बड़वानी / कृषि कार्य के लिए मिट्टी का महत्व सर्वविदित है। मिट्टी भूपर्पटी की ऊपरी परत होती है, जो पौधों को सहारा देती है, जिसमें जलधारण क्षमता होती है और जो फसलों को पोषक तत्व प्रदान करती है। एक इंच मिट्टी बनने में सौ साल का समय लग जाता है। यदि हम मिट्टी का सही प्रबंधन नहीं करें तो बारिश का जल उसे बहाकर कुछ ही मिनिटों में नष्ट कर देता है। रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग करके हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। कृषि में बढ़ते यंत्रीकरण ने पशुपालन के प्रति रूझान कम किया है। जैविक खाद बहुत ही कम बन पा रहा है, जो देश की कुल कृषि आवश्यकताओं के बहुत छोटे से हिस्से को ही पूरा कर पा रहा है। ये बातें बातें शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ द्वारा प्रशिक्षित किये जा रहे व्यावसायिक पाठ्यक्रम जैविक खेती के विद्यार्थियों को कृषि विज्ञान केन्द्र, तलून, जिला-बड़वानी में प्रशिक्षण देते हुए विषय विशेषज्ञ डॉ. बी. कुमरावत ने कहीं। धरती मां की सेहत का रखें ख्याल प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एस. के. बड़ोदिया ने विद्यार्थियों की द्वितीय बैच को विस्तार से मार्गदर्शन देते हुए व्यावहारिक उदाहरणों से जैविक खेती के सूत्र समझायें। उन्होंने कहा कि जब हमारी मां बीमार हो जाती है, तो हम उनकी कितनी चिंता करते हैं और उनकी चिकित्सा भी करवाते हैं। लेकिन हम धरती मां का हालचाल कभी नहीं पूछते। रासायनिक उत्पादोें के उपयोग और त्रुटिपूर्ण कृषि प्रक्रियाओं के कारण धरती मां भी अस्वस्थ हो गई है। उसकी उर्वरा शक्ति में निरंतर ह्रास होता जा रहा है। हमें अपने खेत की मिट्टी का सही विधि से नमूना लेकर उसका परीक्षण करवाना चाहिए। ताकि हम जान सकें कि हमारे खेत की मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है। उन्होंने सभी युवाओं को शपथ दिलाई कि वे कृषि भूमि की मिट्टी की सेहत का ख्याल रखेंगे और सही विधि से मिट्टी का नमूना लेकर कृषि विज्ञान केन्द्र पर लायेंगे और उसका परीक्षण भी करवायेंगे। कार्यशाला का आयोजन प्राचार्य डॉ. दिनेश वर्मा के मार्गदर्शन में किया गया। कार्यशाला का समन्वय प्रीति गुलवानिया एवं संचालन कार्यकर्ता वर्षा मुजाल्दे ने किया। सहयोग नागरसिंह डावर एवं डॉ. मधुसूदन चौबे ने किया।