• सुश्री निर्मला भूरिया

नर्मदा नदी के किनारे स्थित भारत के प्राचीन मंदिर नगरों में से एक, महेश्वर अपनी महेश्वरी सिल्क के लिए प्रसिद्ध है। महेश्वर का शाब्दिक अर्थ है “शिव की भूमि”। चाहे आप आध्यात्मिक रूप से जुड़ाव रखते हों या नहीं, महेश्वर के आकर्षण से बच पाना कठिन है। इसके घाटों और किलों की जीवंतता एक अलग ही तरह की शांति प्रदान करती है। मनमोहक घाट और रोमांचकारी किले के अलावा, महेश्वर की गलियाँ रंग-बिरंगे लकड़ी के घरों और सुंदर बालकनियों से सजी हुई हैं। यह स्थान अत्यंत मोहक और शांतिपूर्ण है।

लोकमाता देवी अहिल्याबाई ने 18वीं शताब्दी में जब शासन की बागडोर संभाली, तब उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि एक महिला भी कुशल प्रशासक, समाजसेविका और संस्कृति संरक्षिका हो सकती है। महेश्वर ने रानी अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल में सांस्कृतिक ऊंचाइयों को छुआ। रानी अहिल्याबाई न केवल मध्यप्रदेश का गर्व हैं, बल्कि भारत की सबसे साहसी रानियों में से एक मानी जाती हैं। रानी अहिल्याबाई होल्कर ने अपने समय में कला, शिक्षा, संस्कृति और को न केवल संरक्षण दिया, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई पहल भी कीं। साथ ही नर्मदा नदी के तट पर बसे महेश्वर को एक सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में विकसित किया। आज भी उन्हें महिला नेतृत्व की एक महान प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। रानी उन महानतम स्थापत्य शिल्पियों में से एक थीं, जिन्होंने किलों, मंदिरों और नगरों का निर्माण कराया। एक निर्भीक योद्धा और कुशल राजनीतिज्ञ होने के नाते, रानी अहिल्याबाई होल्कर ने अपने लोगों को कई कठिन परिस्थितियों से सुरक्षित रखा। देवी अहिल्याबाई ने भारत में अनेक मंदिरों, घाटों और अन्य संरचनाओं के निर्माण का आदेश दिया। रानी अहिल्याबाई विधवा होते हुए भी मराठा साम्राज्य की सबसे शक्तिशाली और प्रेरणादायक व्यक्तित्वों में से एक बन गईं। उनकी सफलता ने दुनिया को दिखा दिया कि महिलाएं क्या कुछ कर सकती हैं।