नई दिल्ली। सियासी उत्तरदायित्व, शुचिता व नैतिकता, ग्रास रूट से कार्यकर्ताओं को मिलने वाली जिम्मेदारी जैसी दूसरी कई सारी चीजें आम आदमी पार्टी में गायब हो गई , उन लोगों को भी पार्टी से एक- एक करके किनारे कर दिया गया, जिनमें आत्म चिंतन की शक्ति थी, जिनकी मर्यादित और सर्वस्वीकार्य आवाज थी, जिनके पास नैतिक व बौद्धिक पूंजी थी। पार्टी के मौजूदा शीर्ष नेतृत्व से भी नैतिकता का आवरण पूरी तरह हट गया था l भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकलकर मुख्यमंत्री बने केजरीवाल को अपने ही विधानसभा क्षेत्र के 123 बूथों में से 115 पर हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराने वाले केजरीवाल को 64.34 फीसदी मत मिले थे। 2020 में यह अंतर कुछ ही कम हुआ और उन्हें 61.10 फीसदी मिले। इस बार के चुनाव में 43 फीसदी मत ही मिले। ऐसे में उनके मत फीसदी में 2015 की तुलना में लगभग 20 फीसदी की कमी आई। करारी हार के बाद वे ना सिर्फ दूसरे पर उंगली उठाने के लायक नहीं है बल्कि अब पार्टी के अंदर से उन्हें ही कटघरे में खड़ा करने वाली आवाजे  भी उठेंगी l