रबी सीजन में नही जलाई नरवाई, खेतों की फसल अच्छी

सीहोर l अधिकतर यह देखा जाता है कि गेहूं की फसल कटने के बाद जो नरवाई बचती है, उसे किसान जला देते हैं। इससे पर्यावरण प्रदूषण तो होता ही है साथ ही जमीन से कीट और मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी नष्ट हो जाती है। जिला प्रशासन द्वारा नरवाई नही जलाने के लिए लगातार किसानों से अपील भी की जाती है। कोठरी निवासी किसान श्री संतोष मंडलोई जिले के ऐसे किसान है, जिन्होंने अपने खेत की नरवाई न जलाते हुए रोटरवेटर की सहायता से बचे हुए अवशेष को मिट्टी में ही मिक्स करा दिया। इसका यह परिणाम हुआ कि किसान संतोष के खेतों में लगाई गई सोयाबीन की फसल में गत वर्षों से कई गुना अधिक फूल आए है। संतोष बताते हैं कि मैंने अपने खेत की नरवाई न जलाते हुए प्रति एकड़ 20 किलो यूरिया खाद डाला और नरवाई को ट्रैक्टर की मदद से रोटावेटर चलवाकर खेत में ही मिक्स करवा दिया। इससे सोयाबीन की फसल में फूल अधिक मात्रा में निकल रहे हैं।
संतोष बताते हैं कि जब मैंने खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए विचार किया तो मेरे मन में आया कि पहले जब कच्चे घरों की ओटलियां टूट जाती थी, तो उन्हें मिट्टी से दोबारा छापा जाता था। उस मिट्टी में गेहूं का भूसा मिलकर उसकी छपाई तथा लिपाई की जाती थी। उस ओटले में केंचुए की संख्या बहुत अधिक रहती थी। मेरे मन में विचार आया कि खेतों में केंचुओं की संख्या बढ़ाने के लिए जमीन में गेहूं का भूसा मिलाना आवश्यक है। तब मैंने सोचा कि क्यू न गेहूं के नरवाई को जलाने की बजाय उसे खेतों में ही मिक्स करवा दिया जाए और फिर मैंने ऐसा ही किया। परिणाम यह हुआ कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष मेरे खेत में लगे सोयाबीन में बढ़कर फूल आए हैं और फसल को किसी तरह का नुकसान भी नही हुआ है। किसान संतोष ने बताया कि इस बार अधिक पैदावार की संभावना हैl कृषि अधिकारी द्वारा किसान के खेत का निरीक्षण कर उसके इस कार्य की सराहना की गई। उन्होंने कहा कि किसान संतोष मण्डलोई अनेक किसानों के प्रेरणा स्त्रोत है। जिस प्रकार किसान ने अपने खेतों की नरवाई को न जलाते हुए उसका खेत में ही उपयोग किया है। उसी तरह अन्य किसानों को भी नरवाई न जलाते हुए प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर होना चाहिए। इससे एक ओर जहां हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा वहीं गुणवत्तापूर्ण फसल का उत्पादन भी होगा।