दिव्य चिंतन (हरीश मिश्र)

      उत्सव का आनंद लेने के लिए हमें अपने मन की आंखें खोलना होती हैं। उत्सव के रंग हमारे आस-पास बिखरे होते हैं, बस हमें मन की गहराई से उन रंगों का आनंद उठाना आना चाहिए।

   संक्रांति की सुबह में , ओस की बूंदों में , मकर के दिनकर की लालिमा में, नदियों के किनारों में,पूजा की थाली में,  दान और धर्म परायणता में, नानी के तिल के लड्डू में, दादी की गुड़ पट्टी में , मां के हाथों की खिचड़ी में, पतंग की ऊंचाई में, कटती पतंग लूटने में, चंद्रमा की चांदनी में, फूलों के रंगों में, चिड़ियों के गीतों में, हवाओं के संगीत में, महाशिवरात्रि की भांग में, बसंत की हवाओं में...
होली के रंगों में, 
दीपावली की रंगोली में,
हर दिन उत्सव है।

    उत्सव है, मां की लोरी में, बचपन की किलकारियों में, पिता की पिटाई में,मित्रों की मस्ती में, भाई-बहन के प्यार में,बुढ़ापे की झुर्रियों में उत्सव के अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। 
  पर्वत की ऊंचाई में, सागर की लहरों में, नदियों के प्रवाह में, झरनों के प्रपात में, जंगल में, वृक्षों की छांव में, प्रयागराज कुंभ में, अमृत स्नान में, 
बृज के फाग की मस्ती में, बनारस के मंदिरों में, अयोध्या की गलियों में, भारत के कण-कण में में उत्सव के रंग हैं।
 
भारत की राजनीति में,
लाड़ली बहनों के खातों में, संविधान बचाने में, अच्छे दिन आने की उम्मीद में,
मोहन भागवत के ज्ञान में,
मोदी जी की बातों में, राहुल की आंखों में, केजरीवाल के रंगों में, ओवैसी की जुबान में, 
ना जाने कितने रूप में उत्सव हमारे आसपास हैं...फिर भी ना जाने क्यों हम इन उत्सवों को जी नहीं पाते ?
   
जीवन में संगीत है, जीवन में सौंदर्य है...फिर भी हम दृष्टिहीन हैं। यदि आप जीवन के हर दिन को उत्सव के रूप में मनाना चाहते हैं तो अपनी क्षुद्रता, कुरूपता और अंधेपन को त्यागना होगा । आंखें खोलकर देखना होगा कि पृथ्वी और स्वर्ग की संपूर्ण समृद्धि आपके कदमों में हैं।

संक्रांति  की हार्दिक शुभकामनाएं!!