जिस हमास समर्थक माओवादी को गिरफ्तार किया गया, उसके लिए आंसू बहा रहा है वामपंथी मीडिया ! 
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी 

आज कुछ प्रश्‍न हर देश भक्‍त हिन्‍दूस्‍तानी के हैं, क्‍या किसी को भी एक्‍टिव‍िस्‍ट के नाते भारत विरोधी गतिविधि करने का अवसर दे देना चाहिए? क्‍या आन्‍दोलन के नाम पर कोई भी कुछ भी करेगा, उसे ऐसा करने की छूट दी जा सकती है? आप सरकार को अपशब्‍द कहें, तमाम सेवा कार्यों में लगे संगठनों को अपशब्‍द कहें, देश को विखण्‍ड‍ित कर देने का सपना देखें और सरकार इसके बाद भी चुप रहे, आपके खिलाफ कोई एक्‍शन न ले, ये कैसे हो सकता है? लेकिन देश में लगता है आतंकवादी संगठन ‘हमास’ के समर्थक और माओवादी यही चाहते हैं! जिसमें कि नैरेटिव वॉर के लिए वामपंथी मीडिया संस्‍थान भी इन जैसों का साथ और समर्थन करते नजर आते हैं। 

केरल के एक्टिविस्ट रेजाज एम शीबा सिद्दीक को नागपुर पुलिस ने सोशल मीडिया पर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की आलोचना करने वाले संदेश पोस्ट करने के लिए जब गिरफ्तार किया तो यही देखने में आया कि ‘द वायर’ जैसे मीडिया संस्‍थान इस तरह के समाचार उसके समर्थन में लिख रहे हैं, जैसे कि वह इनोसेंट है, उसने कुछ गलत किया ही नहीं। दूसरी ओर पुलिस के अनुसार, रेजाज का नाम महाराष्ट्र के माओवादी कार्यकर्ताओं की सूची में सबसे ऊपर है। इसने सोशल मीडिया में नक्सलियों के समर्थन में अब तक अनेक आपत्तिजनक पोस्ट किए हैं। इंटेलिजेंस ने उसके नक्सली ग्रुप के कनेक्शन की जानकारी दी और गिरफ्तारी के दौरान उसके पास से नक्सल साहित्य भी मिला है। उसे पूछताछ के लिए पांच दिन की रिमांड पर लिया गया है। लेकिन ये वामपंथी मीडिया संस्‍थान इस कार्रवाई को जैसे गलत ठहरा रहा है। कहा जा रहा है कि ‘वे देश के दक्षिणी राज्यों में मानवाधिकार मुद्दों पर सक्रिय रूप से रिपोर्टिंग कर रहे हैं।’  जबकि इसके खिलाफ हुई एफआईआर में उल्लेख किया गया है कि रेजाज ने भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’  की आलोचना की थी, इसके अनुसार पाकिस्‍तान में आतंकवादी नहीं, पाकिस्तान में नागरिक मारे गए। यानी भारत विरोधी ये नैर‍ेटिव चलाता है। 

पुलिस का कहना यह भी है कि रेजाज ने पोस्ट में “भारतीय सेना मुर्दाबाद” लिखा था। इंस्टाग्राम पोस्ट में एक बच्चे की तस्वीर शामिल थी, जिस पर संदेश था, “यह एक बच्चा है!!! बच्चों को निशाना बनाना न्याय की सेवा है??? भारतीय सेना मुर्दाबाद!!!” ये रेजाज यही नहीं रुकता पुलिस के अनुसार वह ऑपरेशन सिंदूर के साथ-साथ ऑपरेशन कगार की भी निंदा करता है, जो छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में चल रहा है, जहां हाल के महीनों में नक्‍सलवाद का खात्‍मा करने के लिए चुन-चुन कर सुरक्षा बल इन दिनों इन्‍हें मार रहे हैं, जिसमें कि हमारे कई सैनिक भी अब तक हुतात्‍मा(बलिदानी) हो चुके हैं। 
इस ‘ऑपरेशन कगार’ के बारे में यहां इतना समझलीजिए कि केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2024 में यह शुरू किया गया एक नक्सल विरोधी सैन्य अभियान है। यह वामपंथी उग्रवाद ( एलडब्ल्यूई ) को खत्म करने के लिए सुरक्षा कार्रवाई, निगरानी प्रौद्योगिकी और विकास आउटरीच को एकीकृत करता है। इसका कोर जोन,  बस्तर (छत्तीसगढ़), गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), पश्चिमी सिंहभूम (झारखंड) है। इसमें सीआरपीएफ, कोबरा, डीआरजी, एसटीएफ और राज्य पुलिस के 1 लाख से अधिक जवान शामिल हैं । ऑपरेशन कगार में ड्रोन, एआई और उपग्रह इमेजरी जैसे उन्नत निगरानी उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है।

कुल मिलाकर इसका महत्व यह है कि देश में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 106 (2015 में) से घटाकर 2025 तक मात्र 6 पर लाते हुए इसे शुन्‍य तक पहुंचा देना है। इसका उद्देश्य राज्य नियंत्रण को बहाल करना, विकास को सक्षम बनाना और अनुसूचित जनजाति समुदायों को माओवादी शोषण से बचाना है। पर यहां देखों वामपंथ से प्रेरित मीडिया संस्‍थानों को अपने बलिदान होनेवाले सैनिकों की चिंता नहीं, चिंता हो रही है, तो इस तथा‍कथित पत्रकार की, जोकि माओवादियों के समर्थन में, देश की सरकार की सिर्फ आलोचना करने में विश्‍वास रखता है! और यह विश्‍वास इस हद तक है कि पाकिस्‍तान प्रेरित आतंकवादियों का, जिन्‍होंने धर्म के आधार पर नाम पूछकर पहलगाम में नरसंहार किया, उनको सबक सिखाने के लिए जब भारत सरकार आतंकवादियों और उनसे जुड़े लोगों पर कार्रवाई करती है, तो यह अपनी ही सरकार के विरोध में खड़ा हो जाता है! लेकिन नहीं साहब! इन वामपंथियों के अनुसार,  आप इस तथाकथित पत्रकार रेजाज एम शीबा सिद्दीक की कोई बुराई मत कीजिए, इस पर कोई कार्रवाई मत कीजिए, यह तो एक्‍टिविस्‍ट है? और यह एक्‍टिविस्‍ट के नाम पर कुछ भी करता रहेगा? 

वस्‍तुत: यहां जिन्‍हें इससे हमदर्दी हो रही है, उन सभी को आज यह जान लेना चाहिए कि कथित तौर पर रेजाज को तब ट्रैक किया गया था जब उसने इंस्टाग्राम पर आग्नेयास्त्र (पिस्‍टल) लहराते हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' की आलोचना करते हुए एक स्टोरी पोस्ट की थी। यहां जिस तरह से ‘द वायर’ में उसके समर्थन में लिखा गया, वह देखिए; “…हालांकि एफआईआर में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि बंदूकें नकली थीं या असली”, लेकिन पुलिस ने बंदूकों के स्रोत का पता लगाने के लिए उसकी हिरासत की आवश्यकता बताते हुए उसे गिरफ्तार किया है। अब यहां समझने वाली बात यह है कि पुलिस क्‍या गलत कह रही है? जब गिरफ्तार किया जाएगा तभी तो पता चलेगा कि वह जिन बंदूकों को हवा में लहरा रहा है, वह असली हैं या नकली, उसके स्‍त्रोत क्‍या हैं? 

फिलहाल सुरक्षा के नजरिए से पुलिस प्रशासन ने रेजाज का सोशल मीडिया हैंडल बंद कर दिया है। अन्‍यथा तो जो उसे देखता, समझ जाता कि उसके मन में भारत के बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज, भारत में केंद्र की मोदी सरकार और राष्‍ट्रीय चेतना के लिए अपना सर्वस्‍व त्‍याग करनेवाले संगठनों के लिए कितना ह्रदय में जहर भरा हुआ है। 

कहना होगा कि अपनी इस पूरी कहानी में ‘द वायर’ इस रेजाज एम शीबा सिद्दीक को एक हीरो की तरह से प्रस्‍तुत करता है। अपराधी का महिमामंडन, वह भी ऐसे वक्‍त में, जब वह देश की सुरक्षा से जुड़े ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Strategic Initiative for Neutralizing Destructive Opponents with Overwhelming Retaliation) की आलोचना करके देश के आम नागरिकों को भड़काने का काम वह कर रहा था। वास्‍तव में तब जरूर लगता है कि वामपंथी मीडिया का यही चरित्र है। इस प्रकार के मीडिया को लगता है कि सरकार के अच्‍छे कार्यों की आलोचना करना जैसे सबसे ज्‍यादा पवित्र कार्य है। फिर देश में परस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल (भीषण) ही क्‍यों न हों। ये आतंकियों, नक्‍सलवादियों, माओवादियों का समर्थन मानवाधिकार के नाम पर करते रहेंगे। वे इस तरह के लोगों का एक्‍टिविस्‍ट की आड़ में सहयोग और अपना समर्थन प्रदान करते रहेंगे, फिलहाल तो यही जान पड़ता है।