दिव्य चिंतन

कब तक कफ़न ओढ़ें भारत माँ के वीर ?

हरीश मिश्र 

       भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा में जातीय, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय आधार पर अनेक रेजीमेंटों का गठन हुआ है। ये केवल सैनिक रेजिमेंट नहीं, बल्कि बलिदान की अमर प्रतिमाएँ हैं—राजपूत, सिख, गोरखा, जाट, महार, कुमाऊँ, गढ़वाल, डोगरा, नागा, असम, मद्रास तथा मिज़ोरम रेजीमेंट जैसी अनेक सैन्य टुकड़ियाँ, जिनके वीरों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है।
    हम भारत के लोग...संविधान द्वारा प्राप्त अधिकारों के साथ, सरकार से यह मांग करते हैं कि एक नवीन रेजीमेंट का गठन किया जाए *धवल वस्त्रधारी फैंस क्लब  अग्निवीर रेजीमेंट...2

    इस रेजीमेंट में मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, पार्षद, नगरपालिका अध्यक्षों, पंच, सरपंचों के 
पुत्रों ,नातियों ,पौत्रों* तथा उन सभी *छोटी चम्मचों को सम्मिलित किया जाए जो  सत्ता के इर्द-गिर्द *फैंस क्लब* बनाकर सत्ता का शहद चाटते हैं।
    इस योजना के अंतर्गत, जो भी धवल चिरंजीवी ,छोटी चम्मच पाँच वर्ष तक सरहद पर सेवा कर मातृभूमि की रक्षा करेगा, उसी को बूथ अध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष, विधायक प्रतिनिधि, पंच, सरपंच, पार्षद, नगरपालिका अध्यक्ष, विधायक या सांसद बनने का अधिकार दिया जाए।
   हम भार के लोगों...का मानना है जो धवल चिरंजीवी, छोटी चम्मच कश्मीर की बर्फ़ीली सरहद से लौटेगा, वह अनुशासन, देशभक्त और ईमानदार होगा उसे ही जनसेवा का अवसर मिलना चाहिए, जिससे भ्रष्टाचार मिटेगा।

कब तक कफ़न ओढ़ें भारत माँ के वीर ?
कहे तिरंगा — नेता पुत्रों को भिजवा दो कश्मीर!
   श्रीमान! उन्हें सरहद पर भेजिए, जहाँ देश सेवा केवल भाषणों में नहीं, अपितु बलिदान में अभिव्यक्त होती है। जब सरहद की बर्फ़ पर रक्त बहाना पड़े, तो उसका भार केवल सैनिकों का नहीं, बल्कि धवल वस्त्रधारी कुल खानदान, छोटी चम्मच के कंधों पर भी हो, क्योंकि-
तिरंगे का भार सबके कंधे पर हो, बंदूकें अब सत्ता के बेटे भी थामें। देश तभी सच्चे अर्थों में सुरक्षित होगा, जब हर वर्ग का रक्त सरहद पर बहे।

लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार)