मंदसौर l डॉ. कुणाल राठौर व पत्नी डॉ. निकिता राठौर ने पर्यावरण नियंत्रण करके हवामिट्टी व पानी का उपयोग किए बगैर ऐरोपॉनिक तकनीक से केसर उगाई है। ग्रोथ व पैदावार बढ़ाने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग किया है। केसर की फसल पर यह प्रयोग पहली बार हुआ है। खास बात यह है कि इस केसर की क्‍वालिटि को भी कश्मीर की लैब ने सबसे अव्वल दर्जा दिया है।

मंदसौर शहर के डॉ. कुणाल राठौर व पत्नी डॉ. निकिता राठौर पेशे से दंत चिकित्सक हैं। डॉ. कुणाल बताते हैं कि दो साल से केसर की खेती करने का प्रयास कर रहे थे। पहले साल कंद लेकर आए और उगाने के प्रयास किए लेकिन फूल नहीं आए। फिर कश्मीर जाकर वहां कुछ दिन रुके और लोगों से संपर्क कर तकनीक सीखी और गलतियां सुधारी। दूसरे प्रयास में दोबारा कश्मीर से कंद लेकर आए। यहां ऐरोपॉनिक तकनीक से कश्मीर जैसा ही या यूं कहें कि उससे भी अनुकूल वातावरण दिया। तापमाननमी जैसे जरूरी तत्वों को पौधों तक पर्याप्त व परफेक्ट मात्रा में पहुंचाया। फूल अवस्था के साथ केसर लगना शुरू हो गई। उसकी क्‍वालिटी को जब कश्मीर में स्थापित इंडियन इंटरनेशनल कश्मीर सेफ्रोन ट्रेडिंग सेंटर पर परखा तो केसर को ग्रेड-1 की कैटेगरी मिली। आईएसओ 3632 बेस्ट क्‍वालिटी का दर्जा दिया। साथ ही सातों पैरामीटर पर खरा उतरकर नॉन जीआई टैगिंग भी मिली। इस तरह से जो केसर की खेती की जाती है उसको इंडोर केसर फार्मिंग कहलाती है। कश्मीर में भी वहां की सरकार इस तकनीक पर जोर दे रही है। इसका कारण यह है कि कीड़े लगने या फसल खराब होने का भय नहीं रहता।

डॉ. राठौर ने इनडोर केसर फार्मिग लगभग 1400 स्क्वेयर फीट क्षेत्र में अपने क्लिनिक के ऊपर छत पर लैब बनाकर करते हैं। जिसमें उन्होंने 300 ग्राम के आसपास केसर पैदा की है। डॉ राठौर का कहना है किवैकल्पिक व्यवसाय के लिए लंबे समय से सोच रहे थे। खोजबीन की तो यह कांसेप्ट पसंद आया। एल्युमिनियम सेक्शन से बनी लैब में पर्याप्त गैप में ट्रे के अंदर कंद रखें। कंट्रोल एनवायर्नमेंट एग्रीकल्चर तकनीक के तहत कार्बनडाइ ऑक्साइडग्रो लाइटचिलर यूनिट सहित अन्य माध्यमों से लैब में परफेक्ट वातावरण दिया। ऐरोपोनिक फॉर्मिंग एक ऐसी तकनीक है जहां मिट्टी के बिना पौधे उगाए जाते हैं। धुंध वाला वातावरण बनाकर इस विधि के तहत जड़ों के माध्यम से पौधे को पोषण दिया जाता है।

पौधों को प्राकृतिकआध्यात्मिक और वैज्ञानिक ध्वनि तरंगों को सुनाया

डॉ राठौर के अनुसार ऐरोपॉनिक के अलावा ग्रोथ व क्‍वालिटी के लिए केसर पर पहली बार ध्वनि तरंगों का उपयोग किया। राठौर ने इसे अकॉस्टिक ब्लूमिंग तकनीक नाम दिया है। परफेक्ट फ्रिक्वेंसीप्रवाह में प्राकृतिकआध्यात्मिक व वैज्ञानिक साउंड का उपयोग किया। इससे गुणवत्ता व पैदावार में सुधार देखा गया।