सत्य को प्रमाण की नहीं, प्रणाम की आवश्यकता है परम पूज्य श्री श्री बाबा श्री जी

गुरुपूर्णिमा पर श्रीश्रीबाबाश्री जी की वाणियाँ ही हमारा मार्गदर्शन करती हैं। क्योंकि वाणियाँ सत्य हैं और सत्य स्वयं नहीं बदलता। वह जिसे पकड़ लेता है, वह बदल जाता है। इसलिए पथिकों और जिज्ञासुओं से परम पूज्य श्रीश्रीबाबाश्री जी कहते थे-"ध्यान रखो,मनन करो! तुमने सत्य को पकड़ा है या सत्य ने तुम्हें पकड़ा?"
श्रीश्रीबाबाश्री जी ने आगे चेतावनी देते हुए कहा कि यदि तुमने सत्य को पकड़ा है, तो वह छूट सकता है। पर यदि सत्य ने तुम्हें पकड़ा है, तो फिर सत्य से दूर नहीं हो सकते।
सत्य के बग़ैर कोई धर्म 'धर्म' नहीं हो सकता। वैसे ही सत्य के बिना पुरुष पारस नहीं बन सकता, स्त्री का सतीत्व भी सत्य पर अवलंबित है।
१७०० से ज़्यादा दिनों से माँ नर्मदा जल पर साधनारत् परम पूज्य दादा गुरुजी के सत्संग में उनकी वाणी है-"गुरु जब सत्य के रूप में है, तो जीव जगत का आधार है, और जब वह तत्व के रूप में है, तो वह हमारा अस्तित्व है। काल की गणना नहीं, जो काल से मंत्रणा सिखाये वह गुरु है।सत्य गुरुवै नमः!"
जो हमें परिवार, समाज और स्वयं काल से मंत्रणा सिखाये, महामृत्युंज से मिलाये वह गुरु कहलाये।हर काल में जीना सिखाये वह गुरु है। अपने जीवन को 'निर्विकार सत्य पथ' पर चलने के लिए संकल्पित हों, तो वह सबसे अच्छा। और इसके लिए अपने मैं को गुरु चरणों में अर्पित कर दो। यदि ऐसा न कर सको तो,जो गुरुसत्ता सत्य की प्रस्तुति कर रही है और परमसत्ता की अभिव्यक्ति दे रही है, उस गुरु सत्ता के लिए सब अर्पित, तेरा तुझको अर्पण।
सत्य हमें स्वीकार कर ले; इसके लिए हमें ही पात्रता सिद्ध करनी होगी। पात्रता का यह मार्ग और उस पर चलने की परीक्षा के लिए लिए भौतिक सामर्थ्य से अधिक जरूरी है- अंतर्मन की शुद्धि और सत्य के साथ खड़े होने का साहस तथा संकल्प...तो सत्य हमारा हाथ थाम लेगा। यह पात्रता शिष्य को ही साबित करनी होती है। महान ग्रन्थ और संहिता सौन्दर्य लहरी में आद्य शंकराचार्य जी गुरु-शिष्य के संबंध को अनुग्रह का संबंध कहते हैं। उस अनुग्रह में गुरु का अनुग्रह नहीं है, सिर्फ़ शिष्य का अनुग्रह ही पूर्ण होने का उल्लेख है। यदि शिष्य का अनुग्रह पूर्ण न हो, तो वह गुरु बदल सकता है। इसी प्रकार परम पूज्य श्रीश्रीबाबाश्री जी कहते हैं-“निर्विकार पथ पंथ' नहीं है, यह पथ है।इससे अच्छा पथ मिले, तो चले जाना...जागो और जगागो, निर्विकार हो शांति पाओ!"
पूज्य श्रीश्री बाबाश्री की वाणी है-"सत्य अभिनय नहीं करता, सत्य निर्णय करता है।"
मैंने निर्विकार पथ के पथिक के रूप में जितना भी चैतन्यतापूर्ण जीवन जिया और जो सत्संग से मिला, उसे ही शब्दों के रूप में लौटाने और प्रस्तुत करने की कोशिश है।
परम पूज्य श्रीश्रीबाबाश्री जी की वाणी है-"सत्य प्रस्तुति के लिए है, स्तुति के लिए नहीं।"
जब पथ पर चलते-चलते मैं दुविधाग्रस्त हो रहा था, तब सलाखों के बीच से कान पकड़कर, चपत लगाकर, ठहाके लगाते मुझसे कहा-“सत्य को प्रमाण की नहीं, प्रणाम की आवश्यकता है। हम गुरुचरणों में पूर्ण समर्पण नहीं कर पाते, कुछ हद तक अभिनय ज़्यादा होता है, कुछ लालच-लाभ और स्वार्थ होते हैं, जो हमारे विश्वास को जगह नहीं मिलने देते। तभी श्रीश्री बाबाश्री की वाणी स्मरण आती है-“विश्वास होता नहीं है, किया जाता है।" आज गुरुपूर्णिमा पर विश्वास के साथ समर्पण का संकल्प पूरा करें।
पथिक डॉ. एडीएन वाजपेयी के दोहे के साथ गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएँ
बादल गुरु घन ज्ञान का लिए झूमता जाये ।
है सुपात्रता शिष्य की, खींचे, पिये,अघाये॥