खरगोन / निमाड़ की उर्वरा भूमि और नर्मदा का जल हर मौसम की फसलों के लिए अनोखा वरदान है। नर्मदा नदी के जल को कल-कल और निर्मल रखने के लिए मप्र शासन ने वर्ष 2017 में नमामि देवी नर्मदे योजना प्रारम्भ की। इस योजना में नदी के दोनों किनारों पर 2-2 किमी. के दायरे में हरियाली की चादर बिछाने का निर्णय लिया गया था। आज 2017-18 और 218-19 में बड़वाह, महेश्वर और कसरावद के 809.01 है. रकबे में 586 किसानों ने संतरा, आम, अमरूद, नींबू, सीताफल और मौसम्बी की खेती से हरियाली की चादर बिछाई है। इन किसानों को योजना के तहत 438.23 लाख रुपये का अनुदान प्रदान किया गया। ये बागीचे आज किसानों को भरपूर फल प्रदान कर अच्छा मुनाफा भी देने योग्य हुए हैं। साथ ही मिट्टी के कटाव और नर्मदा जल को निर्मल बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। नमामि देवी नर्मदे योजना में लाभान्वित होने वाले बेटे और पौते ऐसे किसान हैं जो अपने दादा द्वारा 1970 के दशक में देखें सपने को इस योजना के माध्यम से पूरा कर रहे है।

      50 साल पहले दादा ने कि मौसम्बी की खेती, अब बेटे और पौते ने बसाया जैविक बगीचा    

  आज से करीब 50 साल पहले 1970 में बहेगांव के नवलसिंह मांगीलाल सोलंकी ने निमाड़ के गर्म मौसम में मौसम्बी की खेती का आगाज़ किया था। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ यह बात पौते (राजेन्द्र सोलंकी) के मन में बस गई। जब पौते के हाथों में खेती की बागडोर आयी तो मौसम्बी का बगीचा लगाने का सपना जागा। इस बीच मप्र द्वारा नमामि देवी नर्मदे योजना के तहत हरियाली बिछाने का निर्णय लिया गया। तो सबसे पहले राजेन्द्र ने अपने पिता भगवान मांगीलाल सोलंकी के साथ मिलकर बगीचा बसाने की फिर शुरुआत की। पहली बार मौसम्बी के बगीचे में एक पौधे पर करीब 1-1 क्विंटल तक के फल आये। राजेन्द्र बताते है जैसे उनके दादा का कोई अधूरा सपना पूरा हो गया है।    

    बच्चें ने खेती के लिए की कृषि में बीएससी    

  राजेन्द्र ने खेती को उन्नत तरीके से करने के लिए अपने बेटे दीपेंद्र को इंदौर से कृषि में बीएससी की शिक्षा दिलाई है। राजेन्द्र का कहना है कि आज के दौर में कृषि की शिक्षा अनिवार्य है। खेती को उन्नत तरीके से करने के लिए न सिर्फ रासायनिक बल्कि जैविक ज्ञान के अलावा नई विधियों व बाजार तथा मौसम की जानकारी होनी चाहिए।      

जैविकता से फलों में बिखरी शक्कर सी मिठास    

  राजेन्द्र के बागीचे की मौसम्बी की एक खासियत यह भी है कि 6 वर्षाे से खेत में कोई भी रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग नहीं किया। इस कारण फलों की ताजगी और शक्कर सी मिठास आयी है। 2017 में राजेंद्र के खेत में 3 है. रकबे में करीब 1700 पौधे और पिता भगवान सोलंकी के खेत में 1110 लगाए थे। पहली ही फसल से उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ है।