रातभर बंदूको की गोलियां,तोपो की गर्जना के साथ बारूद की होली

राजस्थान में मेनोर गांव एक ऐसी जगह है जहां बंदूकों और तोपों की गर्जना के बीच आतिशबाजी के साथ बारूद की होली का यह त्यौहार होली के बाद मनाया जाता है l रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग बदस्तूर निभा रहे हैं l इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग मेनार गांव पहुंचते हैं l इस दौरान मेनारिया ब्राह्मण समाज के 52 गांवों के लोग पंच मेवाड़ की पारंपरिक धोती, (अंगरखी)झब्बा और पगड़ी पहनते हैं l यह होली बहुत खास है l जहां बारुद से होली खेली जाती है l इस दौरान रातभर तोपें और बंदूकें चलती रहती हैं जिनकी आवाज से मेवाड़ गूंज उठता है। मुगलों पर विजय की खुशी में मेनार के लोग इस परंपरा को अनवरत 450 सालों से निभा रहे हैं l जैसा युद्ध मुगलों से हुआ था वहीं दृश्य जीवंत करते हैं l ऐसी मान्यता है कि महाराणा प्रताप के पिताजी उदय सिंह के समय मेनार गांव से आगे मुगलों की एक चौकी हुआ करती थी l मुगलों की इस चौकी से मेवाड़ साम्राज्य की सुरक्षा को खतरा था l मेवाड़ की रक्षा करने के लिए मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोगो ने वीर योद्धा बन कर मुगलों की चौकी पर धावा बोला और उसे पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था l मेनारिया समाज के लोगों ने अपने कुशल रणनीति से मेवाड़ राज्य की रक्षा की थी इस हमले में मेवाड़ की रक्षा में समाज के कुछ लोग भी शहीद हुए l उसके बाद से ही समाज के लोग मुगल चौकी पर अपनी जीत के जश्न को आज भी उसी अंदाज के साथ मना रहे हैं l कर्नल जेम्स टॉड ने भी मेनार गांव का उल्लेख अपनी पुस्तक 'द एनालिसिस ऑफ राजस्थान' में मनिहार नाम के गांव से किया है l