कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ द्वारा प्राकृतिक खेती पर दो दिवसीय (20-21 फरवरी 2024) को कृषक प्रशिक्षण ग्राम लुहर्रा एवं लडवारी में आयोजन किया गया। यह कृषक प्रशिक्षण प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार, वैज्ञानिक डॉ. आर. के. प्रजापति, डॉ. एस.के. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड़, डॉ.सुनील कुमार जाटव, डॉ. आई.डी. सिंह एवं जयपाल छिगारहा द्वारा दिया गया।
डॉ. बी.एस. किरार ने प्रशिक्षण के दौरान प्राकृतिक खेती एवं रासायनिक युक्त खेती में अन्तर को समझाया और वर्तमान में प्राकृतिक खेती की आवश्यकता क्यों पड़ रही है और रासायनिक युक्त खेती का मानव स्वास्थ्य, मिट्टी, जल एवं वायु की गुणवत्ता पर पड़ने वाले दुष्परिणामों से अवगत कराया गया और बताया कि मनुष्य को लंबी आयु एवं स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक/जैविक खेती करना नितांत आवश्यक है साथ ही रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक दवाओं से बचना चाहिए। इसके लिए किसान भाईयों को वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाकर अपने खेतों में डालना चाहिए, इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढती है और अपने खेत की मृदा स्वस्थ रहती है।
केंद्र के वैज्ञानिक डॉ.सुनील कुमार जाटव ने प्राकृतिक खेती अंतर्गत फसलों एवं सब्जियों में कीट-व्याधियों के प्रबंधन अंतर्गत अग्नेयास्त्र, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र एवं दशपर्णी आदि का घोल बनाना एवं उनके उपयोग के बारे में विस्तार से बताया। प्रशिक्षणार्थियों को प्राकृतिक खेती के घटकों बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत, संजीवक, आच्छादन, अंतरवर्तीय खेती, वाफसा आदि के बनाने की विधि एवं उपयोग का समय व प्रति एकड़ मात्रा के उपयोग के बारे में विस्तार से बताया गया। बीजामृत घोल तैयार कर बीजों का उपचार (संशोधन) करना बहुत जरूरी है। बीजामृत द्वारा शुद्ध बीज जल्दी एवं अच्छी मात्रा में अंकुरित होते हैं और जड़ें तेजी से बढ़ती हैं साथ ही बीज एवं भूमि द्वारा फैलने वाली बीमारियाँ रूकती हैं और पौधे की वृद्धि अच्छी होती है। घन जीवामृत अंतर्गत 100 कि.ग्रा. देशी गाय का गोबर, 1 कि.ग्रा. गुड़, 2 कि.ग्रा. दलहन का आटा (चना, उड़द, मूँग, अरहर), एक मुठ्ठी पीपल/बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी और थोड़ा सा गोमूत्र, आदि पदार्थों को अच्छी तरह से मिलाकर गूँध लें ताकि उसका हलुवा, लड्डू जैसा गाढ़ा बन जाये। उसे 2 दिन तक बोरे से ढककर रखें और थोड़ा पानी छिड़क दें। इस गीले घन जीवामृत को आप छाया या हल्की धूप में अच्छी तरह से फैलाकर सुखा लें। सूखने के बाद इसको लकड़ी से पीटकर बारीक करें और बोरों में भरकर छाया में भण्डारण करें। घन जीवामृत को आप सुखाकर 6 महीने तक रख सकते हैं।
फसल की बुवाई के समय प्रति एकड़ 100 कि.ग्रा. छना हुआ बीज में मिलाकर बुवाई करें। जीवामृत एक एकड़ जमीन के लिए देशी गाय का गोबर 10 कि.ग्रा., देशी गाय का मूत्र 8-10 ली., गुड़ 1-2 कि.ग्रा., बेसन 1-2 कि.ग्रा., पानी 180 ली. और पेड़ के नीचे की 1 कि.ग्रा. मिट्टी, आदि सामग्रियों को एक प्लास्टिक ड्रम में डालकर लकड़ी के एक डण्डे से हिलाकर घोलना चाहिए। इस गोल को 2-3 दिनों तक छाया में सड़ने के लिए रख देना चाहिए। दिन में 2 बार लकड़ी के डण्डे से घड़ी की सुई की दिशा में घोल को 2 मिनट तक घुमाना चाहिए। जीवामृत घोल को सिंचाई के साथ देना चाहिए। डॉ. आई. डी . सिंह ने बताया कि मृदा परीक्षण आवश्य कराये एवं इसकी विधि से अवगत कराया। जिस से फसल में संतुलन जैव उर्वरक दिया जा सके और भूमि को रसायनों से मुक्त किया जा सके ।