दिव्य चिंतन(हरीश मिश्र) जावेद अख्तर-कवि , हिन्दी फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक हैं।  कहानी, पटकथा और संवाद लिखने और मंचों पर खरी- खोटी सुनाने के लिए चर्चा/ विवाद में रहते  हैं। 

      अजीब आदमी है, कभी 
मोहब्ब्त का गीत लिखते हैं‌ तो कभी बग़ावत का राग सुनाते हैं...कभी फूल से महकते हैं तो .कभी आग का शोला बन जाते हैं...कभी नापाक ज़मीं ( पाकिस्तान ) पर... नापाक हरकत का मुंह तोड़ जबाव देते हैं। 

    

    जावेद अख्तर तीन दिवसीय फैज़ फेस्टिवल में शामिल होने के लिए पाकिस्तान  गए । इस दौरान एक पाकिस्तानी महिला ने उनसे सवाल किया कि जिस प्रकार का प्यार और सम्मान पाकिस्तानी, भारतीय कलाकारों को देते हैं, वैसा प्यार और सम्मान हिन्दुस्तान में पाकिस्तानी कलाकारों को  नहीं मिलता। 

    तब जावेद अख्तर ने कहा  " हमारा देश तुम्हारे कलाकारों का सम्मान करता है। नुसरत फतेह अली खान या गुलाम अली सभी को भारतीयों ने खूब प्यार दिया है। उनके लिए आयोजन रखे हैं। लेकिन पाकिस्तान में कभी लता मंगेशकर जी को नहीं बुलाया गया  क्योंकि तुम्हारे यहां प्यार मोहब्बत की कोई नीति नहीं है । तुम तो 26/11 के आतंकवादी हमलों के अपराधियों को संरक्षण देते  हो ।" 

    जावेद अख्तर ने आतंकवाद की सरजमीं पर जाकर खूब खरी-खोटी सुनाई । सच तो यह है 1947 में इस नापाक मुल्क पाकिस्तान का जन्म ही नफ़रत की परखनली से, दहशतगर्दी की कोख के जिन्न से हुआ है। जिन्ना से लेकर शाहबाज़ शरीफ़ तक ने इस कंगाल सरजमीं पर एम्स, शिक्षा केंद्र, उद्योग के स्थान पर दहशतगर्दी के केंद्र खोले। इन केंद्रों के रहनुमा  और फौज दोनों हाथ सेंकते हैं।

    इंसानियत के दुश्मनों की सरजमीं  मजहब वाली कट्टर सोच का अंजाम है कि आज  दाने-दाने को मोहताज हैं। 

     मस्ज़िद में कृपा करने वाले कृपालु अल्लाह के सामने नवाज़ के लिए सर झुकाते हैं...श्रद्धा से श्रद्धालु ज़मीन पर माथा टेकते हैं.... नमाज़ पढ़ते हुए सजदा करते हैं... तब कोई दहशतगर्दी फैलाने वाला आतंकवादी बम विस्फोट कर पाक जमीं को लहु लुहान कर देता है। मस्जिद ढहा देता है। द्वेष, घृणा, अतिवाद के ठेकेदार जगह-जगह तैनात हैं। 

    ऐसा मुल्क अपने कलाकारों का सम्मान चाहता है ? कैसे सोच लिया कि भारत के गुनहगारों को ये संरक्षण दें और हम इनका सम्मान करें ?  ऐसा नहीं हो सकता।
अब हिन्दुस्तान बदल चुका है,  सम्मान उसे मिलेगा जो सम्मान का, मदद उसे जो मदद का और भीख उसे मिलेगी जो भीख का हकदार होगा।

 

    जावेद अख्तर ने साहित्य 
के माध्यम से आत्मशोधन कर स्वयं को निर्मल और कठोर बना लिया है। इसलिए खरी-खरी बोलते  और लिखते हैं। सत्य सिर चढ़कर बोलता है और गुणों की प्रशंसा बैरी भी करता है। गुणी और सद्चरित्र व्यक्ति की प्रशंसा होती है और जावेद अख्तर प्रशंसा के पात्र हैं।

लेखक - ( स्वतंत्र पत्रकार)
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