31 दिन काम...
न छुट्टी...
न ओवरटाइम...

स्वास्थ्य विभाग में सफाईकर्मियों की मेहनत पर डॉक्टर और ठेकेदार कर रहे हैं 

हाथ की सफाई'

रायसेन (हरीश मिश्र  9584815781 ) जिले के स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कार्यरत सफाईकर्मियों के कार्यदिवस, अवकाश, अनुपस्थिति, वेतन और पीएफ संबंधी जानकारी जब मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी से सूचना के अधिकार से मांगी गई, तो चौंकाने वाले खुलासे हुए।

31 दिन की हाजिरी, कोई छुट्टी नहीं

मार्च 2024 में सफाईकर्मियों से पूरे 31 दिन कार्य लिया गया। उन्हें हक की साप्ताहिक चार छुट्टियां तक नहीं दी गईं। न ही ओवरटाइम का दो गुना भुगतान किया गया, जैसा कि श्रम कानूनों में प्रावधान है।

गैरतगंज, औबेदुल्लागंज, बरेली, सिलवानी, देवरी, उदयपुरा और सांची ब्लॉक से प्राप्त जानकारी में एक भी कर्मचारी की छुट्टी दर्ज नहीं पाई गई — सभी की 31 दिन की उपस्थिति दर्ज है।

साजिश: कंपनी और स्वास्थ्य अधिकारी की मिलीभगत ?

जानकारी के अनुसार इंदौर की प्रथम नेशनल सिक्योरिटी कंपनी और रायसेन के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से सफाईकर्मियों का खुलेआम शोषण किया जा रहा है। कर्मचारियों को कैमरे पर बोलने से डराया-धमकाया जाता है, नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है। तब
दैनिक दिव्य घोष के स्टिंग ऑपरेशन में सच सामने आया कि जिला अस्पताल में कार्यरत सफाईकर्मियों को महज ₹8000/माह वेतन दिया जा रहा है, जबकि श्रमायुक्त विभाग के आदेश 30/09/24 अनुसार कुशल श्रमिकों को ₹12460/प्रति माह वेतन मिलना चाहिए। जांच का विषय है कि हर कर्मचारी के वेतन से ₹4460 हर महीने किस की जेब में जा रहा है ?

कानून क्या कहता है ?

श्रम कानून के मुताबिक किसी भी कर्मचारी से एक महीने में 26 दिन से अधिक ड्यूटी नहीं कराई जा सकती। अगर कराई जाती है, तो ओवरटाइम का दो गुना भुगतान अनिवार्य है। इसके अलावा साप्ताहिक अवकाश, आकस्मिक और वार्षिक अवकाश हर कर्मचारी का मौलिक अधिकार है।

जिनके भरोसे अस्पताल चमकते हैं, वही सबसे ज्यादा शोषित

स्वच्छता का जिम्मा उठाने वाले ये कर्मचारी हक की छुट्टियों और उचित वेतन से वंचित हैं। आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियुक्त इन सफाईकर्मियों से पूरा काम लिया जा रहा है, लेकिन आराम या इंसाफ कोई नहीं दे रहा।


सूत्रों के अनुसार कर्मचारियों की उपस्थिति पूरे महीने की दर्ज की जाती है और वेतन का एक बड़ा हिस्सा उपस्थिति देने वाले खंड चिकित्सा अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी और सिक्योरिटी एजेंसी के बीच बंट जाता है। यानी जो असल में मेहनत कर रहा है, वह 8000/ पर गुजारा कर रहा है, और जो कागजों पर खेल खेल रहा है, वह लाभ उठा रहा है।

डर के कारण नहीं बोलते कर्मचारी

नाम न छापने की शर्त पर कुछ कर्मचारियों ने बताया, “अगर एक दिन भी छुट्टी लें, तो हाजिरी काट दी जाती है और वेतन में कटौती कर दी जाती है।”

अब बड़ा सवाल यह है कि इस खुली लूट और श्रम कानूनों के उल्लंघन पर कार्रवाई कौन करेगा ? क्या श्रम विभाग और स्वास्थ्य विभाग मिलकर दोषियों को जवाबदेह ठहराएंगे या यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा?             

 

₹1 में सेवा : वित्तीय नियमों की अनदेखी या मिलीभगत का मामला ?

वित्त मंत्रालय और सामान्य वित्तीय नियम 2017 के अनुसार,
यदि कोई सुरक्षा कंपनी असामान्य रूप से कम दर पर टेंडर प्रस्तुत करती है, तो सक्षम अधिकारी को बोलीदाता से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए।

प्रथम नेशनल सिक्योरिटी कंपनी, इंदौर ने प्रति व्यक्ति मात्र ₹1 की दर से टेंडर प्रस्तुत किया, किंतु स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा नियमानुसार कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा गया। दूसरी कंपनी द्वारा की गई शिकायत को भी अनदेखा करते हुए कार्य प्रथम कंपनी को ही सौंप दिया गया।

प्रथम नेशनल सिक्योरिटी कंपनी के बिल क्रमांक 4532 के अनुसार 11 श्रमिकों के लिए ₹1,67,956/- का भुगतान किया गया, जिसमें कंपनी को सेवा शुल्क के रूप में मात्र ₹11/- प्राप्त हुए।
जब वर्तमान समय में ₹1 में एक कप चाय भी नहीं मिलती, तब कंपनी ₹1 में सेवा कैसे दे सकती है?

वास्तविकता यह है कि जिला स्वास्थ्य अधिकारी और कंपनी की मिलीभगत से कुशल श्रमिकों के ₹4,460/- प्रति व्यक्ति वेतन का अनुचित रूप से बंटवारा किया जा रहा है। इसके बावजूद भी अस्पताल प्रबंधन और ठेकेदार अपने ऊपर लगे आरोपों को झूठा बता रहे हैं ..