जुटे हैं वे अधिकारी, जिन्होंने तमाम कठिन परीक्षाएं पास करके अफसर की कुर्सी पाई। *मंचों पर ऐसे-ऐसे अनपढ़ नेता बैठ जाते हैं, जो व और ब में अंतर नहीं जानते और आई ए एस, , आई पी एस, आई एफ एस हाथ बांधकर खड़े रहते हैं।
अब बताइए, जब शासन चलाने के लिए डिग्रियों की ज़रूरत ही नहीं, तो फिर पढ़ाई-लिखाई का इतना हौवा क्यों ?
अगर पढ़ाई का मतलब सिर्फ़ अनपढ़ों के आदेश मानना है, तो वाकई पढ़ना-लिखना फिजूल की चीज़ लगती है!