शाजापुर जिले के ग्राम जेठड़ा के कृषक श्री दामोदर वर्मा ने अपने गाँव में एक प्रेरणादायक मिसाल कायम की है। किसान कल्याण एवं कृषि विभाग की मदद से अपने यहाँ बायोगैस संयंत्र लगाकर उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार की जीवनशैली बदली, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल और किफायती ऊर्जा स्रोत अपनाकर आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम उठाया। आज वे पूरे गाँव के किसानों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।

पहले की चुनौतियाँ - श्री वर्मा का परिवार, जिसमें 12-13 सदस्य हैं, पहले खाना पकाने के लिए एलपीजी गैस सिलेंडर या परंपरागत चूल्हे पर निर्भर था। यह न केवल महंगा था, बल्कि बेहद असुविधाजनक भी। हर महीने गैस सिलेंडर के खर्चे ने उनकी आर्थिक स्थिति पर बोझ डाला हुआ था, वहीं चूल्हे की लकड़ियाँ जुटाना और उन्हें जलाना समय और मेहनत की मांग करता था। इसके साथ ही, लकड़ी जलाने से धुआं निकलता था, जो घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल रहा था। परिवार के लिए हर दिन का खाना बनाना एक बड़ी चुनौती थी।

समाधान की ओर कदम - श्री दामोदर वर्मा ने किसान कल्याण एवं कृषि विभाग द्वारा दी गई जानकारी से प्रेरित होकर बायोगैस संयंत्र लगाने का फैसला किया। इस संयंत्र को स्थापित करने में कुल 28 हजार रुपये का खर्च आया, लेकिन शासन से 14 हजार 150 रुपये का अनुदान मिलने से उनकी आर्थिक मदद हो गई। इस आर्थिक सहयोग ने उनके लिए बायोगैस संयंत्र लगाना और भी आसान कर दिया। संयंत्र लगने के बाद से उनका घर गैस सिलेंडर की जरूरत से पूरी तरह मुक्त हो गया।                                      बायोगैस से जीवन में बदला - बायोगैस संयंत्र चालू होते ही उनके घर में रसोई का काम सरल और सस्ता हो गया। अब इस संयंत्र से उत्पन्न गैस का उपयोग पूरे परिवार के लिए खाना पकाने में होता है। जहां पहले हर महीने गैस सिलेंडर और चूल्हे की लकड़ियों की चिंता रहती थी, अब यह खर्च पूरी तरह समाप्त हो गया है। श्री वर्मा का परिवार अब स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा का आनंद ले रहा है, जिससे उनके जीवन में सुकून और संतोष बढ़ गया है। 

बायोगैस संयंत्र का दोहरा लाभ - बायोगैस संयंत्र से निकली स्लरी, जो जैविक अपशिष्ट है, श्री वर्मा के लिए एक और महत्वपूर्ण लाभ लेकर आई। इस स्लरी का उपयोग वे अपने खेतों में जैविक खाद के रूप में कर रहे हैं, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ा रही है। इससे न केवल उनकी फसलें अधिक उपजाऊ हो रही हैं, बल्कि रासायनिक उर्वरकों पर उनकी निर्भरता भी कम हो गई है। इससे खेती में लागत कम हो रही है और पैदावार में सुधार आ रहा है, जो उनकी आमदनी को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।

गाँव में प्रेरणा की मिसाल - श्री दामोदर वर्मा की इस पहल ने उनके गाँव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। उनके बायोगैस संयंत्र के सफल उपयोग को देखकर गाँव के अन्य लोग भी इस तकनीक को अपनाने के लिए उत्साहित हो रहे हैं। वे श्री वर्मा से मार्गदर्शन ले रहे हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर अपने घरों में भी बायोगैस संयंत्र लगाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। श्री दामोदर वर्मा की यह कहानी दिखाती है कि जब संकल्प मजबूत हो और सही दिशा में कदम उठाए जाएं, तो बदलाव संभव है। बायोगैस संयंत्र ने न केवल उनके परिवार को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि पर्यावरण के संरक्षण और कृषि में सुधार का मार्ग भी प्रशस्त किया। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया कि स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय सुधार में भी अहम भूमिका निभाता है।