गाजरघास जागरूकता सप्ताह- हानिकारक गाजरघास का करें समेकित नियंत्रण
शिवपुरी l भा.कृ.अनु.प.-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के समन्वय में गाजरघास जागरूकता सप्ताह 16 से 22 अगस्त 2024 के दौरान पूरे देश में उन्नीसवें गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है। इसी क्रम में कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुंसधान संथान जोन 9, जबलपुर के निर्देशानुसार कृषि विज्ञान केन्द्र शिवपुरी द्वारा भी स्वच्छ भारत अभियान के घटक के रूप में इस गतिविधि में भाग लेने और गाजरघास मुक्त परिसर सुनिश्चित करने की अपील की जा रही है।
गाजरघास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) जिसे आमतौर पर सफेद टोपी, असाड़ी, गजरी, चटक चांदनी आदि नामों से जाना जाता है, एक विदेशी आक्रामक खरपतवार है। भारत में पहली बार 1950 के दशक में दृष्टिगोचर होने के बाद यह विदेशी खरपतवार रेलवे ट्रेक, सड़कों के किनारे, बंजर भूमि, उद्यान आदि सहित लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर फसलीय और गैरफसलीय क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है।
यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है, जिसकी लंबाई 1.5 से 2.0 मीटर तक होती है। यह मुख्यतः बीजों से फैलता है। यह एक विपुल बीज उत्पादक है और इसमें लगभग 5,000 से 25,000 बीज प्रति पौधा पैदा करने की क्षमता होती है। बीज अपने कम वजन के कारण हवा, पानी और मानवीय गतिविधियों द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं।
गाजरघास को सबसे अधिक खतरनाक खरपतवारों में गिना जाता है क्योंकि यह मनुष्यों और पशुओं में त्वचा रोग (डरमेटाइटिस), अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसे स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इसके सेवन से पशुओं में अत्यधिक लार और दस्त के साथ मुंह में छाले हो जाते हैं। स्वादहीन होने के कारण इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में नहीं किया जा सकता है, साथ ही घास के मैदानों, चारागाहों और वन क्षेत्रों में इसके फैलने से चारे की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। गाजरघास एक जनमानस की समस्या है, इसलिए इसे नियंत्रित करने के लिए किसानों, नगर पालिकाओं, कॉलोनी वासियों, गैर सरकारी संगठनों, स्कूली बच्चों आदि सहित समाज के सभी वर्गाें के द्वारा सामुदायिक पहल की आवश्यकता है ताकि वे अपने आसपास को गाजरघास से मुक्त रख सकें। गाजरघास के दुष्प्रभाव एवं इसके प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए बैठकें, प्रशिक्षण, प्रदर्शन आदि आयोजित करें। फूल आने से पहले इस खरपतवार को उखाड़कर कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट बना लें। गाजरघास को विस्थापित करने के लिए चकोड़ा (पंवार) गेंदा जैसे स्व-स्थायी प्रतिस्पर्धी पौधों की प्रजातियों के बीज का छिड़काव करें।
आकर्षित क्षेत्रों में संपूर्ण वनस्पति नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट (1.0-1.5 प्रतिशत) जैसे शाकनाशी का छिड़काव करें और मिश्रित वनस्पति में पार्थेनियम के नियंत्रण हेतु मेट्रिब्यूजिन (0.3-0.5 प्रतिशत) या 2, 4 डी (1.0-1.5 प्रतिशत) का छिड़काव उसमें फूल आने से पहले करें, ताकि घास कुल के पौधों का बचाया जा सके। फसलों में शाकनाशियों के प्रयोग से पहले खरपतवार/विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए। जुलाई-अगस्त के दौरान गाजरघास संक्रमित क्षेत्रों में जैविक कीट जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा को छोड़ें।