गुना ज़िले के बमोरी विकासखंड के ग्राम बछाबदा के किसान लाखन सिंह लोधा की कहानी आज सैकड़ों किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। 5 साल पहले उन्होंने एक ऐसी ज़मीन पर खेती का सपना देखा जो उबड़-खाबड़, पहाड़ी, झाड़ियों से घिरी, ककड़ीली और पथरीली थी — और उस पर सिंचाई की भी कोई सुविधा नहीं थी।लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उद्यानिकी विभाग के अधिकारी श्री आर.एस. केन के तकनीकी मार्गदर्शन और सहयोग से उन्होंने एक एकड़ में 150 से अधिक नींबू के पौधे लगाए। सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद उनका धैर्य रंग लाया। आज वही ज़मीन उन्हें साल में तीन बार नींबू की फसल दे रही है। और अगर बाज़ार में भाव अच्छे मिले, तो लाखन सिंह को वार्षिक ₹5 लाख तक का शुद्ध लाभ का अनुमान है।

 

अब अगला कदम – वैज्ञानिक खेती की ओर

 

अब लाखन सिंह सिर्फ़ मेहनत से नहीं, विज्ञान और तकनीक की सहायता से आगे बढ़ने की योजना बना चुके हैं। उद्यानिकी विभाग के उपसंचालक श्री के.पी.एस. किरार जी के मार्गदर्शन में वे अपने खेत में ड्रिप सिंचाई प्रणाली अपनाने की तैयारी कर रहे हैं, जिससे जल प्रबंधन बेहतर हो और उत्पादन में वृद्धि हो सके।

 

इतना ही नहीं, उन्होंने पास के स्रोत से पानी की स्थायी व्यवस्था भी कर ली है। अब वे अपने बाग़ में बीच के क्षेत्रों की सफ़ाई करके अंतरवर्ती फसलें लगाने की योजना बना रहे हैं ताकि उपज और आय दोनों को बढ़ाया जा सके।

 

यह कहानी हमें सिखाती है कि: बंजर ज़मीन पर भी संकल्प और विज्ञान से हरियाली लाई जा सकती है।मार्गदर्शन , तकनीक और मेहनत का संगम सफलता की कुंजी बन सकता है।किसान अगर ठान लें, तो वे न सिर्फ़ अपनी तक़दीर बदल सकते हैं, बल्कि नई पीढ़ी के लिए आदर्श भी बन सकते हैं।

श्री लाखन सिंह लोधा आज साबित कर चुके हैं कि खेती सिर्फ़ परंपरा नहीं, नवाचार और विज़न का क्षेत्र है। वे एक ऐसे कृषक बन चुके हैं जो स्वयं पर गर्व कर सकते हैं और हम सब भी।