देवास l कृषि विभाग द्वारा जिले के टोंकखुर्द में किसान संगोष्ठी का आयोजन कर किसानों को नरवाई जलाने से होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी किसानों को दी। इस दौरान किसानों से संकल्प लिया कि वे नरवाई नहीं जलाएंगे। किसानों ने जिले के सभी किसानों से आग्रह किया कि वे फसल के अवशेष (नरवाई) नहीं जलाएं।

उप संचालक कृषि श्री गोपेश पाठक ने बताया कि जिले में रबी की मुख्य फसल गेहूं की कटाई का कार्य जारी है। कृषकों के द्वारा कम्पाइन हार्वेस्टर मशीनों से फसल काटने के बाद खेत में खड़े खापे (नरवाई) को नष्ट करने के लिए तथा खेत की साफ-सफाई के लिए खेतों में आग जलाने की सैटेलाइट द्वारा रिपोर्ट प्राप्त हो रही है जो चिन्तनीय है।

उप संचालक कृषि ने बताया कि नरवाई (पराली) जलाने से वायु प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति, जन-धन की हानि की घटनाएं होती हैं तथा पर्यावरण प्रभावित होता है। नरवाई में आग लगाने से अमूल्य पदार्थ नष्ट् होता जा रहा है, इसके कारण मृदा स्वास्थ्य व मृदा उत्पादकता खतरे में हैं। नरवाई में आग लगाने से मृदा के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे लाभदायक सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जो कि मृदा जैव विविधता के लिए एक गंभीर चुनौती है। फसल के अवशेष जलने पर भारी मात्रा में मिथैन, कार्बन डाय ऑक्साजइड, सल्फर डाय ऑक्साइड इत्यादि विषैली गैसों के विसर्जन से वायु की गुणवत्ता भी खराब होती है तथा पर्यावरण दूषित होता है। वायु में विषैली गैस रहने से अस्थमा व फैफड़ों में कैंसर जैसी बीमारियां फैलती है, जो मानव जीवन के लिए भी घातक है। उन्होंने कहा कि नरवाई जलाने की सैटेलाइट से भी जिला प्रशासन को जानकारी प्राप्त हो रही है। ऐसे में नरवाई जलाने वालों के विरूद्ध आपरधिक प्रकरण दर्ज कर प्रावधान अनुसार 2 एकड़ से कम धारित भूमि पर 2500 हजार रूपए, 2 एकड़ अधिक एवं 5 एकड़ से कम पर 5000 रुपए एवं 5 एकड़ से अधिक पर राशि रुपए 15000 प्रति घटना के मान से पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि वसूल कर शासकीय कोष में जमा की जाएगी।

उन्होंने जिले किसानों से अपील की है कि वे पर्यावरण को सुरक्षित रखने एवं मृदा को उपजाऊ बनाने के लिए फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को खेतों में न जलाएं। ताकि मृदा के तापमान में वृद्धि न हो एवं लाभ दायक सूक्ष्म जीव नष्ट न हो।