प्राकृतिक खेती से रसायनिक उर्वरक पर निर्भरता हुई कम हुआ अधिक उत्पादन

रीवा जिले के किसान परंपरागत खेती से अलग हटकर प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं जिससे रसायनिक उर्वरक में निर्भरता कम हुई और उत्पादन भी अधिक हो रहा है।
गंगेव जनपद के पनगड़ीकला निवासी भूपनारायण शुक्ला परंपरागत खेती करते थे जिससे रसायनिक उर्वरकों एवं खरपतवार नाशक व कीटनाशकों पर अधिक लागत का बोझ बढ़ रहा था और भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम हो रही थी। कृषक भूपनारायण को आत्मा परियोजना से प्राकृतिक खेती के लिये चने का बीज मिला जिसे उन्होंने उपचारितकर प्रदर्शन प्लाट में बुवाई की। आवश्यकतानुसार सिंचाई कर निदाई गुड़ाई करते हुए खरपतवार का नियंत्रण किया गया और एक माह के अन्तराल में एक एकड़ में जीवामृत घोल का छिड़काव किया गया जिससे उन्हें प्रति एकड़ 3 Ïक्वटल चना उपज प्राप्त हुआ। कृषक भूपनारायण बताते हैं कि चने की फसल में प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से रसायनिक आदान की निर्भरता कम हुई। लागत कम आई एवं उत्पादन अधिक मिला। फसल विविधीकरण में भी चना अन्य फसल की तुलना में अधिक उपयुक्त फसल है। किसान प्राकृतिक खेती अपनाकर अपनी आय में तो वृद्धि कर ही सकते हैं साथ ही भूमि की उर्वराशक्ति भी बनी रहेगी।