दिव्य चिंतन (हरीश मिश्र)

    लोकतंत्र सिर्फ एक दिन का उत्सव होता है। जब मतदाता ऊंगली में स्याही लगवाकर विकास के लिए पार्षदों को चुनता है। जो जीतता है, वो सुल्तान बन मुकद्दर का सिकंदर बन चूना लगाता है ।

   नगर पालिका परिषद, रायसेन के सूबेदारों ( पार्षदों ) ने कुछ महीने पहले आरोप लगाया कि मुकद्दर से सिकंदर बने सुल्तान ( अध्यक्ष पति )  सत्ता का  दुरुपयोग  कर चूना लगा रहे हैं । *मनमाने व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति के लिए विधि व्यवस्था को नष्ट कर  नोटशीट पर अपनी रेखा खींच रहे है ।

   सूबेदारों  का आरोप था ‌, सुल्तान कुर्सी पर बैठकर पान का मीठा पत्ता, लौंग, इलाइची, चटनी लगाकर खा रहे हैं और चूना कुर्सी के हत्थे पर लगा रहे हैं। सूबेदारों को ऐतराज है , सुल्तान पान खाएं लेकिन कुर्सी के  हत्थे पर चूना नहीं लगाएं।

      सुल्तान अपने मित्रों से कुर्सी की व्यथा कहते हैं "ज़रा आईने में इक बार ख़ुद को भी देखें  , मुझ पे चूना लगाने का इल्ज़ाम लगाने वाले। " *जिन्होंने अंधेरी रात में तीसरे प्रहार में डल्लू के लड्डू  खाए हैं, वे भी आंखें दिखा रहे हैं। मुझे कुर्सी उपहार में नहीं मिली, उपहार देकर मिली है। जब उपहार देकर सुल्तान बना हूं, तब*       

         
    मैं चाहे एलम खरीदूं ! 
          मैं चाहे चूना! 
            *मेरी मर्जी!*
    

       सूबेदार ( पार्षद) दाम
           ले चुके दूना ! 
                फिर 
      मैं किसी की सुनूं ना !         जिसको चाहे गले लगाऊं
 जिसको चाहे दूर भगाऊं ! 
            *मेरी मर्ज़ी!!*

   
        शंकर को भूलकर 
     राम की उपासना करूं,
            *मेरी मर्ज़ी!*

         मेरे बारे में कुछ 
           कहना नहीं! 
        चुपचाप बैठे रहो !
           बोलना नहीं !
       मुझे समझाना नहीं!
       मुझे अब रोको नहीं !
       मुझे अब टोको नहीं!
        
           मैं चाहे ये करूँ ! 
           मैं चाहे वो करूँ !
             *मेरी मर्ज़ी !*

    सुल्तान की  मन मर्ज़ी के खिलाफ 13 सूबेदारों ने रामलीला मैदान के गंदे नाले की सफाई कर , कलेक्टर को अर्जी देकर ऐलान-ए-जंग का ऐलान किया था। ऐलान करते समय प्रेस को बुलाया और सहमति चुपचाप हो गई। सूत्रों के अनुसार  सुल्तान और सूबेदारों में चूना लगाने पर सहमती बन गई है। *इसलिए कुछ सूबेदार चूना लगाने कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ गए।*

   जो जंग रुकी है, तख्तापलट तक जाएगी या डल्लू के लड्डू पुनः मुंह बंद कराएंगे। भविष्य के गर्भ में है ‌‌।  लेकिन यह सच है ,नगर पालिका में भ्रष्टाचार का कुटीर उद्योग संचालित हो रहा है।  जनता की कोई सुनवाई नहीं हो रही। प्रधानमंत्री आवास आवंटन में  मनमर्जी चल रही है।  योजनाओं का लाभ राजनैतिक और आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग को प्राप्त हो रहा है। योजनाओं का लाभ उन्हें मिला है, जो एक हाथ में आवेदन, दूसरे हाथ में लिफाफा लेकर पहुंच रहे हैं। गरीब आज भी योजनाओं के लाभ के लिए भटक रहा है।
       नगर पालिका से प्राप्त दस्तावेजों का सूक्ष्म अध्ययन करने पर, निष्कर्ष यही निकला की विकास के लिए पैसा करोड़ों में आ रहा है पर मुख्य नगरपालिका अधिकारी-कर्मचारी- सुल्तान-सूबेदार अपनी मर्ज़ी से काम कर रहे हैं । शासन से प्राप्त धनराशि का दुरुपयोग कर रहे हैं । यह पैसा कैसे इस्तेमाल किया जाना चाहिए ? कहां इस्तेमाल किया जाना चाहिए ?
जनता की जरूरत  क्या है ? जनता से ना तो सुल्तान और ना ही सूबेदार पूछ रहे हैं।

     मतदाता की ऊंगली में लगी स्याही का जादू है कि जनता के चरण सेवक, सुल्तान और सूबेदार बन जाते हैं। शासक बनते ही आम आदमी से संबंध तोड़ लेते हैं। चुनाव के समय झुककर वोट मांगने वाली कमर, चुनाव जीतने के बाद सीधी हो जाती है। चुनाव से पहले जो जनता के चरणों में थे,जीतने के बाद जनता उनके चरणों में  है। चुनाव से पहले मिलनसार, जीतने के बाद गाड़ी के शीशे नहीं उतर रहे। चुनाव से पहले घर-घर दस्तक देने वाले  जीतने के बाद  दलालों से घिर गए हैं। उनका मोबाइल संपर्क क्षेत्र से बाहर है । दलालों के नंबर से जुड़ गया है। अभी भी समय है सुल्तान और सूबेदार जनता से जुड़कर सेवा कार्य करें, नहीं तो मजारों पर कोई नहीं जाता।

लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )