बालाघाट l प्राकृतिक व जैविक खेती के सिद्धांतों पर किसान फिर से लौटने लगे है। किसानों में यह समझ जागने लगी है कि रसायनों से भूमि को नुकसान होने के साथ ही स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ने लगा है। इस प्रभाव को कम  करना है तो हमारी देशी या जैविक व प्राकृतिक खेती ही सबसे अच्छा उपचार है। जिले में देशी या प्राकृतिक व जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पिछले 20 वर्षों में कई प्रयास किये गए। इन प्रयासों के बाद किसानों की समझ विकसित हुई है और अब प्राकृतिक व जैविक खेती का रकबा और किसान दोनों बढ़ने लगें है। इसका अनुमान बालाघाट से करीब 25 किमी. दूर गड़दा के किसानों के प्रयासों से भी लगा सकते हैं। यहां के किसान मुन्नालाल कुमरे ने वर्ष 2002 से आत्मा परियोजना और कृषि व उद्यानिकी विभाग द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न प्रशिक्षणों व जिले के अंदर व राज्य के बाहर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के साथ प्रारम्भ किया था। आज न सिर्फ व्यक्तिगत प्रयास कर बल्कि तीन अन्य महिला समूहों के अलावा जैविक उत्पादन के लिए कार्य करने वाले किसानों के समूहों के साथ कार्य कर रहें है। ये समूह आज अच्छे किस्म के जैविक उत्पाद बनाकर विक्रय कर अच्छी आमदनी प्राप्त करने लगें है। सबसे अच्छा पक्ष यह भी सामने आया है कि समूह अब अन्य किसानों और व्यापारियों के लिए भी जैविक उत्पादन के लिए ऑर्डर ले रहें है।

                              जागृति, प्रेरणा और अन्नपूर्णा महिला समूहों में साथ जैविक उत्पादनों का बनाया व्यवसाय

वैसे तो मुन्नालाल अब तक 1 हजार से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती के तौर तरीके सीखा चुके है। इसमें वे भूमि की सुरक्षा और बैक्टीरिया बढ़ाने के लिए जीवामृत, वेस्ट के उपयोग के लिए वेस्ट डी-कंपोजर, कीट पतंगों से रक्षा के लिए दशपर्णी, बिजौपचार के लिए बीजामृत, हानिकारक कीटनाशकों के लिए अग्निअस्त्र, ब्रम्हात्र व निमास्त्र सरीखे करीब 10 प्रकार के जैविक उत्पादों से खरीफ व रबी के सीजन में करीब 1 लाख 20 हजार तक कि इनकम कर लेते है। इतना ही नही गांव में ही इन्होंने जागृति, प्रेरणा और अन्नपूर्णा नाम से महिलाओं के तीन समूह बनाये है। इन समूहों में भी 50-50 महिलाएं केंचुआ खाद के 1 व 2 किलो. के पैकेट तथा 2 से 5 , 10 ली. तक के कीटनाशक भी तैयार कर विक्रय करने लगी है। अब ये समूह इतने परिपक्व हो चुके है कि जिले व जिले के बाहर के बागीचे वाले बड़े किसान व अन्य व्यापारी भी ऑर्डर पर जैविक उत्पाद तैयार करवा रहें है।

                             कमीशन पर काम कर 3 लाख तक मुनाफा लिया

मुन्नालाल ने बताया कि उनके पास पर्याप्त साधन नही थे तो उन्होंने कमीशन पर जगह और पानी लिया। यहाँ उन्होंने अच्छी मात्रा में जैविक उत्पादन किया। साधनों के कमीशन पर जैविक उत्पादन तैयार किया और 3 लाख रुपये तक का मुनाफा लिया था।मुन्नालाल कुमरे जैविक बीज के तौर पर भी कंपनियों के लिए करीब 500 किसानों के साथ 1-1 एकड़ में जैविक धान के बीज उत्पादित कर रहें है। मुन्नालाल कुमरे को वर्ष 2023 में जिला स्तरीय सर्वोत्तम कृषक पुरुस्कार के रूप में 25 हजार का ईनाम भी दिया गया है।

बिजली के लाइट में आने वाले कीड़ों पर करते है प्रयोग

मुन्नालाल ने बताया कि अग्निअस्त्र, ब्रम्हास्त्र, निमास्त्र आदि उत्पादों के प्रयोग वे घर पर बल्ब की रोशनी में आने वाले कीटों पर भी करते है। यानि कि वे बल्ब पास के पास मिर्च या अन्य फसलों को लटका दिया करते है। इसके बाद फसलों पर कीट आने पर छिड़काव करते है। फिर घड़ी मिलाकर समय देखते है कि कितनी देर में कीटों पर असर हुआ। इसके बाद जब कीट बेहोश या मर जाते है तो एक डब्बे में बंद कर कीटों की जानकारी निकालते है। इस प्रयोग के अलावा घर की बागवानी में निरंतर प्रयोग कर अपने उत्‍पादों को परिपक्‍व बना रहे है।

                             246 सक्रिय जैविक खेती समूह

आत्मा परियोजना संचालक अर्चना डोंगरे ने जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2015-16 से जिले में देशी व जैविक खेती, बीज आदि के लिए समूह बनाने का कार्य प्रारम्भ हुआ। इसमें किसानों को प्रशिक्षित किया गया। वर्तमान में 246 ऐसे समूह है जो जैविक खेती के लिए कार्य कर रहें है। इसमें करीब 4550 किसान जुड़े है जो जैविक उत्पादों के साथ बीजों पर भी काम कर रहें है।