दलहनी रकबे के विकास में अरहर पूसा -16 जैसी नूतन किस्मो की भरपूर सम्भावनाएं

झाबुआ कलेक्टर नेहा मीना द्वारा क़ृषि अंतर्गत किये जा रहे नवाचारो के सम्बन्ध में समीक्षा बैठक आयोजित की गई। सामान्यतः अरहर की फसल छः से सात माह की होती है। अधिक अवधि की फसल होने के कारण किसान अरहर के बाद दूसरी फसल नहीं ले पाते है। वैज्ञानिको द्वारा अरहर की कम अवधि की किस्मे विकसित की गई है। पूसा अरहर-16 जैसी कम अवधि वाली किस्मो को जिले में नावाचार के रूप में चिन्हांकित कृषको के यहाँ लगवाया गया है, जिसके संतोषजनक परिणाम रहे।
जिले में दलहनी फसलो के रकबे में विस्तार के लिए अरहर पूसा-16 जैसी किस्में मिल का पत्थर साबित हो सकती हैं। अरहर पूसा-16 कम अवधि (120 दिन) में पककर तैयार हो जाती है, जिससे किसान रबी मौसम में गेहू, चना जैसी फसल का उत्पादन भी ले सकते है। खेती किसानी अंतर्गत नवाचारी प्रयासो की विस्तार से समीक्षा और दस्तावेजीकरण के सम्बन्ध में आयोजित बैठक के दौरान कलेक्टर द्वारा आकड़ो का वैज्ञानिकिय ढंग से संकलन और विश्लेषण के निर्देश दिए गये। कृषको के स्तर पर अरहर की कम अवधि की किस्म की स्वीकारोक्ति होने के फलस्वरूप आगामी वर्षो में विस्तार किये जाने के निर्देश दिए गये। इस खरीफ मौसम में उत्पादित फसल उपज को किसानो के स्तर पर संरक्षित भी किये जाने की आवश्यकता व्यक्त की गई।
बैठक के दौरान उप संचालक क़ृषि एन.एस.रावत, कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ.जगदीश मोर्य, डॉ.डी.एस.तौमर द्वारा अरहर की नवीन किस्म के सम्बन्ध में अब तक किये गये तकनिकी और वैज्ञानिकिय कार्यो की विस्तार से प्रगति प्रस्तुत की गई। बैठक के दौरान कृषि विभाग के परियोजना संचालक आत्मा, सहायक संचालक कृषि सहित अनुभागीय अधिकारी एल.एस.चारेल,विकासखंड स्तरीय वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी उपस्थित रहे।