बड़वानी /जैविक खेती किसानों के लिए ही नहीं सभी के लिए अनिवार्य है। रासायनिक उर्वरक और कीटनाषक द्वारा तैयार की गई कृषि उपज के रूप में जहर का उपभोग किया जा रहा है। यदि जैविक खेती होगी तो किसान को अच्छा मूल्य प्राप्त होने से उसकी आय बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को जहर मुक्त खाद्य सामग्री प्राप्त होगी। यह उनके स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन के लिए लाभदायक होगी। मिट्टी में पाया जाने वाला केंचुआ किसानों का मित्र है। इसे किसानों का भगवान भी कहा जा सकता है। यह मिट्टी को उपजाऊ बनाने में बहुत सहायक होता है। ये बातें शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्षन प्रकोष्ठ द्वारा प्रषिक्षित किये जा रहे व्यावसायिक पाठ्यक्रम जैविक खेती के विद्यार्थियों को कृषि विज्ञान केन्द्र, तलून, जिला-बड़वानी में प्रषिक्षण देते हुए प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एस. के. बड़ोदिया ने कहीं। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. दिनेष वर्मा और कृषि विज्ञान केन्द्र के श्री रवीन्द्र सिकरवार ने भी मार्गदर्षन दिया। प्राचार्य डॉ. वर्मा ने कहा कि जैविक खेती के प्रति रूझान बढ़ रहा है। इसके महत्व को महसूस किया जा रहा है। रासायनिक उर्वरक और कीटनाषकों को अधिक प्रयोग कैंसर जैसी बीमारियों को बढ़ावा दे रहा है। तीन घंटे में सीखाई उपयोगी बातें डॉ. बड़ोदिया ने अपने तीन घंटे के ज्ञानयुक्त प्रजेंटेषन में युवाओं को जैविक खेती तथा कृषि से जुड़े अन्य विषयों के साथ ही विद्यार्थी जीवन में अनुकरणीय उपयोगी बातों की भी षिक्षा दी। उन्होंने फसल के लिए आवष्यक पोषक तत्वों और उनकी प्राप्ति के स्रोतों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन, मिट्टी और पानी से जीवामृत बनाया जाता है, जो जैविक खाद के रूप में अत्यंत उपयोगी होता है। इसकी लागत भी नाममात्र की आती है। उन्होंने इसे बनाने और उपयोग करने की प्रक्रिया समझाई। रूखड़े पर बनने वाली खाद, नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि सभी के बारे में सरल और रोचक ढंग से डॉ. बड़ोदिया ने युवाओं को समझाया। साथ ही यह भी निर्देष दिया कि अपने माता-पिता, परिवारजनों और अन्य व्यक्तियों को जैविक खेती के बारे में जागरूक कीजिए। उन्होंने कहा कि अभी आपका पढ़ाई करने का समय है, इसका सदुपयोग कीजिए। कार्यषाला का समन्वय प्रीति गुलवानिया एवं संचालन कार्यकर्ता वर्षा मुजाल्दे ने किया। सहयोग पन्नालाल बर्डे एवं डॉ. मधुसूदन चौबे ने किया।