मंदसौर जिले के गांव धमनार के रहने वाले बद्रीलाल धाकड द्वारा लहसुन की नई उभरती हुई वैरायटी तैयार की है। इस लहसुन का नाम किसान द्वारा धमनार क्रांति रखा है। किसान बद्रीलाल धाकड़ द्वारा बताया गया कि यह वैरायटी दूसरी किस्म की लहसुन से कम खर्च पर उगाई जा सकती है। इसका ज्‍यादा उत्‍पादन होता है। इस लहसुन को ज्‍यादा समय के लिए भंडारण कर सकते है। यह लहसनु 165 से 175 दिन में लगभग तैयार हो जाती है। यह एक बीघा में लगभग 25 से 30 क्विंटल की लहसुन उत्‍पादन होती है। इसमें 50 से 75 हजार रू का खर्च हो जाता है। जिले में सबसे ज्‍यादा लहसुन कि खेती मंदसौर जिले में कि जाती है और किसान नए-नए प्रयोग भी करते है मंदसौर जिला कृषि के क्षैत्र में जो क्रांति ला रहा है। वह बहुत अद्भुद है। उटी लहसुन की एक किस्‍म आती है जिसका बीज किसान प्रत्येक वर्ष खरीदना पड़ता है और इसे 6 महिने से ज्‍यादा स्‍टोरेज नही कर सकते। इसलिए किसान ऊटी लहसुन के बीज को दोबारा अपने खेत में नहीं लगा सकता है।  फिर नया बीज लेना ही पड़ता है। इसका समाधान किसान बद्रीलाल ने करके दिखाया है। किसान बद्रीलाल ने शासन की योजनाएं ड्रिप पाइप मल्चिंग का भी लाभ प्राप्त किया और अनुदान भी प्राप्त किया। किसान बद्रीलाल नें वैज्ञानिकों के मार्ग दर्शन में हिमाचल की वैरायटी को 3 सालों के सघन शोध के बाद में एक क्रॉस बीज तैयार किया है। इसकी कैपेसिटी इतनी है कि जिन खेतों में लहसुन होना बंद हो गई है वहाँ पर भी ईसका उत्‍पादन हो जाता है। इस लहसनु की मुल विशेषता यह है कि इसकी गठान भी लगभग 50 से 75 ग्राम की होती है। दुसरी विशेषता यह है कि इसका पर्दा बहुत ज्‍यादा है और आज मार्केट में पर्दे कि बड़ी वैल्‍यु है। इसके 10-12 पर्दे रहते है जिससे लहसुन खराब नही होती ओर इसमे ज्‍यादा सफेदपन है और भारीपन भी ज्‍यादा है।  यह 12 से 18 महिने तक खराब भी नही होती है यह सारे गुण इस फसल में है। इस फसल को लेकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं किसान लंबी अवधि तक अपने पास रख सकता है। किसानों की सारी समस्याओं का समाधान इस फसल में मिल जाता है। 5 महीने तक फसल खेत में खड़ी रहती है और अच्छे से मेहनत की जाए तो उत्पादन भी 20 से 30 क्विंटल तक हो जाता है। मल्चिंग से किसानों को खेती करने से फायदा होता है। फसल में बीमारियों की रोकथाम होती है। काली मस्‍सी, गोरी मस्‍सी बीमारी नहीं होती और फंगस नहीं आती है, खरपतवार भी नहीं निकलती है। छोटे जानवर इसमें नहीं आते है पौधों में नाइट्रोजन की जरूरत होती है। मल्चिंग से पौधों को नाइट्रोजन नहीं देना पड़ता कम पानी में भी ज्यादा फसल होती है।